नई दिल्ली/ चूरू
देश और दुनिया में पैरा ओलंपिक खेलों को नई ऊंचाइयां देने वाले तीन बार के ओलंपिक मेडलिस्ट जेवलिन स्टार पद्मभूषण देवेंद्र झाझड़िया को पैरा ओलंपिक कमेटी ऑफ इंडिया का निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित किया गया है। शनिवार को नई दिल्ली के हेबिटेट सेंटर में पीसीआई के चुनावों का अधिकारिक परिणाम घोषित किया गया। पीसीआई के इतिहास में पहली बार अध्यक्ष सहित समस्त पैनल का निर्वाचन निर्विरोध ढंग से संपन्न हुआ है। नए दायित्व पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देवेंद्र झाझड़िया ने कहा कि मुझे जो जिम्मेदारी दी गई है, उसका पूरे समर्पण के साथ निर्वहन करूंगा। मैंने अपने जिंदगी में जो संघर्ष किया, वह संघर्ष और दिव्यांगों को नहीं करना पड़े, यह मेरी कोशिश रहेगी। पिछले दस साल में पैरा स्पोट्र्स को काफी ऊंचाइयां मिली हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष स्नेह पैरा खिलाड़ियों को मिला है। पैरा स्पोर्ट्स पर बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है। देश के सभी जिलों में हमें पैरा स्पोर्ट्स पर काम करना है। इस मिशन के साथ काम करेंगे। दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए पूरे समर्पण के साथ काम करेंगे। चूरू लोकसभा क्षेत्र के खिलाड़ियों को भी इससे लाभ मिलेगा। देश को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प पर काम करेंगे। उन्होंने पिछले चार साल में किए गए कार्य के लिए पैरा ओलंपिक कमेटी की सराहना की और कहा कि भारत सरकार हमारा विशेष तौर पर ध्यान रख रही है। टाॅप्स स्कीम का दिव्यांग खिलाड़ियों को खूब लाभ मिल रहा है। मनचाही जगह पर उन्हें ट्रेनिंग मिल रही है। पहली बार, दिल्ली में हुए पैरा नेशनल गैम्स, खेलो इंडिया गेम्स पर करीब 30 करोड़ खर्च हुए, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विशेष धन्यवाद देता हूं। भारत सरकार खिलाड़ियों,युवाओं और दिव्यांगों को लेकर बहुत समर्पित है। आने वाले समय में देश को आगे ले जाना है। अच्छा काम करना है। टोकियो पैरा ओलंपिक में हमने 19 मेडल जीते, 2024 के पेरिस पैरा ओलंपिक गेम्स में हम 30 मेडल जीतेंगे, यह हमारा लक्ष्य है। अबकी बार, 30 से पार। उन्होंने कहा कि पीसीआई का अध्यक्ष बनाया जाना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। पीसीआई मेरा परिवार है। सभी स्टेट यूनिट्स, फैडरेशन का भी बहुत-बहुत आभार। झाझड़िया ने कहा कि एक छोटी से ढाणी से निकलकर पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदकों से होते हुए पीसीआई अध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी तक के सफर को देखता हूं तो एक संतुष्टि और गर्व का भाव मन में पैदा होता है। पीछे मुड़कर देखता हूं, सोचता हूं तो वो संघर्ष याद आता है, जब मेरे पास ग्राउंड भी नहीं था, भाला भी नहीं था, घर वालों के पास पैसे भी नहीं थे। लकड़ी का एक भाला अपने स्तर पर तैयार करके शुरुआत की थी। एथेंस में खेलने के लिए मां के गहने तक बिके, लेकिन अब यह संघर्ष सफलता से होते हुए बड़ी जिम्मेदारी की तरफ बढ़ गया है। उल्लेखनीय है कि देवेंद्र झाझड़िया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीबी हैं और उन्हें भारतीय जनता पार्टी की ओर से जारी पहली सूची में चूरू लोकसभा के लिए उम्मीदवार बनाया गया है।
दो गोल्ड के साथ तीन पैरालिंपिक मेडल जीत चुके हैं देवेंद्र
तीन पैरालिंपिक मेडल जीतने वाले भारत के जेवलिन स्टार देवेंद्र झाझड़िया को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण एवं खेल जगत में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड मिल चुका है। देवेंद्र झाझड़िया एथेंस 2004 व रियो 2016 के पैरा ओलंपिक खेलों में देश के लिए स्वर्ण पदक तथा टोकियो 2020 के ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं।
जीता था देश के लिए पहला ओलंपिक स्वर्ण
उल्लेखनीय है कि एथेंस पैरा ओलंपिक 2004 में स्वर्ण पदक जीतकर किसी भी एकल स्पर्धा में भारत के लिए पहला पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले चूरू के जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझड़िया को अनेक पुरस्कार-सम्मान मिल चुके हैं। भारत सरकार द्वारा खेल उपलब्धियों के लिए देवेंद्र को खेल जगत का सर्वोच्च मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार दिया गया। इससे पूर्व उन्हें पद्मश्री पुरस्कार, स्पेशल स्पोर्ट्स अवार्ड 2004, अर्जुन अवार्ड 2005, राजस्थान खेल रत्न, महाराणा प्रताप पुरस्कार 2005, मेवाड़ फाउंडेशन के प्रतिष्ठित अरावली सम्मान 2009 सहित अनेक इनाम-इकराम मिल चुके हैं तथा वे खेलों से जुड़ी विभिन्न समितियों के सदस्य रह चुके हैं।
