राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले मंदिरों में ‘छोटे कपड़ों’ में दर्शन पर प्रतिबंध को लेकर ‘बड़ी सियासत’

राजस्थान में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) से पहले एक नया मुद्दा सियासत पकड़ने लगा है. उदयपुर के 400 साल पुराने जगदीश मंदिर (Jagdish Mandir) समेत कुछ मंदिरों ने श्रद्धालुओं के लिए ‘ड्रेस कोड’ लागू करते हुए छोटे कपड़ों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है. गहलोत सरकार (Gehlot Government) के देवस्थान विभाग ने प्रतिबंध के पोस्टर हटवाए तो हिंदू संगठन विरोध पर उतर आए. उनका आरोप है कि देवस्थान विभाग को ही सनातन संस्कृति की परवाह नहीं है. इसके लिए हिंदू संगठनों से मुख्यमंत्री को चिठ्ठी भेजी है.

प्रदेश के कुछ मंदिरों के बाहर छोटे कपड़ों को लेकर पोस्टर-होर्डिंग को आस्था स्थलों पर नई ड्रेस कोड के तौर पर देखा जा रहा है. दूसरी ओर कुछ संत-महंतों ने मंदिरों में ड्रेस कोड को ‘विधर्मियों’ की चाल बताकर इस पर नई बहस छेड़ दी है.

यूं तो प्रदेश के कुछ मंदिरों में पहले से ही अश्लील प्रदर्शन पर रोक के लिए छोटे कपड़ों, कटी-फटी जिंस आदि पर पहले से ही अघोषित रोक है. लेकिन यह मामला तब सुर्खियों में आया, जबकि 400 साल पुराने उदयपुर के जगदीश मंदिर में ड्रेस कोड लागू करते हुए छोटे कपड़ों पर रोक लगाई. रोक संबंधी बैनर-पोस्टर की जानकारी मिलने के बाद मंदिर पहुंची देवस्थान विभाग की टीम ने इनको हटा दिया. जगदीश मंदिर के पुजारी हेमेंद्र के मुताबिक जिन देवस्थान विभाग को मर्यादा की पालन करनी चाहिए. वहीं मर्यादा तोड़ रहे हैं. लोग अमर्यादित कपड़े पहनकर मंदिर में आ रहे थे. देवस्थान विभाग ने पोस्टर हटा कर सनातन संस्कृति के साथ गलत किया है. भक्तों और हिंदू संगठनों ने ये पोस्टर फिर से लगा दिए हैं.

प्रदेश के मंदिरों में ड्रेस कोड को लेकर बोर्ड-बैनर लगाने को लेकर सियासी मुद्दा भी गर्माया है. जहां देवस्थान मंत्री शकुंतला रावत ने कहा है कि भारतीय संस्कृति में जो परंपरा है, इसमें किसी पाबंद नहीं कर सकते कि क्या पहने और क्या नहीं. मंदिर जाने वाले श्रद्धालु स्व-विवेक से कपड़े पहनते हैं. दूसरी ओर कांग्रेस के शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने कहा कि मंदिर जाने वाले भक्तों के लिए कहा कि सभी को परंपराओं का पालन करना चाहिए. उधर, शहर के संत-महंतों ने कहा है कि सनातन धर्म में यह कहीं नहीं लिखा है कि क्या कपड़े पहनकर मंदिर जाना चाहिए.

मंदिर में प्रवेश से पहले कैसी वेशभूषा होनी चाहिए, कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में तो पहले से ही इसके नियम हैं. देश में भी कुछ मंदिर ऐसे हैं, जहां निर्धारित वेशभूषा में नहीं आने पर गर्भगृह में दर्शन करने नहीं दिया जाता. अब प्रदेश के कई मंदिरों में पोस्टर लगाकर भक्तों से ड्रेस कोड में आने की अपील की जा रही है. कुछ मंदिरों में तो चेंजिंग रूम भी बनाए गए हैं, वहीं कई मंदिर इसकी तैयारी कर रहे हैं. आइये जानते हैं  कुछ मंदिरों में कपड़ों के लेकर क्या नियम हैं…

भीलवाड़ा के कोटड़ी स्थित चारभुजानाथ मंदिर में ड्रेस कोड तीन महीने पहले से ही लागू है. ट्रस्ट के अध्यक्ष सुदर्शन गाड़ोदिया के मुताबिक हमने पहले ही मंदिर में फैसला लेकर ड्रेस कोड के लिए पोस्टर-बैनर लगवा दिए थे. मंदिर में आने वाले युवा सभ्य कपड़े पहनकर आएं और अपनी संस्कृति को पहचानें, इसके लिए ड्रेस कोड की शुरुआत की गई है. आने वाले समय में मंदिर में चेजिंग रूम बनाने पर भी विचार चल रहा है.

