पिछले कुछ वर्षों के यादों के बक्से को खंगाला जाए तो सबसे डरावनी तस्वीर उभरती है कोरोना के दिनों की। खबरों में थे मौत के आंकड़े, जो हर दिन बढ़ते जा रहे थे। इलाज के लिए तड़पते लोग, ऑक्सीजन की कमी से मर रहे लोग, गंगा के किनारे लाशों का ढेर और श्मशान घाट में लंबी लाइनें।
उस दु:स्वप्न को गुजरे तीन साल हो गए हैं, लेकिन कोरोना से पैदा हुई मुश्किलें अभी तक कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।
हाल ही में नेचर मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, कोरोना से संक्रमित हुए लोग 3 साल बाद भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। जिन लोगों को कोविड इन्फेक्शन हुआ था, उन्हें कभी संक्रमित नहीं हुए लोगों के मुकाबले 34% ज्यादा हेल्थ रिस्क हैं।
आज ‘सेहतनामा’ में जानेंगे कि कोरोना के तीन साल बाद भी किस तरह के हेल्थ रिस्क हैं?
कोरोना से रिकवर हुए लोगों को होने वाली हेल्थ प्रॉब्लम्स
कोरोना से रिकवर हुए लोगों को अकसर इस तरह की शिकायतें हो रही हैं, जैसेकि याददाश्त में कमी, क्रॉनिक फटीग, सांस लेने में परेशानी। कोविड के बाद अचानक हार्ट अटैक से होने वाली मौतों की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ है। कई अलग-अलग स्टडीज में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि ये सब पोस्ट कोविड फिनॉमिना है।
दिल्ली के सीनियर फिजिशियन डॉ. बॉबी दीवान कहते हैं कि अगर पहले से कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं है तो कोरोना से संक्रमित व्यक्ति 3 से 5 सप्ताह में ठीक हो जाता है। हम RT-PCR रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद समझते हैं कि हमने कोरोना को मात दे दी है। लेकिन सच ये यह है कि कोविड संक्रमण दूसरी बीमारियों से काफी अलग है। ठीक होने के बाद भी हमारे बॉडी ऑर्गन्स पर लंबे समय तक इसका असर बना रहता है।
इसलिए जल्दी बीमार पड़ रहे लोग
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन की एक रिसर्च के मुताबिक कोरोना वायरस ने मैक्रोफेजेज कोशिकाओं को नकारात्मक ढंग से प्रभावित किया है। हमारे खून में मैक्रोफेजेज नाम की कोशिकाएं होती हैं, जो परजीवियों को खाने का काम करती हैं। साथ ही, खून में कोलेस्ट्रॉल लेवल कम करने में मदद करती हैं। आसान शब्दों में कहें तो मैक्रोफेजेज सेल्स हमारी प्रोटेक्शन आर्मी की तरह हैं।
चूंकि कोरोना वायरस ने इन हेल्दी कोशिकाओं को नष्ट कर दिया है। इसलिए लोग जल्दी-जल्दी बीमार पड़ रहे हैं। कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने से हार्ट अटैक के मामले भी बढ़ रहे हैं।
हेल्दी कोशिकाएं नष्ट होने से कमजोर हो गए बॉडी ऑर्गन्स
जॉन हॉपकिन्स मेडिसिन स्कूल के मुताबिक, जैसे ही हमें कोई इन्फेक्शन होता है तो हमारा शरीर साइटोकाइन नाम का केमिकल रिलीज करता है। यह केमिकल परजीवी कोशिकाओं को खत्म करके हमें तमाम बीमारियों से सुरक्षित कर देता है।
कोरोना जैसे खतरनाक इन्फेक्शन से लड़ने के लिए शरीर ने बहुत अधिक मात्रा में साइटोकाइन रिलीज किया, जिससे हेल्दी कोशिकाएं भी नष्ट हो गईं। हमारे ऑर्गन्स के कमजोर होने का एक बड़ा कारण यह भी है।
20 साल बूढ़ा हो गया दिमाग
