ओडिशा के बालासोर में हुए दुखद ट्रेन हादसे के 10 दिन बाद भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अपने सगे, संबंधियों, परिचितों के शव लेने के लिए डीएनए टेस्ट का इंतेजार कर रहे हैं. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के पूर्णिया के एक दिहाड़ी मजदूर बिजेंद्र ऋषिधर को जब 2 जून की ट्रेन दुर्घटना में अपने 21 वर्षीय बेटे सूरज कुमार की मौत के बारे में पता चला तो उन्होंने ओडिशा जाने के लिए पैसे उधार लिए. उन्हें उम्मीद थी कि उनके इकलौते बेटे का शव जल्द से जल्द अंतिम संस्कार के लिए मिल जाएगा.
ऋषिधर ने सूरज कुमार के बटुए में मिले आधार कार्ड के आधार पर 5 जून को भुवनेश्वर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मुर्दाघर में शव (संख्या 159) की पहचान की. लेकिन एक हफ्ते बाद भी ऋषिधर का इंतजार जारी है. अधिकारी उनके बेटे के अवशेष उन्हें सौंपने से पहले डीएनए परीक्षण के परिणाम का इंतजार कर रहे थे. ऋषिधर कहते हैं, अब एक सप्ताह से अधिक का समय बीत चुका है और डीएनए टेस्ट के नतीजे कब आएंगे, यह कोई नहीं जानता. मैं एक दिहाड़ी मजदूर हूं और मैंने ओडिशा जाने के लिए पैसे उधार लिए थे. मैंने पिछले सप्ताह में एक भी रुपया नहीं कमाया है. वह लगभग दर्जन भर अन्य लोगों के साथ एम्स के पास एक निजी गेस्ट हाउस में रह रहे हैं.
इसी तरह पश्चिम बंगाल के मालदा के अशोक रबी दास अपने 20 वर्षीय भाई कृष्णा के क्षत-विक्षत शव को पाने के लिए 10 दिनों से इंतजार कर रहे हैं, जो यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस से बेंगलुरु से लौट रहे थे. दास ने 4 जून को कृष्णा के शरीर की पहचान बेल्ट, पैंट और शर्ट से की थी. लेकिन उन्हें बॉडी नहीं दी गई और डीएनए मैचिंग के लिए अपना ब्लड सैंपल देने को कहा गया. वह कहते हैं, ‘दुर्घटना के तुरंत बाद लोगों को अपने प्रियजनों के शव मिले. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि अधिकारियों ने मेरे भाई का शव क्यों नहीं सौंपा जबकि मैं उसके कपड़ों से उसकी पहचान कर सकता था. मुझे नहीं पता कि डीएनए टेस्ट के नतीजे आने में कितना समय लगेगा.’
दो दशकों में, 2 जून 2023 को भारत की सबसे घातक रेल दुर्घटना में 289 लोग मारे गए. अधिकारियों ने कहा कि 2 जून से 208 शवों की पहचान की जा चुकी है. लेकिन कुछ शवों पर कई दावों के साथ, राज्य सरकार ने डीएनए सैंपलिंग का फैसला किया. बिहार के बेगूसराय के अजीत कुमार ने कहा कि वह 6 जून से अपने 23 वर्षीय भाई सुजीत कुमार के शव का इंतजार कर रहे हैं. वह कहते हैं, ‘एम्स के मुर्दाघर में बॉडी नंबर 27 मेरे भाई का है, क्योंकि इसमें महाकाल का टैटू है. मैं अपने भाई को भी पहचान सकता हूं, क्योंकि उसके हाथ के अंगूठे का नाखून बड़ा था. लेकिन मैं 6 जून से डीएनए सैंपल टेस्ट का इंतजार कर रहा हूं.’
एम्स भुवनेश्वर में एनाटॉमी के प्रोफेसर प्रवेश रंजन त्रिपाठी का कहना है कि शवों से लिए गए डीएनए सैंपल की गुणवत्ता सहित कई अन्य कारकों के कारण यह प्रक्रिया बोझिल है. हिन्दुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में प्रोफेसर पीआर त्रिपाठी के हवाले से लिखा, ‘हमने परीक्षण के लिए 75 नमूने दिल्ली भेजे हैं. लेकिन उन्हें कम से कम 10 से 15 दिन लगेंगे. हम यह भी अनिश्चित हैं कि कितने नमूने मेल खाएंगे. कुछ मामलों में, पिता, माता या भाई-बहनों के बजाय चाचा-भतीजों के नमूने लिए गए हैं जो फर्स्ट डिग्री के रिलेशन होते हैं. प्रथम श्रेणी के संबंधों में डीएनए मिलान की सटीकता अधिक होती है.’
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