ऐसे हुई धनतेरस मनाने की शुरुआत, भगवान विष्णु के वामन अवतार से है संबंध

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार, इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ होता है। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धनवंतरि की पूजा का विशेष महत्व है। दिवाली के 5 दिवसीय त्योहार में सबसे पहले दिन धनतेरस का पर्व आता है और इस तरह रोशनी के पर्व दिवाली की शुरुआत होती है। इस साल यह पर्व 25 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। ऐसी मान्यता है कि भगवान धनवंतरि भगवान विष्णु के अंशावतार हैं। सृष्टि में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरि का अवतार में जन्म लिया था। भगवान धनवंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।  धनतेरस मनाए जाने के पीछे एक अन्य पौराणिक कथा यह भी है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की तिथि पर देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ी थी। इस कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वामन के अवतार में प्रकट हुए लेकिन शुक्राचार्य ने वामन रूप में भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से बोले कि ‘वामन दान में कुछ भी मांगे तो मत देना, वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।’ हालांकि राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में इस तरह रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से बाहर आ गए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से पूरी पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ दे दिया और इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

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