बिहार की राजधानी पटना में हुई बैठक को तमाम विपक्षी दल सफल बता रहे हैं. साथ ही विपक्षी दलों ने एकता को मजबूती देने के लिए एक बार फिर 12 जुलाई को शिमला में अगली बैठक करने का ऐलान किया है. हालांकि भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए आगे की राह इतनी आसान नजर नहीं आती है. आम आदमी पार्टी और ममता बनर्जी की टीएमसी कांग्रेस के प्लान पर बट्टा लगाती हुई नजर आ रही हैं. इन दोनों दलों की विस्तारवादी नीति के चलते कांग्रेस पार्टी कुछ असहाय सी नजर आ रही है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या विपक्षी दलों के बीच शिमला में होने वाली अगली बैठक क्या दूरियां मिटा पाएगी?
अरविंद केजरीवाल की पार्टी के तेवर कांग्रेस के खिलाफ काफी तल्ख हैं. पटना में हुई बैठक से पहले आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने यह बयान दिया था कि आगामी संसद सत्र के दौरान राज्यसभा में दिल्ली की ताकत हथियाने के लिए अध्यादेश पारित न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस ने भाजपा के साथ एक समझौता किया था. इसके बाद पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का एक बयान सामने आया, जिसमें कहा गया कि पटना में विपक्षी दलों की बैठक एक वेडिंग पार्टी (शादी समारोह) की तरह है जिसका हिस्सा कांग्रेस को बनना पढ़ रहा है.
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की तरफ से पटना में हुई बैठक के दौरान कहा गया कि कुछ पार्टी चुनाव लड़ रही हैं, जिससे बीजेपी को ही फायदा पहुंच रहा है. एंटी-बीजेपी वोट ऐसा करने से कट रहे हैं. कांग्रेस के पास ऐसा कहने की वजह भी है, क्योंकि गोवा और गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया था.
सूत्रों का कहना है कि ‘आप’ की तरफ से यह आश्वासन दिया गया है कि वो अपने विस्तार के प्लान को 2024 लोकसभा चुनाव तक के लिए टाल सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सच में संभव है? अंत में आप और टीएमसी दोनों को ही अपने काडर को मनाना होगा जो चाहते हैं पार्टी सभी चुनाव का हिस्सा बनें.
इस साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. जो इन दोनों पार्टियों के लिए लिटमस टेस्ट की तरह होगा. क्या आम आदमी पार्टी इन चुनावों से दूर रहेगी. फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता. पटना मीटिंग से पहले ही अरविंद केजरीवाल ने राजस्थान कांग्रेस और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को केंद्र के अध्यादेश और करप्शन के मुद्दे पर तलाड़ा था. फिलहाल ऐसा नहीं दिखता कि आप और टीएमसी अपनी पार्टी के विस्तान के प्लान पर चुप रहने वाले हैं.
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