आर्टिकल-370 नेताओं का मुद्दा, कश्मीरी काम मांग रहे:लोग बोले- अफसर कहते हैं सब ठीक है, सरकार होती तो शिकायत करते

तारीख: 7 मार्च, जगह: श्रीनगर का बख्शी स्टेडियम
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल- 370 हटाए जाने के बाद PM मोदी की पहली रैली थी। उन्होंने कहा, ‘अब कश्मीर के लोग खुलकर सांस ले पा रहे हैं। कांग्रेस और उसके साथियों ने सियासी फायदे के लिए 370 के नाम पर यहां के लोगों को गुमराह किया। जम्मू-कश्मीर की अवाम ये सच्चाई जान चुकी है।’

तारीख: 4 अप्रैल, जगह: श्रीनगर
PM मोदी की रैली के 27 दिन बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के वाइस प्रेसिडेंट उमर अब्दुल्ला यूथ कन्वेंशन में थे। वे बोले, ‘अगर 5 अगस्त, 2019 के बाद आपको ज्यादा इज्जत मिली तो मेहरबानी करके नेशनल कॉन्फ्रेंस को वोट मत दीजिएगा।'

'अगर आपको लगता है कि आपके साथ धोखा हुआ, नाइंसाफी हुई, नौजवान पहले से ज्यादा परेशान हैं और जिंदगी बेहतर नहीं हुई तो वोट के जरिए केंद्र को पैगाम भेजना होगा कि हमें 5 अगस्त, 2019 का फैसला कबूल नहीं है।’

5 अगस्त, 2019 वही तारीख है, जब आर्टिकल-370 हटा था। चुनाव से पहले कश्मीर में पार्टियों के लिए यही सबसे बड़ा मुद्दा है। हालांकि, आम लोग ऐसा नहीं मानते। जम्मू-कश्मीर में 19 अप्रैल से 20 मई तक 5 फेज में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। आर्टिकल-370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार चुनाव हो रहे हैं।

दैनिक भास्कर की टीम जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर, अनंतनाग समेत दूसरे शहरों में पहुंची। पॉलिटिकल एक्सपर्ट, राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं और आम लोगों से बड़े मुद्दों पर बात की। खास बात ये है कि कश्मीर में राम मंदिर और CAA मुद्दा नहीं है।

जम्मू-कश्मीर के 4 सबसे बड़े मुद्दे

1. आर्टिकल 370: जम्मू-कश्मीर की पूरी सियासत इसी के इर्दगिर्द है। BJP आर्टिकल-370 हटने के बाद हुए डेवलपमेंट और बड़े बदलावों की बात कर रही है। विपक्षी पार्टियां इससे अवाम को नुकसान होने का दावा कर रही हैं। कुछ पॉलिटिकल पार्टियों का ये भी कहना है कि आर्टिकल-370 अब पुरानी बात हो गई, इससे आगे बढ़ना चाहिए।

2. स्टेटहुड: केंद्र सरकार कहती है कि दूसरे राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर को भी हर योजना का फायदा लेने का अधिकार है, इसलिए विशेष राज्य का दर्जा हटाया गया। वहीं, बाकी पॉलिटिकल पार्टियां हर बात में स्टेटहुड की मांग कर रही हैं।

3. AFSPA: जम्मू-कश्मीर के लिए ये कानून जरूरी है या फिर इसे हटाया जाना चाहिए, पॉलिटिकल पार्टियां इस पर खुलकर बात कर रही हैं। आम लोग कैमरे पर बात नहीं करते, लेकिन दबी जुबान में कहते हैं कि इमरजेंसी के वक्त इससे बहुत तकलीफ होती है। फोर्स के जवान कहीं भी रोक लेते हैं।

4. जॉब और डेवलपमेंट: जम्मू कश्मीर के लोगों की नजर में रोजगार और विकास सबसे बड़ा मुद्दा नजर आता है। युवा इस पर बात करते हैं। कई लोगों ने एजुकेशन और हेल्थ पर भी फोकस करने की बात कही है।

