G20 की बैठक के दौरान राष्ट्रपति के डिनर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जिस गर्मजोशी से नीतीश कुमार की मुलाकात हुई और जैसी तस्वीरें सामने आईं, उसने बिहार कि सियासत में हलचल बेहद तेज कर दी है. इस तस्वीर के सियासी अर्थ खोजे जा रहे हैं. अटकलों का बाजार गर्म है और कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या बीजेपी और नीतीश कुमार फिर से एक साथ आ सकते हैं. लेकिन, इन अटकलों पर न तो जदयू और न ही भाजपा की ओर से कोई भी साफ-साफ बोलने की स्थिति में है. हालांकि, भाजपा सांसद सुशील मोदी ने एक हद तक इन कयासबाजियों को खारिज करने की कोशिश की है, लेकिन इन तमाम अटकलों को लेकर अब सबकी निगाहें अमित शाह के बिहार दौरे पर टिक गई हैं.
आगामी 16 सितंबर को अमित शाह झंझारपुर में एक सभा को संबोधित करने के लिए बिहार आ रहे हैं. अमित शाह के दौरे के दौरान ही नीतीश कुमार और बीजेपी को लेकर लग रही तमाम अटकलों पर विराम लगने की पूरी संभावना है. दरअसल, जब अमित शाह चुनावी सभा को संबोधित करेंगे तब नीतीश कुमार को लेकर उनके भाषण में किन तरह के शब्दों का ज़ुबानी हमला होता है. इस पर तमाम सियासी पंडितों कि निगाहे टिकी रहेंगी.
बता दें कि अमित शाह इसके पहले गठबंधन टूटने के बाद बिहार मे चुनावी सभा करने आए उनके निशाने पर नीतीश कुमार रहे और उन्होंने ना सिर्फ ज़ुबानी हमला बोला, बल्कि भरे मंच से एलान किया था एक बार नहीं, दो दो बार कि नीतीश जी ने पलटी मारी है. इसलिए बीजेपी का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो गया है और अब यह खुलने वाला नहीं है.
यही वजह है कि इस बार भी अमित शाह के दौरे पर इसी बात को लेकर निगाहें अमित शाह के भाषण पर टिकी हुई हैं. क्या अमित शाह इस बार भी अपने भाषण में नीतीश कुमार को लेकर वैसे ही तल्ख रुख रखते हैं और नीतीश कुमार के लिए बीजेपी का दरवाजा बंद वाली बात दोहराते है, या फिर नीतीश कुमार को लेकर ज्यादा हमलावर रुख नहीं रखते हैं. अमित शाह के रुख से बिहार की सियासी तस्वीर बहुत कुछ साफ होने की पूरी संभावना है.
बिहार के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि निश्चित तौर पर अमित शाह का बिहार दौरा नीतीश कुमार को लेकर चल रहे तमाम अटकलों पर विराम लगाने वाला दौरा माना जा सकता है. अमित शाह के भाषण में शब्दों का चयन और उसके तेवर काफी कुछ इशारा कर जाएगा, जिस पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी.
हालांकि, सुशील मोदी ने जरूर ये साफ किया है की पीएम मोदी से नीतीश कुमार की मुलाकात कोई चुनावी राजनीति से संबंधित नहीं है, बीजेपी को नीतीश कुमार की कोई जरूरत नहीं है और वे किसी भी गठबंधन के लिए बोझ बन गए हैं.
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