जयपुर (संदीप अग्रवाल): कर्नाटक हार के बाद बीजेपी का रुख गहन चिंता की ओर बढ़ेगा. आखिर धन, बल और तमाम चुनावी मशीनरी के बाद भी बीजेपी के हाथ से कर्नाटक क्यों फिसल गया? क्या वजह थी कर्नाटक हार की. आज का दिन काफी अहम है, कर्नाटक समेत देश के लिए और उससे भी अहम है कांग्रेस के लिए.क्योंकि एक बाद एक राज्य खोने के बाद कांग्रेस को एक ऐसी बड़ी जीत की जरूरत थी जहां से हार के जख्म कम हो सके. साथ ही कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नया जोश आ सके.कर्नाटक के 36 मतगणना केंद्रों पर 224 विधानसभा के वोटों की गिनती जारी है.
पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में
अभी तक के रुझानों में कांग्रेस सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को करारी मात देकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आती नजर आ रही है.अभी तक के रुझानों में बीजेपी 80 सीटों के नीचे सिमटती हुई दिख रही है. अब बीजेपी की करारी हार के बाद चर्चा ये हो रही है कि आखिर इस हार की वजह क्या थी. सियासी गलियारों में सीएम फेस का मजबूत न होना इस हार की एक मजबूत वजह बताई जा रही है.
दक्षिण में बीजेपी के लिए मुश्किलें
जिसकी वजह से बीजेपी के सारे दांव-पेंच निसतेज साबित हो गएं.जानकारों कि मानें तो येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया. वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे, जिसकी वजह से कांग्रेस का विजयी रथ दक्षिण में बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
भ्रष्टाचार का मुद्दा: कर्नाटक की जनता बीजेपी को भ्रष्टाचार मामले में भी बड़ी पनिसमेंट दी है. वहीं, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर घेराबंदी करने के लिए शुरू से बड़ा अभियान चलाया था, जिसका नाम था '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन'.ये एजेंडा कांग्रेस की जीत में काफी मददगार साबित हुआ.करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा.
अपनों को ही नहीं साध पाई BJP
लिंगायत, दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय से बीजेपी को बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन ये वोट बैंक भी बीजेपी के हाथ से इस तरह फिसला कि बीजेपी कुछ समझ ही नहीं पाई. जानकारों कि मानें तो लिंगायत से बीजेपी को बड़ी आशा थी लेकिन हाथ में निराशा लगी.ध्रुवीकरण का दांव भी कर्नाटक में काम नहीं आया.
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