अनंतनाग के लोग बोले- आर्टिकल-370 हटाना सही, इससे अच्छे बदलाव आए
श्रीनगर से करीब 55 किमी दूर अनंतनाग PDP नेता महबूबा मुफ्ती का घर है। वे यहीं से चुनाव लड़ रही हैं। महबूबा पहले दिन से आर्टिकल-370 हटाने का विरोध करती रही हैं। आर्टिकल-370 हटाए जाने के बाद अनंतनाग में हालात सामान्य होने में 43 दिन लगे थे।

यहां के गुलाम रसूल कहते हैं, ‘आर्टिकल-370 तो चला गया, अब कहां वापस आने वाला है। इसके हटने से अच्छा बदलाव आया है, करप्शन कम हुआ है। आप जिस डिपार्टमेंट में जाओ, वहां काम मिलेगा। अब कोई दिक्कत नहीं है।’

रसूल कश्मीर की पॉलिटिकल पार्टियों से नाराज हैं। कहते हैं, ‘इन पार्टियों ने हर काम अपने घर और आराम के लिए किया है। पिछले 50 साल में लोगों के लिए काम करते तो कश्मीर में इतनी बरबादी नहीं होती।’

कश्मीरी पंडित बोले- रिलीफ कैंप बंद हों, हमें अपनी जमीन चाहिए
अनंतनाग के ही उत्तरासो गांव में हमें कश्मीरी पंडित बाल कृष्ण मिले। उन्हें सरकार से शिकायत है। बाल कृष्ण कहते हैं, ‘सरकार कितने भी दावे करे, लेकिन हमारी बात नहीं सुनी जा रही है। कश्मीरी पंडितों के लिए बने रिलीफ कैंप बंद होने चाहिए। उन्हें अपने घर और जमीनों तक भेजा जाए। कहीं कोई दिक्कत नहीं है। आस-पास के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं।’

1990 में जब आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया था, उस वक्त उत्तरासो गांव में कश्मीरी पंडितों के 35 से ज्यादा परिवार रहते थे। पलायन के बाद सिर्फ 3 परिवार ही रुके। फिलहाल यहां 9 परिवार हैं। 34 साल बीत गए, लेकिन घर छोड़कर गए कश्मीरी पंडितों में से कोई नहीं लौटा। बाल कृष्ण इन्हीं की वापसी चाहते हैं।

आर्टिकल-370 से न फायदा, न नुकसान
आर्टिकल-370 के बारे में पूछने पर बाल कृष्ण कहते हैं, ‘370 हमारे लिए पहले भी हटा था और आज भी हटा है। आम लोगों पर इसका कोई असर नहीं है। हां, ये कुछ परिवारों के लिए जरूर जागीर बन गया था। उनके लिए हट गया। आम लोगों में आप किसी से पूछेंगे तो आपको यही जवाब मिलेगा।’

सरकार ने कहा था दूध की नदियां बहा देंगे, पर बेरोजगारी बढ़ गई
कश्मीर में रहने वाले बशीर अहमद मौजूदा हालात से खुश नहीं है। वे कहते हैं, ‘5 साल में जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है। सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि दूध की नदियां बहा देंगे। हमें नहीं लगता है कि यहां दूध की नदियां बह रही हैं। यहां जो पुराना सिस्टम था, अब वो भी बेकार पड़ा है।’

बशीर नाराजगी भरे अंदाज में कहते हैं, ‘मेरी ये बात अगर हुकूमत तक पहुंचती है तो वो मुझे बुलाए। मैं ग्रास रूट की हकीकत बता दूंगा कि बीते 5 साल में यहां की इंडस्ट्री को कितना नुकसान हुआ है। कितनी गरीबी आई है। कितने लोग कर्ज में दबे हुए हैं और गलत कामों में लग गए हैं। यहां स्मॉल इंडस्ट्री बंद पड़ी है। लोगों ने खर्च चलाने के लिए जमीनें और प्रॉपर्टी बेच दी हैं।’

