मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने विधवाओं को मंदिरों में प्रवेश करने से रोकने की प्रथा की कड़ी आलोचना की है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की परंपराएं जारी नहीं रखी जा सकती हैं. कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान की. याचिका में इरोड जिले में एक मंदिर में जाने और कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी.
लाइव लॉ के अनुसार कोर्ट अदालत इरोड जिले की निवासी थंगमणि द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें आरोप लगाया गया था कि विधवा होने के कारण उसे और उसके बेटे को कुछ ग्रामीणों द्वारा स्थानीय मंदिर में प्रवेश करने और आगामी मंदिर उत्सव में भाग लेने से रोका जा रहा था. जस्टिस आनंद वेंकटेश की पीठ को महिला ने बताया कि उनके पति मंदिर में पुजारी थे, जिनकी 28 अगस्त, 2017 को मृत्यु हो गई थी. उन्होंने आगे बताया कि वह अपने बेटे के साथ मंदिर के उत्सव में हिस्सा लेने और पूजा करना चाहती थीं, लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया.
उनसे उन लोगों ने कहा कि वह विधवा होने के कारण मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती हैं. इस पर पीठ ने पूरे मामले पर सख्त नाराजगी जताई. न्यायमूर्ति वेंकटेश ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी पुरातन मान्यताएं अभी भी राज्य में प्रचलित हैं. न्यायाधीश ने कहा कि ‘एक महिला की एक स्थिति और अपनी पहचान होती है जिसे उसकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता है या छीना नहीं जा सकता है.’
पीठ ने आगे कहा कि कानून के शासन वाले सभ्य समाज में ये कभी नहीं चल सकता. यदि किसी के द्वारा किसी विधवा को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने का ऐसा प्रयास किया जाता है, तो उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा ने कहा, याचिकाकर्ता और उसके बेटे को उत्सव में शामिल होने और भगवान की पूजा करने से रोकने का इन्हें कोई अधिकार नहीं है.
हाई कोर्ट ने स्थानीय पुलिस को उन लोगों को बुलाने का निर्देश दिया, जिन्होंने याचिकाकर्ता को धमकी दी थी. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि उन्हें स्पष्ट रूप से सूचित किया जाए कि वे याचिकाकर्ता और उसके बेटे को मंदिर में प्रवेश करने और इस साल 9 और 10 अगस्त को होने वाले उत्सव में भाग लेने से नहीं रोक सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो पुलिस उनके खिलाफ सख्त एक्शन ले.
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