करवर क्षेत्र के आंतरदा ठिकाना में सोमवार को सर्प रूपी देह की अगवानी के साथ चार दिवसीय मेले का शुभारंभ हुआ 145 वर्षों से अनवरत चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हुए ठिकाना आंतरदा के महाराज समर प्रताप सिंह एवं आंतरदा सरपंच मेघराज गुर्जर के नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामीण तथा बाहर से आए हुए दर्शनार्थियों सहित तेजाजी मण्डली तेजाजी द्वारा बताई हुई जगह तलवास रोड़ पर स्थित दीक्षित फार्म पर खेजड़ी के पेड़ से वायपर प्रजाति के सर्प रूपी देह को अलगोजों एवं वाद्य यंत्रों की धुन के साथ मनवानी कर भोपा प्रभु जी किर के हाथों में उतार कर जुलूस के रूप में आंतरदा के मुख्य बाजार से होते हुए गढ़ चौक पहुंचे जहां तेजाजी महाराज को तोपों की सलामी दी गई! तथा राज माता के साथ राज घराने की अन्य महिलाओं को दर्शन के बाद अरावली के बीच स्थित दहड़क्या नामक तेजाजी महाराज के थानक पर पहुंचे जहां सर्प रूपी देह को गद्दी देने के बाद थानक पर स्थित केंथ के पेड़ पर छोड़ दिया गया इसी के साथ चार दिवसीय मेले का शुभारंभ हुआ.
तेजाजी महाराज की कहानी - बताया जाता है कि सन 1871 में आंतरदा दरबार देवी सिंह जी की पत्नी महारानी जूनियां कंवर टोंक की राजकुमारी थी उनको सर्प दंश पर जूनियां के तेजाजी महाराज की डसी बांधी गई थी .
जिसको कटवाने के लिए तेजा दशमी पर आंतरदा गांव के लोक कलाकारों को वाद्य यंत्रों के साथ महारानी की डसी कटवाने जूनियां भेजा गया था कलाकारों द्वारा बजाए गए अलगोजों एवं वाद्य यंत्रों की धुन पर जूनियां के तेजाजी महाराज ने प्रशन हो कर आंतरदा आने की इच्छा जताते हुए कहा कि आंतरदा दरबार फौज सहित लेने आए और आंतरदा में थानक बनाएं .
बाद में जूनियां के महाराज की सहमति से आंतरदा दरबार देवी सिंह द्वारा सन् 1878 में तेजाजी महाराज को जूनियां से लाकर आंतरदा में स्थित दहड़क्या नामक स्थान पर विराजित किया गया.
एक दिन पहले बताते हैं मिलने का स्थान- नवमी रात्रि को बिंदोरी के दौरान भोपा प्रभु जी किर के शरीर में तेजाजी महाराज की सवारी आकर अपने मिलने की जगह बताती है.
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