साधारण किसान दंपत्ति की संतान हैं देवेंद्र
एक साधारण किसान दंपत्ति रामसिंह और जीवणी देवी के आंगन में 10 जून 1981 को जन्मे देवेंद्र की जिंदगी में एकबारगी अंधेरा-सा छा गया, जब एक विद्युत हादसे ने उनका हाथ छीन लिया। खुशहाल जिंदगी के सुनहरे स्वप्न देखने की उम्र में बालक देवेंद्र के लिए यह हादसा कोई कम नहीं था। दूसरा कोई होता तो इस दुनिया की दया, सहानुभूति तथा किसी सहायता के इंतजार और उपेक्षाओं के बीच अपनी जिंदगी के दिन काटता लेकिन हादसे के बाद एक लंबा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था और उसके बचे हुए दूसरे हाथ में उस संकल्प की शक्ति देखने लायक थी। देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, उल्टा कुदरत के इस अन्याय को ही अपना संबल मानकर हाथ में भाला थाम लिया और वर्ष 2004 में एथेेंस पैराओलंपिक में भालाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर करिश्मा कर दिखाया।
लकड़ी के भाले से हुई शुरुआत
सुविधाहीन परिवेश और विपरीत परिस्थितियों को देवेेंद्र ने कभी अपने मार्ग की बाधा स्वीकार नहीं किया। गांव के जोहड में एकलव्य की तरह लक्ष्य को समर्पित देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया। विधिवत शुरुआत हुई 1995 में स्कूली प्रतियोगिता से। काॅलेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जैवलिन थ्रो और शाॅट पुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जैवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी।
बुसान से हुई थी ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत
इस तरह उपलब्धियों का सिलसिला चल पड़ा पर वास्तव में देवेेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत हुई 2002 के बुसान एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ। वर्ष 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जैवलिन थ्रो, शाॅट पुट और ट्रिपल जंप तीनों स्पर्धाओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले। देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया, जब उन्होंने 2004 के एथेेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। इन खेलों में देवेंद्र द्वारा 62.15 मीटर दूर तक भाला फेंक कर बनाया गया विश्व रिकाॅर्ड स्वयं देवेंद्र ने ही रियो में 63.97 मीटर भाला फेंककर तोड़ा। बाद में देवेंद्र ने वर्ष 2006 में मलेशिया पैरा एशियन गेम में स्वर्ण पदक जीता, वर्ष 2007 में ताईवान में अयोजित पैरा वल्र्ड गेम में स्वर्ण पदक जीता और वर्ष 2013 में लियोन (फ्रांस) में हुई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक देश की झोली में डाला।
अनुशासन व समर्पण से मिली सफलता
अपनी मां जीवणी देवी और डॉ एपीजे कलाम को अपना आदर्श मानने वाले देवेंद्र कहते हैं कि मैंने अपने आपको सदैव एक अनुशासन में रखा है। जल्दी सोना और जल्दी उठना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है। हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करता हूं। इससे मेरा एनर्जी लेवल हमेशा बना रहता है। पॉजिटिविटी आपके दिमाग को और शरीर को स्वस्थ बनाए रखती है और बहुत ताकत देती है। एनर्जी उन शुभचिंतकों से भी मिलती है जो मेरे हर कदम, हर कामयाबी पर वाहवाही करते हैं, मेरा हौसला बढ़ाते हैं।
जर्सी पर चूरू लिखवाने का था उत्साह, अब चूरू से लड़ रहे चुनाव
देवेंद्र झाझड़िया जब बचपन में अपने स्कूल के बच्चों की टी-शर्ट पर चूरू लिखा हुआ देखते थे तो मन में होता था कि काश, मेरी टी-शर्ट पर चूरू लिखा जाए। भविष्य में चूरू, राजस्थान के बाद जर्सी पर इंडिया भी लिखा गया और देश के राष्ट्रध्वज के वाहक भी बनने का अवसर मिला। जब पदक जीते तो देश का राष्ट्रगान की धुन से अपने चाहने वालों को गौरवान्वित करने का अवसर भी मिला। अब चूरू लोकसभा से ही भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है।
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