सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (29 जुलाई) को पटना हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें बिहार सरकार के 65% आरक्षण देने के फैसले को रद्द कर दिया गया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया है। इस पर सितंबर में सुनवाई होगी।
राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में SC-ST, OBC और EBC को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया था। इस फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
हाईकोर्ट ने आरक्षण बढ़ाने के फैसले को 20 जून को रद्द कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
हाईकोर्ट ने क्यों रद्द किया था फैसला
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि रिजर्वेशन इन कैटेगरी की आबादी की बजाय इनके सामाजिक और शिक्षा में पिछड़ेपन पर आधारित होना चाहिए। बिहार सरकार का फैसला संविधान के अनुच्छेद 16(1) और अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन है। अनुच्छेद 16(1) राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए समानता का अवसर प्रदान करता है। अनुच्छेद 15(1) किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है।
75 फीसदी हुआ था आरक्षण का दायरा
जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने OBC, EBC, दलित और आदिवासियों का आरक्षण 65 फीसदी कर दिया था। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को बिहार में सरकारी नौकरियों और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को मिलाकर कोटा 75 प्रतिशत तक कर दिया गया था।
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