आईजी (जेल) के पद से 32 साल पहले 1991 में रिटायर हुए रामानुज शर्मा को उनकी पेंशन कटौती के 24 साल पुराने केस में उनकी मौत के 13 साल बाद अब हाईकोर्ट से न्याय मिल पाया है। हाईकोर्ट ने अब ना केवल उनकी पेंशन कटौती वाले 3 जून 1999 के आदेश को रद्द कर दिया है बल्कि पेंशन से काटी गई राशि को भी तीन महीने में 9 फीसदी ब्याज सहित भुगतान करने का निर्देश दिया है।
जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश रामानुज शर्मा के कानूनी वारिस बेटे कर्नल राम मधुकर शर्मा व अन्य परिजनों की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। अदालत ने कहा कि प्रार्थी की पेंशन से कटौती का आदेश कानून की नजर में ना तो सही है और ना ही टिकाऊ है और ऐसे में वह रद्द किए जाने योग्य है। अधिवक्ता सुनील समदड़िया ने बताया कि रामानुज शर्मा 30 जून 1991 को रिटायर होने वाले थे।
लेकिन रिटायरमेंट से एक दिन पहले ही उन्हें 17 साल पुराने किसी मामले में चार्जशीट दे दी। राज्य सरकार की इस कार्रवाई से उनके पेंशन सहित अन्य परिलाभ लंबित हो गए। वहीं इस दौरान राज्य सरकार ने उनके रिटायरमेंट के आठ साल बाद 3 जून 1999 के आदेश से लंबित मामले में दो साल तक उनकी पांच फीसदी पेंशन कटौती करने की सजा दी गई। इस कार्रवाई को प्रार्थी ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि 14 साल बाद चार्जशीट देना गलत है और रिटायरमेंट के बाद सेवाकाल के किसी गंभीर केस में ही दंड दिए जाने की कार्रवाई की जा सकती है।
जिस मामले में प्रार्थी को दंड दिया गया है वह ज्यादा गंभीर प्रकृति का नहीं है और ऐसे में रिटायरमेंट के बाद उसके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं हो सकती। याचिका के लंबित रहने के दौरान 13 साल पहले प्रार्थी रिटायर आईजी की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे सहित अन्य कानूनी वारिसों ने हाईकोर्ट में राज्य सरकार के खिलाफ केस लड़ा।
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