चुनाव नजदीक आने के साथ ही सत्ता वाली पार्टी के सत्ताधारियों के पुराने मामले खोजे जा रहे हैं। लाल डायरी का सियासी बवाल थमा ही नहीं है कि सियासी गलियारों में अब पीली डायरी की चर्चा भी सुनाई देने लगी है।
पीली डायरी का संबंध भी सत्ता वाले लोगों से है। इसके चक्कर में सत्ता बनते ही निष्ठाओं की अदला-बदली तक हो गई थी। 'चरैवेति चरैवेति' स्लोगन वाले विभाग से जुड़े लोगों पर स्टेट की एजेंसी के छापों में यह डायरी मिली थी, बात उसी समय दब गई थी।
अभी यह साफ नहीं है कि इस पीली डायरी को सीजर मेमो में शामिल किया था या नहीं, लेकिन सियासी रूप से जागरूक लोगों ने इसकी तलाश शुरू कर दी है।
पीली डायरी जिनके यहां मिली वे महाशय जेल यात्रा करके भी आए थे। अब सत्ता में दखल रखने वाला आदमी सरकारी हो या प्राइवेट उससे क्या फर्क पड़ता है, उसके घर मिली डायरी में दिलचस्पी तो चुनावी साल में होगी ही।
प्रदेश की सियासत में हलचल मचा रही लाल डायरी में लिखी इबारत धीरे- धीरे बाहर आने लगी है। गांधी डायरी के कुछ पन्नों को देख पढ़ चुके जानकार जिस तरह की बातें बता रहे हैं वे हैरान करने वाली हैं। आगे और भी नेताओं के नाम सामने आने हैं। पुराने प्रभारियों तक के नाम डायरी में हैं।
सत्ता खेमे के एक बड़े नेता ने इस पर हैरानी जताई कि अनुभवी सत्ता केंद्र के आंख,नाक,कान होने का दावा करने वाले इतने कच्चे कैसे हो सकते हैं?
इस बीच 'सत्ता के साथ प्रयोगों' का रोज ब्यौरा लिखने वाले नेताजी को सियासी चरित्र हनन का डर है, इसलिए लाल डायरी की बातों के प्रकाशन-प्रसारण पर रोक लगाने के लिए कोर्ट जाने का सुझाव भी दिया है।
गांधी डायरी में लिखी सत्ता की इस सत्यकथा का नाम 'सत्ता के साथ मेरे प्रयोग' कर दिया जाए तो गलत नहीं होगा, क्योंकि गांधी डायरी लिखने वालों ने सत्य को छोड़कर सत्ता के साथ वाजिब,गैर वाजिब हर तरह के प्रयोग किए हैं।
विरोधी खेमा डायरी कथा से गदगद है। इतना तो तय है कि इस डायरी ने सियासत के कई महारथियों की भी नींद उड़ा रखी है, क्योंकि अदालत में भले डायरी सबूत नहीं बने लेकिन जनता की अदालत में तो सबूत मान लिए जाने का खतरा बरकरार है।
सत्ताधारी पार्टी में इस बार जल्द टिकट बांटने की संभावनाओं के बीच दावेदारों के बीच होड़ शुरू हो चुकी है। सुलह के बाद युवा नेता भी चुनावी रणनीति में जुट गए हैं,टिकट बांटने में युवा नेता का भी दखल रहने वाला है।
इस बीच युवा नेता के सीट बदलने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा है। युवा नेता अपनी पुरानी सीट पर खुद के समर्थक को लड़ाने की रणनीति बना रहे हैं और खुद पूर्वी राजस्थान या अपने पुरानी लोकसभा क्षेत्र की सीट से मैदान में उतर सकते हैं।
प्रदेश के मुखिया के सलाहकार वाले जिले में जबरदस्त पोस्टर वॉर जारी है। विपक्षी पार्टी ने सिरोही जिला मुख्यालय पर जगह जगह नहीं सहने वाले पोस्टर लगा रखे हैं।
एक बड़े से पोस्टर ने सबका ध्यान खींच लिया। सरकार को कोसने वाले पोस्टर के बीच प्रदेश के मुखिया और देश के मुखिया की गर्मजोशी से मिलते हुए की तस्वीर लगा रखी है।
इस पोस्टर को देखकर सत्ता और विपक्ष दोनों के नेता अचंभित हैं। अब इसके पीछे किसका दिमाग हो सकता है, यह भी सब जानते हैं लेकिन पोस्टर में देश और प्रदेश के मुखिया की जुगलबंदी दिखाना चर्चा का मुद्दा बन चुका है। इसका भी अपना सियासी मैसेज है।