बशीर आगे कहते हैं, ‘अगर जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार होती तो हमें इतनी मुश्किलें न होतीं। जरूरत पड़ने पर हम उनके पास जा सकते थे और उन्हें अपनी परेशानियां बता सकते थे। इस वक्त तो एक LG साहब हैं और दूसरे उनके दो अफसर हैं। उन्हें क्या पता, ग्रास रूट पर क्या हो रहा है।’

'4-6 महीने में LG साहब या उनके अफसर डाक बंगला आते हैं। यहां के अफसर उनसे कहते हैं कि सब ठीक है, इसलिए समस्या बनी हुई है। अब इलेक्शन होंगे और अपने हुक्मरान बनेंगे तो उम्मीद है कि परेशानियों का हल जरूर निकलेगा।’

फर्स्ट टाइम वोटर शकीना बोलीं: हमें सिर्फ डेवलपमेंट चाहिए
अनंतनाग में रहने वाली स्टूडेंट शकीना मजीद पहली बार वोट डालेंगी। आर्टिकल-370 और CAA पर वे कुछ नहीं बोलना चाहतीं। वे कहती हैं, ‘हम इन सवालों का कोई जवाब नहीं दे सकते, लेकिन अगर आप हमारे मुद्दे पूछते हैं तो जरूर बताऊंगी।’

शकीना कहती हैं, ‘मैं खुद अपना प्रतिनिधि चुनना चाहती हूं, जो मुझे अच्छा लगे। मैं हर महिला से यही कहूंगी कि अगर हमें डेवलपमेंट चाहिए, तो वोट देना ही चाहिए।’

पुलवामा में रहने वालीं स्टूडेंट नवरीना मंजूर भी पहली बार वोट देने वाली हैं। कहती हैं, ‘मेरे लिए महिला सशक्तिकरण बड़ा मुद्दा है। महिलाओं के लिए अच्छी एजुकेशन और बेहतर हेल्थ केयर जरूरी है।’

श्रीनगर में लोग कैमरे पर बोलने को तैयार नहीं
श्रीनगर का लालचौक अभी टूरिस्ट से भरा रहता है। कभी यहां से पत्थरबाजी की फोटो आया करती थीं। हम लाल चौक के पास एक पार्क में पहुंचे। यहां कोई बात करने को राजी नहीं हुआ। एक स्टूडेंट ने ऑफ कैमरा बात की। कहा कि मेरे परिवार ने आज तक वोट नहीं दिया है। ना ही इस बार वोट करेंगे।

चुनावी मुद्दों पर सवाल किया तो लड़के ने AFSPA का जिक्र किया। बताया कि यहां ऐसे हालात हैं कि इमरजेंसी में कभी रात के 8 बजे घर जाना पड़े, तो आर्मी वाले रोक लेते हैं। इतने सवाल करते हैं कि लगता ही नहीं हम आजाद हैं। हम सवाल-जवाब करें तो अरेस्ट कर लिया जाता है।'

'एक बार पुलिस केस हो गया तो पूरा करियर खत्म हो जाएगा। इसलिए लोग कुछ भी कहने से डरते हैं। ना जाने कब वो माहौल होगा, जब हम खुली हवा में सांस ले सकेंगे। चैन की नींद सो सकेंगे। बिना किसी रुकावट के कहीं भी आ-जा सकेंगे।’

अब जानिए चुनावी मुद्दों पर एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं

आर्टिकल-370 नहीं, लोगों की बेसिक जरूरतें बड़ा मुद्दा
पॉलिटिकल एक्सपर्ट और जर्नलिस्ट अजहर हुसैन कहते हैं, ‘आर्टिकल-370 कलेक्टिव इश्यू है। लोग भी जानते हैं कि यहां की लोकल पार्टियां इसे वापस नहीं ला सकतीं। वो बस लोगों को बरगला सकती हैं।'

'सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही कुछ आदेश कर सकता है। वो भी आदेश दे चुका है। इसलिए आम लोग अब ये सुनना चाहते हैं कि नेताओं के पास क्या स्कीम हैं, जिनसे उनकी मुश्किलें आसान होंगी।'