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, कोरोना वायरस इंफेक्शन ने लोगों के कॉग्निटिव फंक्शन को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहां तक कि इससे उनकी मेमोरी पॉवर भी काफी कमजोर हो गई है। साथ ही इसका असर लोगों के दिमाग के आकार पर भी पड़ा है। कई लोगों का दिमाग सिकुड़ गया। जिन लोगों पर कोविड का हल्का असर हुआ था, उनका दिमाग करीब 7 साल तक बूढ़ा हो गया। जबकि जो लोग गंभीर रूप से संक्रमित हुए थे, उनका दिमाग 20 साल तक बूढ़ा हो गया है।
किडनी की हेल्थ पर पड़ा बुरा असर
किडनी फिल्टर की तरह होती है। ये हमारे शरीर से टॉक्सिन्स, एक्स्ट्रा पानी और अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालती है। कोविड इन्फेक्शन के कारण ब्लड स्ट्रीम में छोटे-छोटे थक्के बने, जिससे किडनी की सबसे छोटी ब्लड वेसल्स ब्लॉक हो गईं। इससे किडनी का कामकाज प्रभावित हुआ और फेल्योर के चांसेज बढ़ गए।
कोविड इन्फेक्शन ने बिगाड़ी दिल की सेहत
कोरोना वायरस संक्रमण ने नसों और आर्टरीज के इंटरनल सर्फेस को प्रभावित किया है, जिससे ब्लड वेसल्स में इंफ्लेमेशन हो सकता है। बहुत पतली वेसल्स तो नष्ट भी हो सकती हैं या ब्लड क्लॉटिंग हो सकती है। इन सभी हेल्थ कंडीशंस ने दिल का बहुत नुकसान किया है।
न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर हुआ
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, कोविड इन्फेक्शन के कारण एक बड़ा न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर हुआ। संक्रमण के दौरान सबसे अहम लक्षण स्वाद, गंध की क्षमता कम होना ही था। यह न्यूरोट्रांसमिटर्स के रिसेप्टर्स कमजोर होने के कारण ही हुआ था, जो अभी तक पूरी तरह रिकवर नहीं हो पाया है।
सांस संबंधी कई समस्याओं की वजह है कोरोना
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, कोरोना वायरस ने लंग्स और पूरे रेस्पिरेटरी सिस्टम को खासा नुकसान पहुंचाया है। उसका असर अब तक बरकरार है। यही कारण है कि कोरोना से संक्रमित हो चुके लोगों को निमोनिया और अस्थमा जैसी समस्याओं का अधिक सामना करना पड़ रहा है।
कॉग्निटिव प्रॉब्लम्स हो रही हैं
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, कोविड इन्फेक्शन के कारण कॉग्निटिव डिसफंक्शन का खतरा बढ़ गया है। कोरोना के बाद से सिरदर्द, चक्कर आने और मानसिक थकान के मामले बढ़ गए हैं। लोगों को कुछ याद रख पाने और कॉन्सन्ट्रेशन में भी समस्या आ रही है।
हम कैसे सुरक्षित रह सकते हैं?
कोविड संक्रमण तो होकर जा चुका है। शरीर पर इसका जो असर पड़ना था, वह भी हो चुका है। अब सवाल ये है कि खुद को इसके आफ्टर इफेक्ट से कैसे बचाया जाए।
सेहत और बीमारी का बेसिक साइंस ये है कि वायरस, बैक्टीरिया तो वातावरण में हर जगह मौजूद हैं। हम हमेशा इनके संपर्क में आते भी रहते हैं। लेकिन हम बीमार पड़ेंगे या नहीं, यह इस पर निर्भर है कि हमारी इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कितनी मजबूत है।
कोविड महामारी के दौरान भी ज्यादा प्रभावित वही लोग हुए, जिनकी इम्यूनिटी पहले से कमजोर थी या जो गंभीर लाइफ स्टाइल बीमारियों का शिकार थे।
डॉ. बॉबी दीवान कहते हैं कि बहुत संभव है कि नई रिसर्च में कोरोना से हुए नए नुकसान सामने आएं। कोविड के चलते हुई हेल्थ प्रॉब्लम्स की लिस्ट लगातार लंबी होती जा रही है। इसलिए संभावित नुकसानों को दूर करने का एक ही तरीका है- हेल्दी लाइफस्टाइल।
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