रसूखदार नेता के आगे मंत्री नतमस्तक, जूनियर मंत्री की हाईकमान तक शिकायत

प्रदेश का भविष्य गढ़ने वाले विभाग में जूनियर मंत्री का पावर हर किसी की जुबां पर है। टॉप लेवल से मिले आशीर्वाद से पावर मिल गया, लेकिन पावर के साइड इफेक्ट भी दिखने लगे हैं। मंत्री की बैठकों में उनके कुछ बाहरी चहेतों के बैठने पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। विभाग के अफसर बाहरी लोगों के विभागीय बैठकों में बैठने पर आपत्ति जता चुके हैं। जिन दो लोगों के विभागीय बैठकों में बैठने का विवाद है, वे पड़ौसी राज्य के हैं।

दोनों पावर के उपकेंद्र बने हुए हैं। विभाग से अब कई तरह के विवादों के दस्तावेज बाहर पहुंचने लगे हैं। जूनियर मंत्री को पावर देने के साइड इफेक्ट चुनावी साल में सत्ता वाली पार्टी की परेशानी जरूर बनेंगे। हाईकमान से लेकर कई जगह शिकायतें पहुंचने लगी है।

पश्चिमी राजस्थान के सौम्य छवि वाले मंत्रीजी को उनके घर में जाकर प्रदेश के मुखिया के ओएसडी लगातार चुनौती दे रहे हैं। सियासी पंडित इस घटना के पीछे कुछ इन साइड स्टोरी खोजकर लाए हैं। बताया जाता है सौम्य छवि वाले मंत्रीजी को मुखिया ने कुछ समय पहले कोई सियासी असाइन्मेंट दिया था। वह असाइन्मेंट ऐसा था जो उनकी स्टाइल और कैरेक्टर से मेल नहीं खाता था, मंत्रीजी उस पर खरा नहीं उतर पाए।

इस असाइन्मेंट के इनकार के बाद से मंत्रीजी का सियासी पावर हाउस से फ्रिक्वेंसी गड़बड़ाई हुई है। घर में चुनौती मिलने के तार भी उससे ही जोड़े जा रहे हैं।अब सियासत भी शतरंज के खेल से कम थोड़े ही है, हर कोई इससे पार थोड़े ही पा सकता है।

सियासत में कुछ भी स्थायी नहीं होता, दोस्त कब दुश्मन बन जाए और दुश्मन कब दोस्त यह सब परिस्थितियों और जरूरत पर निर्भर करता है। एक मंत्री और महिला नेता के बीच दशक भर से चल रही सियासी कड़वाहट अब दूर होने की खबर है। मंत्री किसी जमाने में महिला नेता के सियासी चाणक्य और मेंटर रहे थे, लेकिन बाद में रिश्ते इतने तल्ख हो गए कि बोलचाल बंद थी।

पिछले दिनों से कड़वाहट भुलाने का फैसला हो चुका है। गोविंददेवजी के भक्त दोनों नेताओं में इस सुलह से राजधानी के सियासी समीकरण भी बदले हैं। अब यह समझौता कितने दिनों तक टिकता है, इस पर भी सबकी निगाह है, क्योंकि चुनावों में हित टकराएंगे, अगर ऐसा हुआ तो महिला नेता ईंट का जवाब पत्थर से देने में कोई कसर नहीं रखने वालीं।

सरकार में अगर विपक्षी पार्टी के नेता के किसी काम को सत्ताधारी पार्टी के विधायक से ज्यादा तवज्जो मिले तो हलचल होना स्वाभाविक है। सत्ता वाली पार्टी के कुछ विधायक ने एक अफसर की पोस्टिंग के लिए सिफारिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। विपक्षी पार्टी के नेताजी ने एक झटके में चहेते अफसर को उस जगह लगवा दिया, सत्ता वाली पार्टी के विधायक हाथ मलते रह गए।

सत्ता वाली पार्टी के नेताओं को विपक्षी पार्टी के नेताजी का रसूख खल गया, बात संगठन मुखिया तक पहुंचा दी। अब सत्ता वाले समझदार नेता विपक्ष को भी साधकर तो रखते ही हैं। अब जिस मंत्री के महकमे का काम था वे सरकार के संकटमोचक हैं और विपक्ष के नेता संकटकारक। अब संकटमोचक को संकट-कारक से तो संबंध ठीक ही रखने होंगे। फिलहाल यह सियासी शिष्टाचार अंदरखाने विवाद का मुद्दा बना हुआ है। सब मिले हुए हैं का जुमला ऐसे ही थोड़े बोला जाता है।

विपक्षी पार्टी में चेहरों को लेकर लड़ाई भले ही एक बार रुक गई हो, लेकिन अटकलें अब भी जारी हैं। मन में कई नेताओं के सियासी लड्डू फूट रहे हैं। इस बीच दिल्ली में भी सियासी समीकरण सेट किए जा रहे हैं। एक केंद्रीय मंत्री को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। सियासी रणनीतिकार केंद्रीय मंत्री को अगले चेहरे के तौर पर देख रहे हैं। लो प्रोफाइल केंद्रीय मंत्री कला संस्कृति में रुचि रखने के साथ नई सियासी लाइन में फिट बैठ रहे बताए। मंत्रीजी के समर्थक भी मन ही मन उत्साहित हैं।

सत्ता वाली पार्टी में पावर सेंटर की जांच के लिए कुछेक लक्षण हैं, जिन्हें देखकर आसानी से पता लगाया जा सकता है। पावर सेंटर वाले एक नेताजी के आगे कई मंत्री भी अपने आपको बौना महसूस करते हैं। विधानसभा में राजधानी वाले मंत्रीजी के चैंबर में सत्ता के पावर वाले नेताजी पहुंच गए। नेताजी और मंत्रीजी में लंबे समय से अच्छी घुटती है। मंत्रीजी के चैंबर में कुछ और मंत्री भी बैठे थे।

सत्ता के नजदीकी वाले नेताजी जैसे ही चैंबर में एंटर हुए वहां बैठे मंत्रियों ने खड़े होकर जिस अंदाज में प्राेटोकॉल दिया उससे आप अंदाजा लगा सकते हैं, पावर क्या चीज होती है? नेताजी ने वहां बैठे मंत्रियों को काम भी बता दिए। सड़क बनाने के काम भरी बताए।

किसी ने तर्क दिया कि बारिश में सड़क बनाने का क्या फायदा, तभी मंत्री ने जवाब दिया कि नेताजी ने कह दिया तो बारिश में भी बना देंगे, इनका आदेश सिर माथे। अब यह अलग बात है कि दूर दराज के कई इलाकों में बारिश तो छोड़ो उसके बाद भी सड़कों की रिपेयर तक नहीं हुईं, लेकिन उन क्षेत्रों में नेताओं का राज-सत्ता में ऐसा रसूख नहीं हैं। प्रभाव वाले नेताजी प्रदेश के मुखिया के नजदीकी हैं, पावर कॉरडोर्स में यही सबसे बड़ी योग्यता है।

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