सियासत की भी रीत निराली है। अपनी ही पार्टी के नेता को निपटाने के लिए कई बार विरोधियों से भी हाथ मिलाना होता है, यह ट्रेंड पुराना है।
अफसरों के एक चर्चित क्लब में पिछले दिनों राजधानी के दो विरोधी दलों के नेताओं ने लंबी चर्चा की। कई अफसरों ने इन सियासी विरोधियों को दोस्तों की तरह गुफ्तगू करते देखा, अब कई आंखों देखी घटना बाहर आ गई।
दोनों नेता किसी समय आमने-सामने चुनाव लड़ चुके हैं। इस सीट पर महिला नेता को टिकट मिलने से नेताजी का टिकट कट गया था।
अब नेताजी महिला नेता का टिकट कटवाकर खुद लेना चाहते हैं, अब टिकट किसे मिलेगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन इस मुलाकात को राजधानी की सियासत में हल्के में नहीं लिया जा सकता।
प्रदेश की पूर्व मुखिया के सियासी जेस्चर्स फिर से चर्चा में है। पिछले दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष की जयपुर यात्रा के दौरान सबसे पहले वन टू वन मुलाकात की।
पूर्व प्रदेश मुखिया के बाद सीएम चेहरे की रेस वाले मंत्री जी को मिलने बुलाया। अब वन टू वन चर्चाओं का मजमून तो सामने नहीं आया, लेकिन संशय जरूर बन गया। पूर्व प्रदेश मुखिया की राजधानी के प्रदर्शन में नहीं रहना भी छोटी घटना नहीं है।
माना जा रहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से वन टू वन मुलाकात में पूर्व प्रदेश मुखिया ने अपने सियासी मन की बात कह दी है। दिल्ली में भी बड़े नेताओं से मुलाकात हो चुकी है।
राजधानी के सियासी विरोध प्रदर्शन में दूरी को सियासी संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। विपक्षी पार्टी में इसे तूफान या कोई फैसले से पहले की शांति ही कहा जा रहा है, फिलहाल सब वेट एंड वॉच पर है।
सरकार के संकटमोचक रहे छह विधायकों में से एक संकट—कारक बन चुके हैं। बचे हुए पांच विधायक टिकट की जुगत में है। पांच में से दो को ही सत्ताधारी पार्टी से टिकट का आश्वासन मिला है।
जिन्हें आश्वासन मिला है वे भी अन्ना आंदोलन से निकली पार्टी के संपर्क में हैं, इन्हें डर है कि कहीं वादाखिलाफी हो जाए तो अंत में क्या करेंगे?
विकल्प होना जरूरी भी है क्योंकि सियासी वादे कैसे हवा होते हैं, ये इन विधायकों को लंबे समय तक अहसास रहा है। दोनों विधायक प्रदेश के मुखिया से मिल चुके हैं, फिलहाल आवासन पक्का है। बचे हुए तीन विधायक भी भविष्य की तैयारी में हैं।
राजनीति चाहे सत्ता की हो या विपक्ष की, विवाद और गड़बड़ियों की गुंजाइश हमेशा रहती है। विपक्षी पार्टी के राजधानी में हुए विरोध प्रदर्शन में पार्टी के जागरूक लोग अब झंडे-बैनर की क्वालिटी ऑडिट कर लाए। पार्टी से वसूली गई कीमत और बाजार कीमत में जमीन-आसमान का अंतर बताया जा रहा है।
जागरूक नेता-कार्यकर्ताओं ने झंडे बैनर की बाजार कीमतों और पार्टी से वसूली जाने वाली कीमत में भारी अंतर का पूरा हिसाब पेश कर दिया।
अब कुछ नेता यह मामला दिल्ली पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं। जिसके जिम्मे यह काम था उन पर प्रभावशाली नेता का हाथ है जिनकी अक्सर शिकायतें होती रहती हैं।
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