जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट:आखिर कौन हैं आरोपियों को फांसी से बचाने वाले 18 वकील, इनका खर्च किसने उठाया?

जयपुर बम ब्लास्ट में 4 आरोपियों की फांसी की सजा हाई कोर्ट से रद्द होने के पीछे सबसे बड़ा कारण वकीलों की फौज थी। आरोपियों की ओर से 18 वकीलों ने केस लड़ा, जिनमें कई सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वकील हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि ये 18 वकील आखिर कौन थे और इनका खर्च किसने उठाया?

भास्कर पड़ताल में सामने आया कि वकीलों की इस फौज के पीछे एनएलयू(नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी) दिल्ली के वकीलों का ग्रुप ‘प्रोजेक्ट-39ए’ है। इस ग्रुप ने बिना कोई फीस लिए यह केस लड़ा। इसी के वकीलों की फौज ने राजस्थान एटीएस की जांच के सभी तथ्यों को तथ्यहीन साबित कर दिया। ‘प्रोजेक्ट-39ए’ की टीम फांसी के 80% मामलों में देशभर में वकील मुहैया कराती है।

लोअर कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बाद परिजनों ने विधिक सेवा कानून के तहत प्रदेश सरकार की ओर से मुहैया कराए गए न्याय मित्रों की जगह ‘प्रोजेक्ट-39ए’ से केस लड़ने का आग्रह किया था। इसके बाद ‘प्रोजेक्ट-39ए’ के विभोर जैन, निशांत व्यास, मुजाहिद अहमद व रजत आदि ने केस लड़ा। इनकी वकालत मात्र 5-7 साल की है।

अनुच्छेद-39ए से प्रेरित है ‘प्रोजेक्ट-39ए’


एनएलयू का प्रोजेक्ट-39ए संविधान के अनुच्छेद-39ए (सभी को समान मानवाधिकार साधन) से प्रेरित है। यह ग्रुप आर्थिक व सामाजिक बाधाओं को दूर कर समान न्याय व समान मूल्यों की पैरवी करता है। उद्देश्य जेलों में कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य व मृत्युदंड पर नए सिरे से बातचीत है। सुप्रीम कोर्ट में भी जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड से जुड़े मुद्दे पर ‘प्रोजेक्ट-39ए’ की रिसर्च रिपोर्ट की मदद ली जा रही है।

प्रोजेक्ट के एक वकील ने कहा- बचाव पक्ष ब्लास्ट से इनकार नहीं करता, लेकिन जांच एजेंसी ने जिन्हें अपराधी माना, उन पर अपराध का मकसद व आपराधिक षड्यंत्र साबित नहीं कर पाई। एजेंसी यह भी पता नही कर पाई कि बम ब्लास्ट किसने किए? किसी को ऐसे ही अंदर नहीं कर सकते।

 

प्रोजेक्ट-39ए ने ऐसे फेल की एटीएस जांच की एक-एक दलील

 

  •  ब्लास्ट की जिम्मेदारी लेने के लिए जहां से मेल भेजा गया, उस कैफे के कम्प्यूटर व रजिस्टर जब्त नहीं किए। अन्य सबूत जुटाने के लिए स्थानीय पुलिस को जांच में शामिल नहीं किया।
  • मीडिया हाउस को मिले ओरिजनल मेल की जगह वर्ड फाइल पेश की। साबित नहीं हुआ कि मेल शाहबाज ने किया। कोर्ट में ‘65बी’ सर्टिफिकेट भी नहीं दिया, जिससे ईमेल की वैद्यता साबित होती। मीडिया हाउस के एडिटर व तत्कालीन एडीजी जैन की गवाही नहीं कराई।
  • जांच एजेंसी अहमदाबाद बम ब्लास्ट के तथ्य जुटाने वहां गई। बताया कि इसके तार इन्हीं आरोपियों से जुड़े हैं, लेकिन 5 साल बताया कि अहमदाबाद में किससे मिले और क्या सबूत लाए।
  •  जांच एजेंसी ने शाहबाज के कैफे वाले कम्प्यूटर को जब्त कर 8 दिन बाद उसकी सीडी बनाई। फिर कोर्ट की अनुमति बिना सीडी अपने पास रखी। सीडी को एफएसएल नहीं भेजा। पेश सीडी भी रीराइट थी।
  •  यह साबित नहीं कर पाए कि शाहबाज 14 मई को ईमेल भेजने लखनऊ से साहिबाबाद गया था। उसके 13-14 मई को घर पर रहने के सबूत भी रिकार्ड में शामिल नहीं किए।
  •  जांच एजेंसी ने 2 सितंबर 2008 को साइबर कैफे मालिक को समन जारी करवाया। समन साहिबाबाद में एक दिन में तामील हो गया। वे दूसरे दिन ही 3 सितंबर शाहबाज की जेल में शिनाख्त परेड में शामिल हुए। जेल रजिस्टर के अनुसार कैफे मालिक पहले से ही जेल में था।

सरकार ने न्याय मित्र दिए, आरोपियों के परिजनों ने प्रोजेक्ट 39ए को चुना


विशेष कोर्ट: शाहबाज हुसैन को न्याय मित्र एडवोकेट सुरेश व्यास दिए। आरोपी मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी व सलमान के लिए न्याय मित्र एडवोकेट पेकर फारूख लगाए।
फैसला: 20 दिसंबर 2019 को विशेष कोर्ट ने सैफुर्रहमान, मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ उर्फ करीऑन व मोहम्मद सलमान को फांसी की सजा सुनाई। शाहबाज को दोषमुक्त किया था।
हाईकोर्ट: आरोपियों ने न्यायमित्र की बजाय ‘प्रोजेक्ट-39ए’ की मदद से सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के सीनियर वकीलों से पैरवी कराई। पूरा रिसर्च खुद प्रोजेक्ट की टीम ने किया।

सरकार ने न्याय मित्र दिए, आरोपियों के परिजनों ने प्रोजेक्ट 39ए को चुना
प्रोजेक्ट ने शाहबाज की ओर से अधिवक्ता निशांत व्यास व मुजाहिद अहमद, सैफुर उर्फ सैफुर्रहमान की ओर से सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन, सहयोगी अधिवक्ता विभोर जैन, शिवम शर्मा, मयंक सप्रा, सैयद सआदत अली, ए सीतारमण, राघव तन्खा व स्तुति रॉय को लगाया। वहीं, सलमान के नाबालिग मामले में सुप्रीम कोर्ट व दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता त्रिदीप पारीक, सीमा मिश्रा। अन्य आरोपियों के मामले में अधिवक्ता श्रीसिंह, सिद्दार्थ सतीजा, रजत कुमार, तुषारिका माटो, इस्पिता अग्रवाल, आकाश सचन, जेहरा खान, विशाल , हर्ष बोहरा, दीषा द्ववेदी, अशोक अग्रवाल व अदिति सारस्वत से पैरवी कराई।
फैसला: 29 मार्च को सुनाए फैसले में निचली कोर्ट के फांसी की सजा के आदेश को रद्द कर चारों आरोपियों को दोषमुक्त किया।

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