मप्र का दिल है भोपाल और आसपास के जिलों का इलाका. राजधानी भोपाल पर करीबी जिले विदिशा, रायसेन और सीहोर का चक्र है. शायद यही वजह है कि राजधानी का राजनीतिक माहौल इन जिलों पर बराबर असर करता है. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का प्रदर्शन लगभग 2013 के चुनाव की तरह ही रहा. तब भाजपा को 19 सीटें मिलीं थीं और कांग्रेस को 4. एक सीट पर निर्दलीय की जीत हुई थी.
2018 के चुनाव में कांग्रेस को 5 सीटों का फायदा हुआ था, लेकिन 2020 की राजनीतिक उथल-पुथल में कांग्रेस नेता डॉ. प्रभुराम चौधरी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए. उपचुनाव हुए तो कांग्रेस की यह सीट भाजपा के खाते में चली गई. राजगढ़ जिले की ब्यावरा सीट के विधायक गोवर्धन दांगी के कारण इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने अपनी सीट बरकरार रखी. इस तरह अभी भोपाल संभाग की 25 सीटों में से भाजपा की 17 और कांग्रेस की 8 सीटें हैं.
मध्य भारत का यह भोपाल अंचल भाजपा-कांग्रेस के बड़े नेताओं का कार्यक्षेत्र रहा है. वर्तमान मुख्यमंत्री इसी संभाग के विदिशा और सीहोर जिले के बुधनी से चुनाव लड़ते आए हैं. बुधनी तहसील में ही उनका गृहग्राम जैत है. भाजपा के वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा, बाबूलाल गौर के चुनाव क्षेत्र भोपाल और रायसेन जिले में रहे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी भी रायसेन जिले के भोजपुर से चुनाव लड़ चुके हैं. क्षेत्र के कांग्रेस-भाजपा के कई नेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान मिलता रहा है. वर्तमान में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बुधनी, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी सांची और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास कैलाश सारंग भोपाल की नरेला सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. इससे पहले 2018 में कमलनाथ सरकार में भोपाल दक्षिण पश्चिम क्षेत्र के विधायक पीसी शर्मा और खिलचीपुर विधायक प्रियव्रत सिंह मंत्री थे.
सांची से विधायक रहे डॉ. प्रभुराम चौधरी ने मार्च 2020 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. 2018 के चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित शेजवार को 10 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित किया था. यही वजह है कि प्रभुराम की भाजपा में एंट्री पर जमकर विरोध भी हुआ. उपचुनाव में भाजपा से भितरघात की आशंका भी थी, लेकिन डॉ. चौधरी 2018 के मुकाबले छह गुना वोटों के अंतर से चुनाव जीते. हालांकि प्रभुराम चौधरी के जीतने से भाजपा के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के करीबी रामपाल सिंह मंत्री नहीं बन सके. रामपाल और डॉ. प्रभुराम चौधरी एक ही जिले रायसेन से आते हैं.
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