अभी तीन महीने पहले कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने बजरंग दल पर हमला बोलते हुए कहा था कि वह उन्हें हिंदुत्व का चैंपियन नहीं मानते हैं और एक कट्टर हिंदू होने के नाते वह सनातन धर्म में विश्वास करते हैं. लेकिन आज कांग्रेस विवादों में घिर गई है क्योंकि उसकी सहयोगी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने सनातन धर्म पर सवाल उठा दिए हैं.
उदयनिधि स्टालिन के सनातन विरोधी बयान को लेकर अपने रुख पर अड़े रहने से कांग्रेस पसोपेश में नजर आ रही है और उसे कुछ समझ नहीं आ रहा. कांग्रेस के भीतर ही कई आवाजें उठ रही हैं, जो एक-दूसरे का खंडन करती हैं. यह पार्टी की अंदरूनी राजनीतिक खींचतान को भी दिखाता है.
उदाहरण के लिए, कांग्रेस को तमिलनाडु में द्रमुक की जरूरत है और वह उसे नाराज नहीं कर सकती. इससे पता चलता है कि कार्ति चिदंबरम बिना समय बर्बाद किए स्टालिन के बचाव में क्यों कूद पड़े. ऐसा माना जाता है कि डीएमके के बिना कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस के लिए जीत मुश्किल हो सकती है.
कर्नाटक में प्रियांक खड़गे उदयनिधि से सहमत हैं. उन्होंने कहा, “कोई भी धर्म जो समानता को बढ़ावा नहीं देता, जो समान अधिकार प्रदान नहीं करता, वह धर्म नहीं है.”
इससे उत्तर बनाम दक्षिण की कहानी में फर्क साफ नजर आता है. जैसे-जैसे आप उत्तरी क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं, राजनीतिक मजबूरी स्पष्ट हो जाती है. जैसे कि कमलनाथ के लिए, जिन्होंने यह कहकर सनातन वाले बयान से खुद को अलग कर लिया कि उदयनिधि की टिप्पणियां उनके अपने विचार थे. कमलनाथ की इस प्रतिक्रिया के पीछे की वजह मध्य प्रदेश के चुनाव हैं.
मंदिर और धर्म के रास्ते भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुकाबला करना महत्वपूर्ण है. इसीलिए, पिछले एक साल से कमलनाथ पूजा-अर्चना कर रहे हैं. उन्होंने छिंदवाड़ा में एक हनुमान मंदिर बनाया है और यहां तक कि महाकाल पूजा भी आयोजित की है. यही कारण है कि उनके लिए इस विवाद से दूर रहना जरूरी है. यही बात महाराष्ट्र की राजनीति पर भी लागू होती है. महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले के लिए, शिवसेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन करने के लिए, सही पक्ष पर होना महत्वपूर्ण है. इसलिए, उन्होंने भी खुद को उदयनिधि की टिप्पणियों से अलग कर लिया.
हालांकि, भाजपा राहुल गांधी और पार्टी द्वारा उदयनिधि की टिप्पणियों की स्पष्ट निंदा पर जोर दे रही है, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है. कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, ‘हर पार्टी को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है. और हम इसका सम्मान करते हैं.’
इससे यह साफ हो जाता है कि कांग्रेस किसी भी तरह से द्रमुक को नाराज नहीं करना चाहती है. यह उसकी मजबूरी भी है क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में, जब राम मंदिर और मंदिर गलियारा मुद्दे होने की उम्मीद है, नरम हिंदुत्व की वकालत करने वाली कांग्रेस, भाजपा को हमलावर होने का कोई मौका नहीं दे सकती है. ऐसे में कांग्रेस के भीतर उलझनें वास्तविक हैं.
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