नई दिल्ली.
क्या जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों को संवेदनशील मामलों में बेतुकी बयानबाजी से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दिशा निर्देश बनाने चाहिए? 5 जजों की संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुना दिया है। SC ने बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी से इनकार कर दिया है। जस्टिस एस ए नजीर ने इस पीठ की अध्यक्षता की। पांच जजों की पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना भी शामिल रहे। पांच जजों की पीठ ने कहा कि इसके लिए पहले ही कानून मौजूद हैं। साथ ही कहा कि किसी मंत्री के बयान पर सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए मंत्री ही जिम्मेदार है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस दौरान अदालत ने कहा था कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, जो देशवासियों के लिए अपमानजनक हों। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि यह व्यवहार हमारी संवैधानिक संस्कृति का हिस्सा है और इसके लिए सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों के लिहाज से आचार संहिता बनाना जरूरी नहीं है। दरअसल, जुलाई, 2016 में बुलंदशहर गैंग रेप केस में UP के तत्कालीन मंत्री आजम खान की बयानबाजी के बाद इस मामले की शुरुआत हुई थी। उन्होंने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया था। इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों को संवेदनशील मामलों में बेतुकी बयानबाजी से रोकने के लिए दिशा निर्देश बनाने की मांग की गई थी।
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