इंडिया अलायंस के सूत्रधार सीएम नीतीश कुमार अपनी ‘बैलेंसिंग फैक्टर’ वाली राजनीति के लिए जाने जाते हैं. यानी जिस ओर वह होते हैं सत्ता उसी ओर होती है. लेकिन हाल के दिनों में उनकी राजनीति कुछ और संतुलित होती दिख रही है. हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल की रैली में न जाना हो, या अचानक ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती में शामिल हो जाना हो, नीतीश कुमार एक के बाद एक कंफ्यूजन क्रिएट कर रहे हैं. वहीं, बिहार की राजनीति में नए ट्विस्ट के संकेत को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है.
ऐसे में इंडिया एलायंस की मजबूती के दावों के बीच सीएम नीतीश कुमार एनडीए में जाने की खबरें भी समान रूप से चर्चा में है. इस क्रम में कभी बीजेपी पर उनका नरम रूप तो भाजपा का भी उनके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर दिख जाता है. फिर अचानक ही वह भाजपा या एनडीए के साथ जाने के किसी भी विचार का खंडन करते हैं और भाजपा भी दूसरी ओर से थोड़ी और अधिक तल्खी से आक्रामक हो जाती है. जाहिर है ओवरऑल कन्फ्यूजन की स्थिति दिखती है.
इन सबके बीच लालू यादव और तेजस्वी यादव का रुख भी बड़ा दिलचस्प है. लालू, नीतीश से दूर दिखते हैं और तेजस्वी नीतीश के साये की तरह नजर आते हैं. ऐसे में आम जनता से लेकर सियासी गलियारों में दिन-रात बिताने वाले लोग भी बेहद कंफ्यूज हैं. दरअसल, ऐसा सीएम नीतीश कुमार के राजनीतिक इतिहास को लेकर है, क्योंकि इससे पहले 2013 में नरेन्द्र मोदी को भाजपा की ओर से पीएम उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ नीतीश एनडीए से अलग हो गए थे और 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया था.
इसके बाद 2015 में उन्होंने पुराने सहयोगी लालू यादव के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये सरकार भी 20 महीने ही चल पाई और वर्ष 2017 के जुलाई महीने में आरजेडी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने एक बार फिर एनडीए का दामन थाम लिया और भाजपा के साथ बिहार में सरकार बना ली थी. इसके बाद फिर नीतीश कुमार का मूड चेंज हुआ और 2022 के अगस्त में फिर एनडीए का साथ छोड़ दिया और महागठबंधन के साथ सरकार बना ली.
नीतीश कुमार की शुरुआती राजनीति भी कुछ इसी तरह की रही है. वर्ष 1994 में नीतीश कुमार ने अपने पुराने सहयोगी लालू यादव का साथ छोड़कर लोगों को चौंका दिया था. तब जनता दल से किनारा करते हुए नीतीश ने जॉर्ज फर्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था और 1995 के बिहार विधानसभा चुनावों में लालू के विरोध में उतरे, लेकिन चुनाव में बुरी तरह से उनकी हार हुई.
इसके बाद वर्ष 1996 में बिहार में कमजोर मानी जाने वाली पार्टी बीजेपी से हाथ मिला लिया. बीजेपी और समता पार्टी का ये गठबंधन अगले 17 सालों तक चला. हालांकि, इस बीच साल 2003 में समता पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) बन गई. जेडीयू ने बीजेपी का दामन थामे रखा और साल 2005 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की. इसके बाद साल 2013 तक दोनों ने साथ में सरकार चलाई.
जाहिर है नीतीश कुमार का सियासी मूड चेंज होता रहता है और इसी के अनुसार, वह पाला बदलने के माहिर माने जाते हैं. अब इसको लेकर लोजपा (रामविलास) के सांसद चिराग पासवान ने सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधा है. वहीं, प्रशांत किशोर ने तो नीतीश कुमार की भविष्य की राजनीति को लेकर बड़ी भविष्यवाणी तक कर दी है. चिराग पासवान ने तो इसे सीएम नीतीश को लेकर क्रेडिबिलिटी क्राइसिस तक करार दे दिया है. वहीं, प्रशांत किशोर ने लोक सभा चुनाव के बाद बिहार में फिर नीतीश कुमार के पाला बदल लेने की भविष्यवाणी तक कर दी है.
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