जयपुर. बीजेपी के लिए आने वाले चुनाव के दौरान क्लीन स्वीप के जरिए राजस्थान की सभी सीटों को जीतने का सपना काफी मुश्किल में नजर आ रहा है. लिहाजा, पार्टी ने पंद्रह सीटों पर नाम घोषित करने के बाद बाकी बची 10 सीटों को लेकर रणनीति को उजागर नहीं किया है. इस बीच घोषित की गई सीटों में भी पार्टी को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. खास तौर पर टिकट कटने के बाद चूरू से सांसद राहुल कस्वां लगातार सोशल मीडिया के जरिए अपनी नाराजगी को जाहिर कर रहे हैं, तो नागौर में गठबंधन के टूटने का असर दिख रहा है. वहीं, वागड़ में विरोधी लहर का असर ज्यादा भारी हो रहा है. ऐसे ही हालात जोधपुर में हैं तो बाड़मेर में केन्द्रीय मंत्री की परफॉर्मेंस को लेकर कई तरह से सवाल पहले से खड़े हैं.
चूरू में कस्वां खड़े करेंगे मुश्किल :
चूरू के मौजूदा सांसद राहुल कस्वां और उनके पिता रामसिंह कस्वां साढ़े तीन दशक से जाट बाहुल्य और कांग्रेस के असर वाली शेखावाटी में बीजेपी को अजेय बनाए हुए हैं. इसके ऊपर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के साथ रिश्तेदारी के बावजूद इस बार दो बार के सांसद कस्वां को टिकट नहीं मिली. बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव के दौरान चूरू लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभाओं में से छह पर विरोधी दलों की जीत के असर के रूप में पार्टी के इस फैसले को देखा गया है. इस बीच अहम सवाल 8 तारीख को लेकर है, जब राहुल अपने फैसले के बारे में जानकारी देंगे. ऐसे में बीजेपी की रणनीति क्या होगी ? ताकि खिलाड़ी के रूप में राजनीति में दाखिल हुए देवेन्द्र झाझड़िया के चुनाव पर असर ना पड़े. अहम सवाल विधानसभा चुनावों का भी है, जब आठ में से महज दो सीटों पर बीजेपी जीती. पार्टी के अंदर बगावत के सुर सुनाई पड़े और दिग्गज नेता राजेन्द्र राठौड़ को शिकस्त मिली. अब इस चुनाव में भी चूरू के दो दिग्गज नेता आमने-सामने होंगे. कस्वां परिवार ने कयासों के मुताबिक बगावत की तो भाजपा के लिए यहां चुनाव आसान नहीं होगा.
नागौर में हनुमान की चुनौती :
नागौर में भी कांग्रेस का असर रहा है. इस लोकसभा में साल 2014 में सी.आर. चौधरी ने परंपरागत मिर्धा परिवार के सामने बीजेपी के निशान पर जीत हासिल की तो 2019 में गठबंधन के तहत हनुमान बेनीवाल के लिए बीजेपी ने राह तैयार की. इस बार हनुमान से बीजेपी नाराज है. लिहाजा, मिर्धा परिवार को पार्टी के साथ जोड़ा गया है. दूसरी ओर बीजेपी प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को लेकर कांग्रेस और हनुमान बेनीवाल के गठबंधन पर चर्चाएं तेज हो चुकी हैं. ऐसे में एक बार त्रिकोणीय और दूसरी बार गठबंधन के जरिए जाट लैंड की इस सीट पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी इस बार नाथूराम मिर्धा की राजनीतिक विरासत के भरोसे है. इसके बावजूद, नागौर को मुकाबले के लिहाज से हॉट सीट्स में से एक माना जा रहा है.
वागड़ में बाप देगी टक्कर :
दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य इलाके में जिस तरह से भारतीय आदिवासी पार्टी का उदय हुआ है. बीजेपी के लिए यहां भी मुश्किलें कुछ कम नहीं हैं. ऐसे में रणनीति के जाहिर से बदलाव के तहत कांग्रेस के दिग्गज नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय को बीजेपी ने अपने पाले में भले ही कर लिया, लेकिन कांग्रेस के साथ बाप के गठबंधन की खबरों ने भाजपा के जीत के फॉर्मूले पर फिलहाल ब्रेक लगा दिया है. हालांकि, सीईसी की बैठक के बाद कांग्रेस गठबंधन को लेकर अपनी रणनीति साफ करेगी, लेकिन आदिवासी पार्टी की मौजूदगी वागड़ में प्रमुख पार्टियों के लिए चुनौती पेश करेगी.
झुंझुनू में जरूरी है जिताऊ चेहरा :
मौजूदा सांसद नरेंद्र कुमार की लोकप्रियता को भुनाने के लिए भाजपा ने उन्हें मंडावा से विधायक का चुनाव लड़ाया था, लेकिन विरोध के चलते नरेंद्र कुमार चुनाव में शिकस्त का स्वाद चख चुके हैं. हारकर देवजी पटेल जालोर की टिकट से महरूम हो चुके हैं. ऐसे में होल्ड पर रखी गई झुंझुनू सीट को लेकर भी राजनीतिक पंडित नरेंद्र कुमार का टिकट कटने का कंफर्मेशन दे चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव के फॉर्मूले के आधार पर एक बार फिर बीजेपी के नाराज और टिकट हासिल करने में विफल रहे नेताओं को अपने खेमे में शामिल करना अहम साबित हो सकता है. माना जा रहा है कि कांग्रेस का गढ़ रही झुंझुनू की सीट पर लगातार दो बार की हार के सिलसिले पर ब्रेक के लिए असेंबली इलेक्शन की तरह किशनगढ़ की तर्ज पर यहां भी फैसला हो सकता है.
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