सेंट्रल और कश्मीरी लीडरशिप के बीच गैप, ये दूर होना जरूरी
आर्टिकल-370 के मुद्दे पर कश्मीर के सीनियर जर्नलिस्ट सैयद तज्जमुल कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि वोटर दो तबके में बंटा है। एक तबका चाहता है कि बाकी मुल्क के साथ उसके अच्छे रिश्ते रहें। दूसरा, जिसे लगता है कि यहां चला मूवमेंट अंजाम तक नहीं पहुंचा। उन्हें बस इस्तेमाल किया गया।'

'मुझे लगता है कि 370 हटने के बाद सेंट्रल गवर्नमेंट और जम्मू कश्मीर की लीडरशिप के बीच गैप आ गया है। लोगों के बीच भी गैप बना है। उसे भरना पड़ेगा।’

कश्मीर में राम मंदिर मुद्दा नहीं
कश्मीर मामलों के जानकार अजहर हुसैन राम मंदिर के मुद्दे पर कहते हैं, ‘राम मंदिर का मुद्दा तो BJP ने जम्मू में अच्छे से उठाया था। इसका जितना फायदा ले सकते थे, उन्होंने लिया। अब तो राम मंदिर बन भी चुका है, इसलिए इससे आगे बढ़ने का वक्त है। जम्मू-कश्मीर में BJP को यहां की जरूरतों के मुताबिक चीजें लाने की जरूरत है। यहां राम मंदिर मुद्दा नहीं है।’

बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा, लोगों का बेसिक जरूरतों पर फोकस
अजहर हुसैन का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है। वे कहते हैं, ‘यहां के लोगों की एवरेज इनकम कम है। हमारे नौजवान बहुत कम पैसे में काम कर रहे हैं। इसे आप अच्छा नहीं कह सकते। यहां अच्छी जॉब के मौके चाहिए। नौकरी के नए मौके भी जरूरी हैं, जो अब तक नहीं मिले।’

लोग बेरोजगारी, बिजली बिल और महंगाई से परेशान
कश्मीर के सीनियर जर्नलिस्ट सैयद तज्जमुल भी अजहर हुसैन की बातों से इत्तफाक रखते हैं। कहते हैं, ‘पहला इश्यू है कि पढ़े-लिखे लोग बेरोजगार हैं। डॉक्टरेट करके भी खाली बैठे हैं। मुझे लगता है कि जो भी सत्ता में आए, उसके पास रोजगार देने का प्लान होना चाहिए।’

सैयद कहते हैं, ‘यहां बिजली का टैरिफ बहुत बड़ा मसला है। स्मार्ट मीटर का 3 से 4 हजार रुपए बिल आता है, तो किसी के भी लिए ये खर्च उठाना आसान नहीं होता। कई जगहों पर ऐसा है, जहां घर में 2 हजार रुपए की आमदनी है, बिजली बिल 4 हजार रुपए आ रहा है। इसलिए इस मुद्दे पर बात करने की जरूरत है।’

कश्मीर से AFSPA हटाने की सुगबुगाहट
चुनाव में AFSPA, यानी द आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट की भी चर्चा है। 27 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सरकार जम्मू-कश्मीर से AFSPA वापस लेने पर विचार करेगी। केंद्र ने 7 साल का प्लान भी तैयार कर लिया है। इसके लिए अभी जम्मू-कश्मीर पुलिस को मजबूत किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस दावे को एक्सपर्ट सियासी मुद्दा मान रहे हैं, लेकिन स्वागत भी कर रहे हैं।

पॉलिटिकल पार्टियों के लिए चुनाव में बड़े मुद्दे
BJP के लिए डेवलपमेंट इकलौता मुद्दा

जम्मू-कश्मीर के लिए BJP की तरफ से क्या बड़ा मुद्दा है? BJP प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर जबाव देते हैं, ‘जम्मू-कश्मीर में विकास ही सबसे बड़ा मुद्दा है। यहां स्टूडेंट्स के लिए IIT हो। सड़कें बन रही हैं और लोगों को काम मिल रहा है।'