उदयपुर के जगदीश मंदिर में ड्रेस कोड के पोस्टर और बोर्ड लगने के तीन दिन बाद जयपुर के करीब 100 वर्ष पुराने झारखंड महादेव मंदिर में भी ड्रेस कोड का बोर्ड लगाने की खबर सामने आई है. मंदिर के मुख्य गेट के बाहर पोस्टर लगाया गया. इसमें हाफ पैंट, बरमूडा, मिनी स्कर्ट, नाइट सूट, कटी-फटी जीन्स, फ्रॉक पहनकर मंदिर में नहीं आने की अपील की गई. मंदिर प्रबंधन के अनुसार जल्द ही यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पारंपरिक ड्रेस कोड लागू किया जाएगा.

राजस्थान ही नहीं, पूरे देश में विख्यात सालासर बालाजी धाम मंदिर के पुजारी और श्री हनुमान सेवा समिति के अध्यक्ष यशोदानंदन कहते हैं कि मंदिर आस्था के केंद्र होते हैं. लेकिन कई बार लोग फटी जींस, मिनी स्कर्ट और छोटे कपड़ों में आ जाते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. भगवान के द्वार सबके लिए खुले हैं, इसलिए हम भक्तों के मंदिर में आने पर पाबंदी नहीं लगा सकते. लेकिन जो भी भक्त यहां आएं, उन्हें गरिमामय कपड़े पहनकर आना चाहिए.

सिरोही जिले के कृणगंज में स्थित जैन धर्म के प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्री पावापुरी जैन मंदिर में तो एक चेंजिंग रूम भी बना रखा है. मैनेजिंग ट्रस्टी महावीर जैन बताते हैं कि अगर कोई गरिमामय कपड़े पहनकर नहीं आता है, तो उसे मंदिर के चेजिंग रूम में दूसरे कपड़े दिए जाते हैं. इसमें पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए कपड़ों की व्यवस्था है. कपड़े बदलने के बाद ही मंदिर में प्रवेश देते हैं.

पुष्कर के ब्रह्मा जी मंदिर के पुजारी कृष्ण गोपाल के मुताबिक मंदिर में दर्शन करने के लिए भक्तों का सभ्य कपड़ों में होना जरूरी है. मंदिर कोई पर्यटन स्थल तो है नहीं कि छोटे और अश्लील कपड़े पहनकर घूमने आ जाएं. इसके लिए पहले भी मंदिर के बाहर एक बोर्ड लगाया गया था. जिसमें लोगों से अपील की थी कि वे सभ्य कपड़े पहनकर ही आएं. लेकिन बिपरजॉय तूफान में वह बोर्ड उखड़ गया. अब मंदिर समिति फिर से बोर्ड लगाएगी.

अजमेर के अंबे माता मंदिर की देखरेख करने वाले जय अम्बे नवयुवक सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष राजेश टंडन के मुताबिक दो माह पहले ही यहां ड्रेस कोड की शुरुआत हो गई थी. तब मंदिर के बाहर शॉर्ट टी शर्ट, शॉर्ट जींस, बरमुडा, मिनी स्कर्ट, नाइट सूट जैसी ड्रेस पहन कर आने पर मंदिर के बाहर से ही दर्शन करने का पोस्टर लगाया था. मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं से अनुशासन और सभ्य ड्रेस कोड अपनाने की अपील की थी.

मंदिरों में ड्रेस कोड आध्यात्मिक और संस्कृति से जुड़ा मुद्दा है. इसका बड़ा उदाहरण सिरोही जिले में 1298 में स्थापित सारणेश्वर महादेव मंदिर है. इसमें देवझूलनी एकादशी को मेला लगता है. मंदिर में उसी को प्रवेश मिलता है जो देवासी समाज की पारंपरिक ड्रेस को पहनकर आता है. अगर कोई देवासी भी पारंपरिक वेशभूषा में नहीं आता है, तो उसे प्रवेश नहीं मिलता है. यह ड्रेस कोड संस्कृति और एकता को दर्शाता है.

उधर, उदयपुर में ड्रेस कोड के पोस्टर हटाने से हिंदूवादी संगठनों में रोष है. बजरंग सेना मेवाड़, मेवाड़ क्षत्रिय महासभा (गिर्वा) और महाराणा प्रताप ग्रुप आक्रोश जताते हुए सीएम गहलोत को पत्र भेजा है.  कमलेंद्र सिंह पंवार, सुनील कालरा, एडवोकेट उदय सिंह देवडा, शिवदान सिंह देवड़ा आदि ने कहा है कि  ड्रेस कोड बहुत अच्छी पहल है, जो सनातन धर्म और संस्कृति को आगे बढ़ाती है. देवस्थान विभाग द्वारा पोस्टर हटाकर बहुत गलत हरकत की गई है. दूसरी ओर विभाग ने कहा है कि प्रदेश में करीब 700 मंदिरों की देखरेख उनके द्वारा की जाती है. मंदिरों में ड्रेस कोड पर कोई आदेश जारी नहीं किया.  ऐसे मंदिरों में ड्रेस कोड लागू करने से पहले विभाग की परमिशन लेनी होगी.

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