बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जो विचाराधीन कैदी लंबे समय से जेल में हैं, उन्हें आम तौर पर जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए, भले ही उन पर जिन अपराधों का आरोप है, वे गंभीर हों. न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने दोहरे हत्याकांड के आरोपी आकाश चंडालिया को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, जो पिछले 7.5 वर्षों से जेल में था.
न्यायाधीश ने कहा कि त्वरित सुनवाई सुनिश्चित किए बिना किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अनुरूप नहीं है.
Bar and Bench की खबर के अनुसार, न्यायाधीश ने अपने 7 पेज के आदेश में कहा कि ‘त्वरित सुनवाई सुनिश्चित किए बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है. जब समय पर सुनवाई संभव नहीं है, तो आरोपी को आगे कारावास का सामना नहीं करना पड़ सकता है. अगर वह पहले से ही प्रस्तावित अवधि की एक महत्वपूर्ण अवधि से गुजर चुका है. सजा और ऐसी परिस्थितियों में, अदालत आम तौर पर उन पर लगे आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, उन्हें जमानत पर रिहा करने के लिए बाध्य होगी’.
अदालत के समक्ष जमानत याचिका एक गैंगस्टर किसन परदेशी के खिलाफ एक मामले से जुड़ी थी. परदेशी और चंडालिया सहित उसके साथियों पर पुलिस ने जुलाई 2015 में दो लोगों के अपहरण, हमले और हत्या का मामला दर्ज किया था.
आरोपियों ने कथित तौर पर उन लोगों को घायल कर दिया था, जिन्होंने बाद में दम तोड़ दिया. बाद में इन लोगों के शव बरामद किए गए थे.
चंडालिया ने अपनी जमानत याचिका में बताया कि इसी मामले में दो सह-आरोपियों, विकास गायकवाड़ और यास्मीन सैय्यद को पहले ही 2022 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था.
न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा कि मुकदमे में देरी को देखते हुए इन दोनों सह-अभियुक्तों को रिहा कर दिया गया. उन्होंने आगे कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि चंडालिया को भी जमानत पर रिहा नहीं किया जा सके. इसलिए उन्होंने जमानत अर्जी मंजूर कर ली.
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