जानिये मंदिर का इतिहास :
मंदिर ट्रस्ट (बब्बू सेठ ट्रस्ट) के अध्यक्ष जय प्रकाश सोमानी ने बताया कि यहां पहले जंगल हुआ करता था. पेड़ों को झाड़ भी बोलते हैं और इन्हीं झाड़ के बीच एक खंड बना दिया गया, इसलिए इसे झारखंड नाम दिया गया. ये करीब 100 साल पुराना मंदिर है, जबकि झारखंड राज्य तो वर्ष 2000 में बना है. उन्होंने बताया कि मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है. करीब 106 साल पहले 1918 में उनके दादाजी बब्बू सेठ यहां आए थे. यहीं एक संत गोविंदनाथ बाबा तपस्या किया करते थे. उनकी 12 साल की तपस्या पूर्ण हुई थी, उन्हीं के आशीर्वाद से पहले यहां कुआं कोठरी और तिबारा बनवाया गया और फिर मंदिर का निर्माण कराया गया. बाद में 1939 में जब गोविंदनाथ बाबा ने समाधि ली, तो यहीं उनकी समाधि बनाई गई. उनकी धूणी आज भी यहां मौजूद है.
भगवान शिव का पूरा परिवार विराजित :
सोमानी ने बताया कि उनकी बुआ दक्षिण भारत में रहतीं थीं. ऐसे में उनके परिवार का आना-जाना साउथ में था. जयपुर में कोई विशेष तरह का मंदिर बनाए जाने की प्रेरणा हुई. ऐसे में दक्षिण भारत से कारीगरों को बुलाकर, दक्षिण भारतीय शैली में ही मंदिर का निर्माण कराया गया. यहां भगवान शिव का पूरा परिवार बाद में विराजित कराया गया, जिसमें भगवान गणेश, माता पार्वती, स्वामी कार्तिक और विश्व के सबसे बड़े नंदी प्राण प्रतिष्ठित कराए गए. इनके अलावा भगवान शिव के चौकीदार भृंगी और अन्य की प्रतिमाएं भी विराजित की गई हैं.
7 गुरुवार आने पर पूरी होती मनोकामना :
मंदिर पुजारी कन्हैया लाल ने बताया कि मान्यता है कि मंदिर में आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है. दूर-दूर से यहां लोग आते हैं. सावन के चार सोमवार और शिवरात्रि पर तो मेले सा माहौल रहता है. स्थानीय पार्षद और ग्रेटर निगम में समिति चेयरमैन अक्षत खुटेटा ने बताया कि ये प्राचीन मंदिर है और दक्षिण भारतीय शैली में बना जयपुर का इकलौता मंदिर है. इसके अलावा मंदिर में गोविंद बाबा की समाधि है, जिसको लेकर मान्यता है कि वहां कोई 7 गुरुवार को लगातार आए, तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.
All Rights Reserved & Copyright © 2015 By HP NEWS. Powered by Ui Systems Pvt. Ltd.