सम्पूर्ण भारतवर्ष में अनेकों धर्म के लोग रहते हैं, सभी धर्मों के लोग यहाँ हर वर्ष कई प्रकार के त्यौहार बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। ऐसे ही कई त्यौहारों में से आज हम एक ऐसे त्यौहार के बारे में बात करने वाले है जो वैसे तो यह पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन विशेषकर राजस्थान के मूल निवासियों द्वारा इसे मनाया जाता है।
हम बात कर रहे हैं गणगौर पूजा त्यौहार की, राजस्थान के लोगों के लिए यह त्यौहार अहम होता, यहाँ के लोग इसे बड़े धूमधाम से मानते है। आपको बता दे कि गणगौर पूजा प्रेम एवं पारिवारिक सौहार्द का एक बहुत ही पावन पर्व माना जाता है। गणगौर पूजा कोभारत के विभिन्न राज्यों के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यदि हम गणगौर का संधि विच्छेद करें तो हमारे सामने दो शब्द आते हैं, एक तो ‘गण’ और दूसरा ‘गौर’। यदि हम इन दोनों शब्दों के अलग-अलग अर्थ बताएं तो गण शब्द का अर्थ भगवान शिव जी से है। अर्थात गण शब्द भगवान शंकर जी के लिए प्रयोग किया जाता है। यही इसके विपरीत यदि हम गौर शब्द का अर्थ बताएं तो गौर शब्द का अर्थ माता पार्वती से होता है।
गणगौर पूजा राजस्थान के अन्य पर्वों में से सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। गणगौर पर्व को न केवल राजस्थानी बल्कि भारत के अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है। राजस्थान में इस त्यौहार की काफी मान्यता है। राजस्थान राज्य में गणगौर पूजा को आस्था के साथ मनाया जाता है और गणगौर व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का पूजन किया जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि सभी महिलाएँ इस दिन भगवान शंकर जी और पार्वती जी का पूजन करते हैं। राजस्थानी लोगों की यह मान्यता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती से संबंध में इस गणगौर पूजा को मनाया जाता है। यही कारण है कि गणगौर पूजा की हिंदू धर्म के लोगों में एक अलग मान्यता है। गणगौर पूजा के पीछे हिंदू धर्म देव महादेव और माता पार्वती के संबंध में एक बहुत ही अलग और विशेष प्रकार के रहस्य है।
राजस्थान राज्य में इस त्यौहार को गणगौर पूजन के नाम से जाना जाता है और गणगौर पूजन को भारत के अन्य राज्यों में तीज के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार तीज का त्यौहार केवल पतिव्रता स्त्री मनाती है। भारत के अन्य राज्यों में तो यह त्यौहार केवल 1 दिन के लिए मनाया जाता है, परंतु राजस्थान राज्य में इस त्यौहार को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती है।
गणगौर पूजन को लेकर के बहुत से लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर यह गणगौर पूजन मनाया क्यों जाता है? तो उन लोगों के सवालों का जवाब हम यहां पर विस्तार से जानेंगे। गणगौर पूजन के पीछे एक अलग ही मान्यता है। यह एक ऐसी मान्यता है कि इस दिन लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के समृद्ध रूप को गणगौर कहते हैं, उनका पूजन करती हैं।
गणगौर का त्योहार कुंवारी लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके और इस त्यौहार को विवाहित लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उनके पति को लंबी उम्र की प्राप्ति हो सके और उन्हें सदैव उनके पति का प्रेम मिलता रहे। इस त्यौहार को राजस्थान में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
आपको बता दें कि गणगौर पूजा को लेकर के राजस्थान में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है “तीज तिवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर।” इस कहावत का यही अर्थ है कि सावन की तीज से त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही इस त्यौहार का समापन होता है।
राजस्थान में इस पर्व को लगभग 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है और इसे महिलाओं के सामूहिक दल के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गणगौर की पूजा होली के दूसरे दिन से ही शुरू होती है और इसके उपरांत होली के समापन के लगभग 16 दिनों तक लगातार चलती।
इस त्यौहार को लगातार मनाया जाता ही है, इसके साथ-साथ इस त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार गणगौर का पूजन चैत्र पक्ष की तृतीया को शुरू होता है। पुराणों के अनुसार गणगौर पूजन का आरंभ पौराणिक काल से ही चलता आ रहा है, उसी समय से इस पर्व को प्रत्येक वर्ष बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
बहुत ही पुराने समय की बात है, प्राचीन समय में माता पार्वती ने भगवान शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत ही कठोर तपस्या और कठिन साधना के साथ-साथ व्रत भी रखा था। माता पार्वती ने इतनी कठोर तपस्या की थी कि भगवान शिव जी इन सब के फलस्वरूप माता पार्वती की तपस्या से बहुत ही प्रसन्न हो गए और वे माता पार्वती के समक्ष प्रकट हो गए।
माता पार्वती ने भगवान शिव जी के कहे अनुसार एक वरदान मांगा। माता पार्वती भगवान शिव से वरदान नहीं मांग रही थी, परंतु भगवान शिव ने उन पर जोर डाला कि आप वरदान मांगिए। माता पार्वती ने भगवान शिव से वरदान स्वरूप उन्हें अपने पति के रूप में मांग लिया। भगवान शिव के वरदान के रूप में माता पार्वती की इच्छा पूर्ण हो गई और इसके पश्चात माता पार्वती जी का विवाह शिव शंभू भोलेनाथ जी के साथ हो गया।
इन सभी के पश्चात यह माना जाता है कि भगवान शिव जी ने इस दिन माता पार्वती जी को इस वरदान के साथ-साथ अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। माता पार्वती ने यह वरदान न केवल अपने तक ही सीमित रखा, बल्कि माता पार्वती ने यह वरदान उन सभी महिलाओं को दे दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर भगवान की पूजा पूरे विधि विधान से कर रही थी। ऐसा माना जाता है कि तब से ही गणगौर की पूजा लोगों के द्वारा मनाई जाने लगी और इन सभी के पश्चात गणगौर की पूजा इतनी प्रसिद्ध हो गई कि भारत के अन्य राज्यों में भी मनाई जाने लगी।
राजस्थान की संस्कृति के प्रतीक और आस्था एवं श्रद्धा के लोकपर्व गणगौर की टीएनआई आवाज़ परिवार की तरफ से समस्त दर्शकों को हार्दिक शुभकामनाएं........
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