युवा पीढ़ी भी बखूबी कर रही परंपराओं का निर्वहन, दीपावली पर होता है बही खातों का भी पूजन
छबड़ा. डिजिटल युग में हिसाब-किताब रखने के लिए सदियों से चली आ रही बही खातों की परंपरा आज भी प्रचलन में है। यही वजह है कि व्यापारी आज भी अपना हिसाब-किताब रखने के लिए बही खातों को प्राथमिकता देते हैं और आमजन भी बही में लिखा लेन-देन ही प्रमाणिक मानते हैं।
आज भी विश्वास कायम
डिजिटल युग में व्यापारी भले ही अपने व्यापार के हिसाब-किताब को कंप्यूटर या लेपटॉप की हार्ड डिस्क में सुरक्षित रखने के लिए उपयोग करने लगे हों, लेकिन सदियों से चले आ रहे बही खातों का प्रचलन अभी भी कम नहीं हुआ है।
बही पूजन की परंपरा
अपने हिसाब किताब के लिए व्यापारी आज भी बही-खातों को प्राथमिकता देते हैं। आमजन में भी बही में लिखा लेन-देन काफी प्रामाणिक माना जाता है। यही वजह है कि दीपावली पर परंपरागत रूप से बही-खाते का पूजन कर नई बहियां डालने की परंपरा बरसों से चली आ रही है। इसे नई पीढ़ी के व्यापारी भी जारी रखे हुए हैं। हालांकि अब दीपावली पर बही खातों के साथ लेपटॉप व कंप्यूटर की भी पूजा होने लगी है।
सजने लगी बही
त्योहार शुरू होने के साथ ही दुकानों पर बही सजना शुरू हो गई है। व्यापारियों की मांग के अनुसार बही की रेंज उपलब्ध कराई जा रही है। बही खातों के विक्रेता ने बताया कि उनके यहां 200 से 240 रुपए किलो की दर पर बही उपलब्ध है।
मुहूर्त से करते हैं पूजन
व्यापारियों ने बताया कि दीपावली पर शुभ घड़ी में विधि-विधान से बही-खातों की पूजा की जाती है। इसके बाद कप्यूटर, लेपटॉप और सीपीयू आदि की पूजा होती है। इसके अलावा कांटा तराजू एवं बांट आदि की पूजा की जाती है।
कंप्यूटर के आने पर भी अस्तित्व बरकरार
दुकानदारों का कहना है कि समय की बचत और काम की आसानी से व्यापारी वर्ग कंप्यूटर की और आकर्षित हुआ है। लेकिन बही खाते का चलन आज भी है। यही वजह है कि दुकानदार और अन्य कारोबारी आज भी बही- खातों में हिसाब रखते हैं। वही, व्यापार छोटा हो या बड़ा बदले जमाने के इस दौर में हर जगह कम्प्यूटर प्रणाली ने तेजी से कदम जमा लिए है। लेकिन हिसाब किताब के लिए पुरानी परंपरा अनुसार बही खातों का ही प्रयोग किया जाता है।
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