नई दिल्ली. भाजपा ने राजस्थान के झुंझुनू जिले से आने वाले और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। पहला, देश की लगभग 44 फीसदी आबादी यानी OBC समुदाय में सियासी मैसेज देने की कोशिश की गई है। दूसरा यह कि राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में नाराज चल रहे जाटों को साधने के लिए ट्रंप कार्ड चल दिया है। खासकर कृषि कानूनों के विरोध में जो किसान नाराज चल रहे थे, भाजपा के इस फैसले के बाद शायद उनकी नाराजगी भी दूर हो जाए। केंद्र सरकार पर हमलावर मणिपुर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को भी एक तरीके से किनारे लगाने में मदद मिलेगी। इससे पहले आदिवासी समाज को साधने के लिए भाजपा ने उड़ीसा की द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया था। यह पूरा सियासी गणित 2022, 2023 और 2024 में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है। राजस्थान में जाट कुल आबादी का करीब 10% हैं। इसमें बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, चूरू, सीकर, नागौर, हनुमानगढ़, जयपुर सहित कई जिलों में जाटों की सबसे अधिक जनसंख्या है। आजादी के बाद से लेकर अब तक प्रदेश में भले ही जाट मुख्यमंत्री ना बना हो, लेकिन राजस्थान की राजनीति में इस समाज का काफी दबदबा है। भाजपा, कांग्रेस और RLP के प्रदेश अध्यक्ष जाट ही हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं, इधर आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल हैं। विधानसभा चुनाव में औसतन 20% विधायक जाट जाति के होते हैं। कुल 200 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 30 से 40 विधानसभा सीटों पर जाट जाति के कैंडिडेट चुनाव जीतते हैं। 5 लोकसभा सीटों पर भी जाट वोट बैंक निर्णायक भूमिका में होता है। इसलिए इन लोकसभा क्षेत्रों से हमेशा जाट प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाते हैं या फिर जाट वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने वाला प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाता हैं। 2023 नवंबर और दिसंबर में विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में भाजपा धनखड़ के जरिए सियासी लाभ उठाने की पूरी कोशिश करेगी।
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