'आर्टिकल 370' के अंत के बाद से J&K में राजनीति से लेकर सुरक्षा तक कितना हुआ बदलाव?

जम्मू-कश्मीर में 4 साल पहले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ केंद्र सरकार के उठाए गए कदमों ने आम लोगों के भाग्य को बदलने वाले कई अहम बदलावों को लाने में बड़ी भूमिका निभाई है. इसके साथ ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के चरमराने से आतंकियों को मिलने वाली आर्थिक और हथियारों की मदद भी घटी है. जिससे घाटी में आतंकियों का जोर भी कम हुआ है. अलगाववादियों और पाकिस्तान समर्थक तत्वों ने अलगाववाद को बढ़ावा देने और भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण को पटरी से उतारने के लिए अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को हथियार बनाया था.

इन अस्थायी कानूनों ने राज्य की महिलाओं, एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों, दलितों, छोटे मजदूरों और अन्य लोगों से उनके अधिकार छीन रखे थे. इनके खत्म होने के साथ जम्मू-कश्मीर धीरे-धीरे इस्लामी आतंकवाद, इंतिफादा-ढंग के पथराव और ठप पड़े विकास के दशकों पुराने चक्रव्यूह से बाहर निकल रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार का कश्मीर को लेकर 3डी नजरिया (डेवलपमेंट, डिमिलेटशन और डोमिसाइल) विकास के नए आयाम के साथ अब उभरकर सामने आ रहा है.

5 अगस्त, 2019 से अब तक कई विकास योजनाएं शुरू की गई हैं. उदाहरण के लिए इस साल 16 मार्च को कश्मीर के रामबन जिले के पंथयाल में बहुप्रतीक्षित टी-5 सुरंग जनता के लिए खुली हो गई. 870 मीटर लंबी यह टी-5 सुरंग 100 करोड़ रुपये की लागत से बनकर तैयार हुई है. रणनीतिक राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच 44) के पंथयाल खंड को भूस्खलन के कारण मौत का जाल माना जाता था. सितंबर में सड़क बंद हो गई थी, जिससे कश्मीर के आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सेब उद्योगों को 1,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

इसी तरह 272 किलोमीटर लंबा उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (यूएसबीआरएल) 2025 तक पूरा हो जाएगा. एक बार पूरा हो जाने पर, 38 सुरंगों वाला यूएसबीआरएल एक इंजीनियरिंग चमत्कार होगा. दुनिया का सबसे ऊंचा चिनाब ब्रिज इस रेल कनेक्टिविटी परियोजना में सबसे ऊपर है. सैकड़ों बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के पूरा होने के अलावा इस साल जून तक 1.27 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर में आ चुके हैं. यह पिछले साल के 1.83 करोड़ के रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए तैयार है. राज्य में स्थिरता अपने साथ समृद्धि लेकर आई है.

डिमिलेटशन यानी परिसीमन का दूसरा डी हिंदू- बहुल जम्मू और मुस्लिम-बहुल कश्मीर के बीच विषम शक्ति समीकरण को संतुलित करता है. बीजेपी के गढ़ जम्मू में विधानसभा सीटों की संख्या 37 से बढ़ाकर 43 कर दी गई है. जबकि कश्मीर में सीटें 46 से बढ़कर 47 हो गई हैं. वहीं अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटें रखी गई हैं- जिनमें जम्मू में 6 और कश्मीर में तीन सीटें हैं. कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार इन सीटों से चुनाव नहीं लड़ सकता है.

तीसरा और महत्वपूर्ण बदलाव राज्य की नई डोमिसाइल पॉलिसी के साथ चुपचाप लाया जा रहा है. सुरक्षा बलों, प्रवासी श्रमिकों और अन्य लोगों के परिवारों को एक सरल ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत डोमिसाइल मिल रहा है. 15 दिन के अंदर निवास प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है. अधिकारियों के जानबूझकर देरी के मामले में कोई भी सक्षम प्राधिकारी के पास अपील कर सकता है. अंतिम गणना तक 61 लाख से अधिक (61,47,482) अधिवास प्रमाण पत्र जारी किए गए थे. इसके अलावा आजादी के बाद पहली बार 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से जम्मू चले आए एक लाख से अधिक लोगों को अचल संपत्तियों के मालिकाना हक, सभी चुनावों में वोट देने का अधिकार, सरकारी नौकरियां के लिए पात्रता सहित पूर्ण नागरिकता और अधिवास के अधिकार मिलने जा रहे हैं.

जिस अलगाववादी लॉबी, विरासती पार्टियों और परिवारों का 2019 तक जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक सत्ता पर एकाधिकार था, स्वाभाविक रूप से वे चिंतित हैं. उन्होंने जनसांख्यिकीय बदलाव की साजिश का नैरेटिव रचना शुरू कर दिया है. उनका नया निशाना केंद्र शासित प्रदेश में 1,99,550 भूमिहीन लोगों के लिए पांच मरला भूमि दिए जाने का प्रस्ताव है. जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इसे जनसांख्यिकीय बदलाव को आगे बढ़ाने की कोशिश बताया है और आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य में बेघरों की संख्या बहुत कम है. इस तरह के अलगाववादियों से डरे बिना केंद्र सरकार ने कश्मीर में आठ सुरक्षित बस्तियों में गैर-मुस्लिम आबादी को बसाना शुरू कर दिया है. बदलाव साफ तौर से शुरू हो गया है.

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