गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन को यूनेस्को के हैरिटेज सूची में शामिल किया गया है. शांति निकेतन एक नई अवधारणा पर भारत में खोला गया विश्व विद्यालय था, जिसे अब हम विश्व भारती के नाम से भी जानते हैं. शांति निकेतन को जब गुरुदेव ने शुरू किया तो इसके सामने कई बार बड़ी आर्थिक दुश्वारियां आईं. उन्हें त्रिपुरा से लेकर कई राजघरानों से तो आर्थिक मदद मिली ही लेकिन एक बड़ी मदद का कनेक्शन चीन से भी था.
शांति निकेतन में इसका प्रतीक चाइना भवन भी है, जहां पर चीनी भाषा सिखाने के साथ उसकी संस्कृति का अध्ययन होता है. शांति निकेतन को बड़ी मदद देने की कड़ी जो चाइनीज विद्वान बने उनका नाम तान युन झेन था. वह शांति निकेतन पढ़ने आए. फिर बाद में उन्होंने इस विश्व विद्यालय को मोटी आर्थिक मदद की.
तान युन झेन ही वह शख्स थे, जिन्होंने शांति निकेतन परिसर में चाइना भवन को बनवाया और फिर इसका विकास किया. वह लेखक, कवि, निबंधकार,और और दर्शनशास्त्र के विद्वान के साथ भाषाविद भी थे. निजी जीवन वह महायान बौद्ध और कन्फ्यूशियस विद्वान थे.
दरअसल रवींद्र नाथ टैगोर ने 1924 में चीन की यात्रा की थी. उसके तीन साल बाद उनकी मुलाकात मलाया में तान से हुई. इस मुलाकात के बाद वह शांति निकेतन अध्ययन करने शांति निकेतन आ गये. जहां उन्होंने भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया. ये वो दौर भी था जब शांति निकेतन को आर्थिक संसाधनों की जरूरत थी, ये अक्सर अर्थाभाव से गुजरा करता था.
टैगोर शांति निकेतन में कई नए विभाग खोलना चाहते थे लेकिन उनकी राह में आर्थिक दिक्कतें सामने आती थीं. गुरुदेव ये भी चाहते थे कि वह एक ऐसे विभाग की स्थापना करें, जहां चाइनीज संस्कृति और भाषा के बारे में सिखाया जाए.
1931 में तान चीन गए और करीब एक साल बाद वहां से लौटे, जब वहां से लौटे तो शांति निकेतन के लिए मोटी आर्थिक मदद लेकर लौटे, जिसे शांति निकेतन में तो लगाया ही गया लेकिन मुख्य तौर पर इससे चाइना भवन बनवाया गया.इसके बाद तान यहीं रह गए. उन्होंने इसे चाइनीज भाषा के विभाग के तौर पर समृद्ध किया. वह यहां 30 सालों तक काम करते रहे.
कहा जाता है कि तान ने जो पैसे जमा किए, उसके लिए उन्होंने भी कई तरह के काम किए. धन संग्रह के लिए वह सिंगापुर, रंगून और चीन गए. जब वह करीब पांच साल बाद लौटे तो उस जमाने के लिहाज से पर्याप्त धनराशि और किताबें लेकर लौटे. बताया जाता है कि उन्होंने शांति निकेतन को तब 50,000 रुपये की आर्थिक मदद के साथ एक लाख पुस्तकें दीं.
टैगोर उनकी इस मदद से बहुत रोमांचित हुए. शांति निकेतन के बीचों बीच चाइना भवन को बनाने के लिए जमीन आवंटित की गई. इस हॉल को डिजाइन करने का काम सुरेंद्रनाथ कर ने किया. ये इमारत रिकॉर्ड समय में बनकर तैयार हुई. नंदलाल बोस ,बेनोड बिहारी मुखर्जी और कला भवन के अन्य लोगों ने हॉल को सुंदर भित्तिचित्रों से सजाया.
14 अप्रैल 1937 को, भारत में अपनी तरह का पहला संस्थान चाइना भवन के नाम से बना. इसका उद्घाटन वहां पढ़ रहीं इंदिरा गांधी ने किया. तान इसके पहले निदेशक बने. चूंकि विश्व भारती लगातार गंभीर वित्तीय स्थिति से ही गुजर रहा था, लिहाजा तान ने वेतन लेने से इनकार कर दिया. चीन सरकार ने उन्हें सम्मान राशि प्रदान की.
बाद में चीन सरकार के प्रमुख च्यांग काई शेक ने जब 1957 में शांति निकेतन का दौरा किया तो चाइना हाल और विश्व विद्यालय को मोटी आर्थिक मदद देने की घोषणा की, जिसमें 50,000 रुपए चाइना हाल के लिए और 60,000 रुपए टैगोर स्मारक के लिए दिये.
आज भी चाइना भवन इस विश्व विद्यालय में ऐसा अध्ययन विभाग है, जो चीनी भाषा का पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है. यहां कई तरह के कोर्स हैं.
रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1863 में सात एकड़ जमीन पर एक आश्रम की स्थापना की थी. वही आज विश्वभारती है. टैगोर ने 1901 में सिर्फ 05 छात्रों को लेकर यहां एक स्कूल खोला. इनमें उनका अपना पुत्र भी शामिल था. 1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पाने वाले विश्वभारती में इस समय करीब 6000 छात्र पढ़ते हैं. इसी के इर्द-गिर्द शांतिनिकेतन बसा था.
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