करीब तीन दशकों की अटकलों और कलहों के बाद महिला आरक्षण बिल को (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) आज नए संसद भवन में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने पेश किया. जिसे ध्वनिमत के जरिए लोकसभा में पेश किया गया. दोनों सदनों से इस बिल के पास होते ही संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण तय हो जाएगा. यह बिल कानून बनने के बाद 15 साल तक लागू रहेगा. हालांकि आरक्षण की समयसीमा बढ़ाई जा सकती है. बिल को पेश करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कानून बनने पर संसद में महिला सांसदों की संख्या 181 हो जाएगी.
बिल में यह भी बताया गया है कि महिला आरक्षण बिल पहले पास होगा, उसके बाद परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण होगा, फिर 33 फीसदी आरक्षण लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं में लागू होगा. बता दें कि संभावित तौर पर साल 2027 में होने वाली जनगणना के बाद ही निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा. महिला आरक्षण विधेयक के मुताबिक 33 फीसदी कोटा के अंदर अनूसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो-इंडियन की महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी. इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है. साथ ही, यह 33 फीसदी आरक्षण राज्यसभा या राज्य के विधान परिषदों में लागू नहीं होगा.
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विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी और सीधे चुनाव से भरी जाएंगी. कोटा के भीतर एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति महिलाओं के लिए होंगी.
बता दें कि यह विधेयक 2010 में तैयार किए गए महिला आरक्षण विधेयक के समान है. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सत्ता में थी. इस नए संशोधन बिल में केवल, एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए आरक्षण को शामिल करने के लिए दो अनुच्छेदों में संशोधन को नए संस्करण में हटा दिया गया है. बिल के कानून बनने पर संसद में महिला सांसदों की संख्या 181 हो जाएगी.
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