रूस तालिबान को प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की लिस्ट से हटाने वाला है। रूस की स्टेट न्यूज एजेंसी RIA नोवोस्ती ने इसकी जानकारी दी। रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि कजाखिस्तान ने हाल ही में तालिबान को लेकर यह फैसला लिया है और हम भी जल्द ही इसे लागू करेंगे। लावरोव ने कहा, "तालिबान असली ताकत है। हम उनसे अलग नहीं हैं। सेंट्रल एशिया में हमारे सहयोगी भी उनसे अलग नहीं हैं।" अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के 3 साल बाद रूस ने यह फैसला किया है। दरअसल, पिछले साल के अंत में कजाखिस्तान ने तालिबान को बैन किए गए आतंकी संगठनों की लिस्ट से हटा दिया था।
रूस से तेल खरीदना चाहता है तालिबान
रूस ने भी तालिबान पर तमाम पाबंदियों के बावजूद उससे अपने संबंध बनाए रखे हैं। हालांकि, उन्होंने अब तक तालिबान को अफगानिस्तान की सरकार के तौर पर मान्यता नहीं दी है। रूस ने तालिबान को सेंट पीटर्सबर्ग में होने वाले इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम के लिए भी न्योता दिया है। यह इवेंट 5-8 जून को होगा।
रूसी मीडिया TASS की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान ने रूस से तेल खरीदने की भी इच्छा जताई है। पश्तो भाषा में तालिबान का अर्थ 'छात्र' होता है। इस संगठन की स्थापना साल 1994 में अफगानिस्तान के कंधार शहर में हुई थी। यह उन गुटों में से एक था जो सोवियत संघ की वापसी के बाद अफगानिसतान पर कब्जे के लिए गृह युद्ध लड़ रहा था।
तालिबान ने अमेरिका की मदद से सोवियत सेना को खदेड़ा था
इसके सदस्य अफगानिस्तान के मुजाहिद्दीन लड़ाके थे, जिन्होंने 1989 में अमेरिका की मदद से सोवियत सेना को खदेड़ा था। तब दोनों पक्षों के बीच 9 साल तक जंग चली थी। 1999 में UNSC ने एक रिजॉल्यूशन अडॉप्ट किया था। इसमें कहा गया था तालिबान दुनियाभर के आतंकी संगठनों को पनाह देकर उन्हें प्रशिक्षण देने का काम करता है।
इसके कुछ महीने बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें UN रिजॉल्यूशन को स्वीकार करते हुए तालिबान पर पाबंदियां लगाने की बात कही गई थी। इसके बाद साल 2003 में रूस की सुप्रीम कोर्ट तालिबान को आतंकी संगठन घोषित कर दिया था।
रूस ने कहा था कि रूस के चेचन्या में तालिबान के अवैध संगठनों के साथ संबंध हैं। वह उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। इसके बाद साल 2017 में रूस ने अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार और तालिबान के बीच समझौता कराने की कोशिश की थी, जिससे अफगानिस्तान में शांति आ सके।
तालिबान ने 2021 में अफगानिस्तान पर कब्जा किया
इस कोशिश में चीन, ईरान, पाकिस्तान समेत कई देशों ने रूस का साथ दिया था। लंबे समय तक चली बातचीत के बाद भी अफगान सरकार और तालिबान के बीच सहमति नहीं बन पाई थी। अमेरिकी सेना के साथ लंबे संघर्ष के बाद तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को काबुल के साथ ही पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद से वो लगातार दुनिया से उसे मान्यता देने की मांग करता रहा है।
तालिबान के कार्यकारी रक्षा मंत्री मुल्लाह मोहम्मद याकूब मुजाहिद ने अल-अरेबिया न्यूज चैनल को एक इंटरव्यू दिया था। इस दौरान उन्होंने कहा था- सरकार ने मान्यता हासिल करने के लिए सारी जरूरतों को पूरा किया है। इसके बावजूद अमेरिका के दबाव में आकर दूसरे देश हमें मान्यता नहीं दे रहे हैं। हम उन देशों से मान्यता की अपील करते हैं जो अमेरिका के दबाव में नहीं हैं। हम चाहते हैं कि दुनिया के ताकतवर इस्लामिक देश हमें सरकार के तौर पर पहचानें।
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