विपक्षी पार्टी में चार दिशाओं से चली परिवर्तन यात्रा के कई किस्से-कहानियां सियासी हलकों में रह रहकर गूंज रहे हैं। कम भीड़ सबसे बड़ा मुद्दा रहा। एक बड़े नेताजी ने कम भीड़ का अनोखा तोड़ निकाला, वे जहां ज्यादा भीड़ की संभावना होती उन सभाओं में पहुंचते और भाषण देते।
ऐसी ही एक सभा में एक टिकटार्थी और उसके समर्थक बढ़ च़ढ़कर एक नेता के नारे लगा रहे थे। उस सभा में केंद्रीय मंत्री भी थे, नारेबाजी से नाराज मंत्रीजी ने नारे लगा रहे टिकटार्थी को सरेआम टिकट काटने की धमकी तक दे दी।
टिकट पर बात आते ही नारे बंद हो गए, लेकिन चर्चाएं शुरू हो गईं। अब जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। टिकट मिले न मिले नारे भी नहीं लगा ने दे तो क्या कहा जाए। यह अलग बात है कि विपक्षी पार्टी में आज के दिन कोई गारंटी से टिकट दिलवाने-कटवाने का तो दावा नहीं कर सकता।
सत्ताधारी पार्टी में चुनाव से पहले ऑब्जर्वर बनना कोई छोटी मोटी बात नहीं है। पिछले दिनों सीनियर ऑब्जर्वर ने चुनावों के लिए लगाए गए ऑब्जवर्स को कड़ी फटकार लगाई। सीनियर ऑब्जर्वर इस बात से खफा थे कि ऑब्जर्वर ने मूल काम से ज्यादा टिकट के लिए बायोडेटा लेने शुरू कर दिए, जबकि यह उनका कोर काम ही नहीं था।
विधानसभा टिकट चाहने वाले टिकटाथी ऑब्जर्वर के चक्कर लगाने लगे। कुछ बात तो हुई होगी कि सीनियर ऑब्जर्वर को गुस्सा आ गया। सीनियर ऑब्जर्वर राहुल गांधी के खास हैं, इसलिए कोई बड़ी शिकायत पहुंची बताई। जमकर पड़ी डांट की अब तक चर्चा है।
चुनावी साल में अफसर भविष्य की सत्ता के अनुमान लगाने में जुट गए हैं। देश के कानून मंत्री को लेकर भी ब्यूरोक्रेसी में चर्चा होने लगी है। पिछले दिनों प्रदेश के कुछ अफसरों ने कानून मंत्री से दिल्ली में जाकर मुलाकात की। कानून मंत्री को अगले चुनावों के बाद बड़ी जिम्मेदारी मिलने की अटकलें लगाई जाने लगी तो उसका असर भी दिखने लगा है।
करियर ओरियंटेड अफसर भविष्य की संभावना देख मेल जोल बढ़ाने में लग गए हैं। अफसर दिल्ली में अकेले कानून मंत्री नहीं कई नेताओं से मिल रहे हैं। जिसकी भी थेड़ी बहुत सितारा चमकने की संभावना है, उनसे लगातार शिष्टाचार मुलाकातेंं जारी है, पता नहीं आगे कौन प्रदेश का मुखिया बन जाए। जब कंफ्यूजन हो तो सबको साधकर चलने में भी ही फायदा है।
पूर्व प्रदेश मुखिया की चुप्पी और दूरी सियासी चर्चा का मुद्दा बनी हुई है। पूर्व प्रदेश मुखिया से कुछ पुराने दिग्गजों की मुलाकात की चर्चाएं हैं। विपक्षी पार्टी के ये दिग्गज मौजूदा चेहरों से संतुष्ट नहीं हैंं। अब दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है वाले फार्मूले के अनुसार पुराने दिग्गजों को पूर्व प्रदेश मुखिया से मुलाकात करके कोई तो पलान बनाया ही होगा। चार नेता मिलते हैं तो कोई न कोई नया सियासी गुल तो खिलाएगा ही।
प्रदेश में जबसे ईडी के छापे पड़े हें तबसे रोज नई चर्चाएं हो रही हैं। सरकार के एक और चहेते अफसर के खिलाफ ईडी तक दस्तावेज पहुंचाए गए हैं। ब्यूरोक्रेसी में ईडी के रडार वाले अफसर की अंदरखाने खूब चर्चा हो रही है। बताया जाता है कि कुछ बड़ी खरीद से जुड़े दस्तावेज ओर उनमें हुई गड़बड़ियों के दस्तावेज भी दिल्ली तक पहुंचाए गए हैं।
योजना भवन में मिले गोल्ड और केश को लेकर जांच का दायरा आगे बढ़ने के साथ ही चर्चाएं तेज हो गई हैं। अब जो भी माया के फेर में फंसा है उसके दुख तो झेलने ही पड़ते हैं। सत्ता के चहेते अफसर को भी उसी माया के फेर में दिक्क्त आ सकती है।
सत्ता वाली पार्टी में प्रभारी होना आसान काम नहीं है। न जाने कब प्रदेश के मुखिया की तरफ झुकाव का आरोप लग जाए। पहले के प्रभारी भी इससे दो चार हो चुके हैं। मौजूदा प्रभारी को लेकर भी दो बड़े नेताओं ने हाईकमान के सामने शिकायत की है।
मुखिया के प्रति नरम रुख रखने की शिकायतों का असर अब टिकटों में दिख सकता है। सीमावर्ती जिले के वरिष्ठ नेता और युवा नेता प्रभारी की भूतिका को लेकर सवाल उठा चुके हैं। अब टिकटों पर दिल्ली में ही सारा फैसला होगा। आखिर शिकायत का साइड इफेक्ट तो हाेना ही है।
चुनाव करवाने वाले महकमे में टिके रहना हर किसी के बस की बात नहीं है। महकमे में तैनात एक आरएएस अफसर ने जल्द ही विभाग से विदाई ले ली। आरएएस की विदाई के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। अब चुनाव वाले महकमे के प्रेशर को झेलना हर किसी के बस की बात नहीं है। चुनाव वाले महकमे से तो कलेक्टर तक घबराते हैं, आरएएस अफसरों की तो फिर बात ही क्या? चुनाव वाले महकमे में गलती की गुंजाइश के लिए जरा भी संभावना नहीं होती, बस डरने का कारण भी यही है।
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