नई दिल्ली. मुफ्त चुनावी वादों पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच में सुनवाई शुरू हो गई है। सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि आपने हलफनामा कब दाखिल किया? रात में हमें तो मिला ही नहीं, सुबह अखबार देखकर पता चला। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि यह गंभीर मसला है, मगर कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। लुभावने चुनावी वादे और सोशल वेलफेयर स्कीम में फर्क होता है। चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा है कि फ्री का सामान या फिर अवैध रूप से फ्री का सामान की कोई तय परिभाषा या पहचान नहीं है। आयोग ने 12 पन्नों के अपने हलफनामे में कहा है कि देश में समय और स्थिति के अनुसार फ्री सामानों की परिभाषा बदल जाती है। ऐसे में विशेषज्ञ पैनल से हमें बाहर रखा जाए। हम एक संवैधानिक संस्था हैं और पैनल में हमारे रहने से फैसले को लेकर दबाव बनेगा। 4 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- आयोग ने इस मसले पर पहले कदम उठाए होते तो आज ऐसी नौबत नहीं आती। कोर्ट ने आगे कहा- शायद ही कोई पार्टी मुफ्त की योजनाओं के चुनावी हथकंडे छोड़ना चाहती है। इस मुद्दे को हल करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी दल इस पर बहस नहीं करना चाहेगा।भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की है। इसमें मांग की है कि चुनाव में उपहार और सुविधाएं मुफ्त बांटने का वादा करने वाले दलों की मान्यता रद्द की जाए।
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