छोटी-सी चिप, बनाना बड़ा मुश्किल, भारत ने लिया सेमीकंडक्टर निर्माण का संकल्प, कैसी होगी आगे की राह

सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में भारत लगातार अपने कदम बढ़ रहा है, लेकिन राह में कई चुनौतियां हैं. नई-नई तकनीकों से लैस इस दुनिया में सेमीकंडक्टर चिप महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. बिना सेमीकंडक्टर के किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की कल्पना नहीं की जा सकती है. सरल शब्दों में कहें तो सेमीकंडक्टर चिप एक तरह से हर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का दिल है. इस विशेष क्षेत्र में चिप निर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने सेमीकॉन इंडिया 2023 समिट के जरिए देश और दुनिया के सामने अपना विजन रखा.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में सेमीकंडक्टर की खपत 2026 तक 80 बिलियन डॉलर और 2030 तक 110 बिलियन डॉलर को पार करने की उम्मीद है. इससे यह साफ होता है कि चिप निर्माण भारतीय अर्थव्यवस्था और व्यापार जगत के लिए क्या मायने रखता है. लेकिन, सवाल है कि इस दिशा में अब तक भारत में क्या तैयारी हुई है, कौन-सी कंपनियां सेमीकंडक्टर निर्माण में लगी हुई हैं, क्या-क्या चुनौतियां हैं. चूंकि सेमीकंडक्टर की आपूर्ति के लिए पूरी दुनिया चीन, ताइवान और साउथ कोरिया पर निर्भर है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि सेमीकंडक्टर निर्माण का ग्लोबल हब बनने का, जो संकल्प भारत ने लिया है, वह कैसे पूरा होगा?

2022 में इंडियन सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री 27 बिलियन डॉलर यानी 22 खबर रुपये से ज्यादा की थी. इसमें से 90 फीसदी चिप की आपूर्ति के लिए हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. वहीं, 2026 तक इसकी खपत 80 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. कोरोना महामारी के बाद सेमीकंडक्टर निर्माण में कमी आने के बाद भारतीय ऑटो मोबाइल समेत अन्य तकनीकी उद्योग प्रभावित हुए थे, क्योंकि महंगी कारों से लेकर स्मार्टफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है. भारत और अमेरिका समेत यूरोपीय देशों को सेमीकंडक्टर की आपूर्ति के लिए चीन और ताइवान पर निर्भर रहना पड़ता है.

सेमीकंडक्टर के उपयोग और देश में इसके निर्माण के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग को लेकर 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एक इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम शुरू किया, जिसका उद्देश्य भारत में चिप निर्माण के लिए जरूरी इको-सिस्टम डेवलप करना और इसके लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करना है.

देश में आने वाले वर्षों में सेमीकंडक्टर्स की मांग तेजी से बढ़ेगी. सबसे ज्यादा डिमांड कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, इलेक्ट्रिक व्हीकल, स्मार्टफोन्स इंडस्ट्री में होगी. वहीं, टेलीकॉम सेक्टर में पूरी तरह से 5G सर्विसेज के आने के बाद IoT डिवाइस का इस्तेमाल तेजी से बढ़ेगा, इस वजह से स्मार्ट इलेक्ट्रिक डिवाइसेस की मांग भी बढ़ेगी. भारत हर साल 100 अरब डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात करता है. इसमें 30 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले ग्लास शामिल हैं. सेमीकंडक्टर चिप निर्माण कुछ ही देशों में केंद्रित है. ताइवान दुनिया के 60% से ज्यादा सेमीकंडक्टर का उत्पादन करता है और दक्षिण कोरिया 100% सबसे उन्नत चिप्स (10 नैनोमीटर से कम) बनाता है.

भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए माइनिंग और मिनरल क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वेदांता ग्रुप सबसे आगे है. इसके लिए कंपनी जरूरी संसाधन और टेक्नोलॉजी पार्टनर ढूढ रही है. वेदांता ग्रुप की महत्वाकांक्षी सेमीकंडक्टर निर्माण परियोजना से ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन अलग हो चुकी है. हालांकि, कंपनी के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने कहा कि इसे हमारे संकल्प पर कोई असर नहीं होगा, क्योंकि ज्वाइंट वेंचर के लिए कई भागीदार तैयार हैं.‘सेमीकॉन इंडिया 2023’ के दौरान वेदांता ग्रुप के प्रमुख अनिलअग्रवाल ने यहां तक कहा दिया कि हम ढाई साल में भारत विनिर्मित चिप उपलब्ध करा देंगे.

वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने कहा, ‘‘इस साल कंपनी सेमीकंडक्टर फैब और डिस्प्ले फैब के क्षेत्र में कदम रखेगी. यह सरकारी मंजूरियों पर निर्भर करेगा.’’उन्होंने कहा कि वेदांता लिमिटेड ने भारत में अबतक 35 अरब डॉलर का निवेश किया है और कंपनी आने वाले वर्षों में विभिन्न कारोबार में उल्लेखनीय निवेश करेगी.

इसके अलावा, अबू धाबी स्थित नेक्स्ट ऑर्बिट और इज़राइल के टॉवर सेमीकंडक्टर द्वारा समर्थित आईएसएमसी ने कर्नाटक में फैब्रिकेशन सुविधा स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन, सरकार ने इंटेल और टावर सेमीकंडक्टर के बीच लंबित मर्जर के कारण इस प्रस्ताव पर विचार नहीं किया. वहीं, कुछ और विदेशी कंपनियों ने भी भारत में सेमीडंक्टर निर्माण के क्षेत्र में निवेश करने के लिए रूचि दिखाई है.

सेमीकंडक्टर्स विनिर्माण बहुत ही कठिन प्रौद्योगिकी क्षेत्र है, जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी अवधि और टेक्नोलॉजी में तेजी से होने वाले बदलाव जैसी चुनौतियां शामिल हैं. इसके लिए महत्वपूर्ण और निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है, जो करीब 20 अरब डॉलर है.

सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए ग्रीनफील्ड लोकेशन पर इको-सिस्टम को विकसित करना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इसके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है जिसमें लगातार बिजली की उपलब्धता, भारी मात्रा में स्वच्छ पानी और महंगी जल शोधन सुविधाएं स्थापित करने की आवश्यकता होती है. चिप निर्माण के लिए सैकड़ों रसायनों और गैसों की भी आवश्यकता होती है.

देश में सेमीकंडक्टर के विनिर्माण न केवल ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत होगी, बल्कि इससे देश में लाखों नौकरियां पैदा होंगी और अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ने में मदद मिलेगी. आने वाले कुछ वर्षों में इस बात की भी संभावना है कि भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया को पछाड़कर आगे निकल जाए और दुनियाभर में बड़ा चिप आपूर्तिकर्ता बन जाए.

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