AFSPA हटाने के गृह मंत्री के दावे पर अल्ताफ कहते हैं, ‘BJP जो कहती है, उसे पूरा करती है। हमने पहले ही कहा था कि आर्टिकल-370 हटाएंगे और हटाया। 35ए भी हटाया। हमने CAA लागू करने की बात की थी, उसे भी लागू किया। ट्रिपल तलाक भी बैन किया। उसी तरह AFSPA को भी हटाने का वादा सरकार पूरा करेगी।’

कांग्रेस: 370 हटाकर स्थानीय लोगों का काम छीना
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस कमेटी के वाइस प्रेसिडेंट जीएन मोंगा कहते हैं, ‘कोई माने या न माने, लेकिन 370 बड़ा मुद्दा है। इसके हटने के बाद स्थानीय लोगों के रोजगार छिने हैं। BJP कहती है कि आर्टिकल-370 हटाना टेररिज्म खत्म करने के लिए जरूरी था, लेकिन उसे हटाए जाने से लोगों को नुकसान हुआ है।’

मोंगा आगे कहते हैं, ‘10 साल से यहां असेंबली इलेक्शन नहीं हुए। सचिवालय में कोई सुनता नहीं है। ऑफिसों में बाहरी लोग बैठे हैं। उन्हें यहां की समस्या का पता नहीं है। भाषा की दिक्कत है। इसे लेकर ग्राउंड पर लोगों से बात कर रहे हैं। ये मुद्दे बहुत बड़े हैं।’

AFSPA के मुद्दे पर मोंगा कहते हैं, ‘इलेक्शन आते ही वे ऐसा क्यों करते हैं। CAA ले आए। अब AFSPA हटाने की बात कही है। अगर हटाना है तो हटा दीजिए। इसे इलेक्शन के वक्त ही क्यों ला रहे हैं।’

JKAP: आर्टिकल 370 हटाना हमारे लिए बड़ा घाव
जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी कहते हैं, ‘हमारे लिए आर्टिकल- 370 एक इमोशनल अटैचमेंट था। अब हटा तो हम ये नहीं कहेंगे कि बहुत अच्छा हुआ। ये हमारे लिए तो एक बहुत बड़ा घाव है, लेकिन आगे तो चलना ही है। हम उनमें से नहीं हैं, जो ये कहें कि इस कानून को वापस ला सकते हैं। कानून से जो फायदे थे, उसकी बात जरूर करेंगे। यहां की जमीनें और सरकारी नौकरियां स्थानीय लोगों को मिलनी चाहिए।’

PDP: अब कश्मीरी खुलकर बात नहीं करते, डरते हैं
PDP के सीनियर लीडर अब्दुल गफ्फार सोफी कहते हैं, ‘5 अगस्त, 2019 के बाद कश्मीरी लोग डरते हैं। वो खुलकर बात नहीं करते। इससे पहले ऐसा नहीं था। तब आतंकी घटनाओं के दौरान भी खुलकर बात करते थे। 5 अगस्त, 2019 के बाद बेवजह लोगों को जेल में डाला गया, इसलिए अब लोग डरते हैं।’

अब्दुल गफ्फार सोफी कहते हैं, ‘हमारी पार्टी जब से वजूद में आई है, तब से AFSPA हटाने की डिमांड कर रही है। अगर इसे हटाया जाता है तो अच्छी बात है।’

नेशनल कॉन्फ्रेंस: CAA मुसलमानों के खिलाफ एजेंडा
जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के चीफ स्पोक्सपर्सन तनवीर सादिक कहते हैं, ‘CAA मुसलमानों के खिलाफ एजेंडा है। इसमें आपने माइनॉरिटी को क्यों अलग किया।’

AFSPA के मुद्दे पर सादिक कहते हैं, ‘इसे हटाने के लिए सबसे पहले हमारी पार्टी ने ही प्रस्ताव दिया था। अब ये इलेक्शन टाइम पर इस तरह की बात कर रहे हैं। अगर कश्मीर में हालात अच्छे हुए हैं तो इसे आज नहीं कल तो हटा दीजिए। इसमें लेट क्यों कर रहे हैं। ये सब तो सिर्फ एक जुमला है।’

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