दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल वीके सक्सेना एक बार फिर आमने-सामने हैं. दिल्ली सरकार द्वारा तैनात 400 विशेषज्ञों को उपराज्यपाल ने हटा दिया है. इन 400 निजी व्यक्तियों की नियुक्ति दिल्ली सरकार द्वारा 23 विभागों, बोर्ड, निगमों और PSU’s में फेलो, एसोसिएट फेलो-सलाहकार/उप सलाहकार आदि पदों पर की गई थी.
उपराज्यपाल दफ्तर द्वारा जारी बयान के मुताबिक, दिल्ली सरकार द्वारा इन 400 निजी व्यक्तियों की नियुक्तियों में एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण नीति का पालन नहीं किया गया और बिना ज़रूरी योग्यता और अनुभव के ही बैक डोर एंट्री के माध्यम से इन्हें भर दिया गया.
इन चार सौ निजी व्यक्तियो को उनके पद हटाने को लेकर उपराज्यपाल ने तीन आधार बताए. एक, आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया गया या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया या योग्यता / अनुभव को पूरा किए बिना पिछले दरवाजे से प्रवेश कराया गया.
उपराज्यपाल के इस फैसले पर दिल्ली सरकार भड़क गई है. दिल्ली सरकार ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि उपराज्यपाल को इन व्यक्तियों हटाने का अधिकार नहीं है. एलजी गैरकानूनी और संविधान के विरुद्ध काम कर रहे हैं. दिल्ली सरकार ने बताया कि हटाये गए सभी लोग टॉप कॉलेज और यूनिवर्सिटी से हैं. ये सभी लोग आईआईएम अहमदाबाद, दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स, NALSAR, जेएनयू, एनआईटी, लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स, कैंब्रिज आदि से पढ़े हुए हैं.
दिल्ली सरकार ने अपने बयान में आगे कहा कि उपराज्यपाल वीके सक्सेना दिल्ली को बर्बाद करना चाहते हैं. इन 400 प्रतिभाशाली युवाओं को इसलिए सजा दी जा रही है कि उन्होंने दिल्ली सरकार के साथ काम करना चुना है. इस फैसले को लेने से पहले उपराज्यपाल की तरफ से एक आदत कारण बताओ नोटिस या कोई सफाई नहीं मांगी गई है. दिल्ली सरकार LG के इस फैसले को कोर्ट में चैलेंज करेगी.
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