जालोर जिले के आहोर उपखंड क्षेत्र के गांव ओडवाड़ा में 268 परिवारों को बिजली-पाली के बिलों के भरोसे मकान बचने की उम्मीद है। इस गांव में ये मकान चारागाह की जमीन पर हैं। कोर्ट ने मकानों को हटाने के आदेश दे दिए थे। अब सुनवाई 8 जुलाई को है। ये परिवार डर के साये में हैं। आखिरी उम्मीद ये बिल हैं, जिन्हें पट्टों की तरह संभाल कर रखा है।
ओडवाड़ा गांव में लोगों का डर एक तरफ है। दूसरी तरफ नगर परिषद उप सभापति अंबालाल व्यास ने पिछले दिनों हुई प्रशासन की कार्रवाई को एकतरफा बताया। कहा है कि दोषी शासन और प्रशासन में बैठे वे लोग भी हैं जिन्होंने लोगों को ओरण की जमीन पर आंख बंद कर अतिक्रमण होने दिया। दस्तावेज लिखकर दे दिया। बिजली पानी का कनेक्शन करवा दिए। वोट हासिल किए। अब उन जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।
अंबालाल ने कहा- पहली बात तो यह कि ओरण के लिए छोड़ी गई जमीन पर कब्जा होना ही नहीं चाहिए था। लेकिन इसके लिए सिर्फ लोग दोषी नहीं हैं। इसलिए सजा भी एकतरफा देना उचित नहीं है।राजस्थान में जंगल बचाने के लिए लोगों ने बलिदान तक दिए हैं। लेकिन यहां प्रशासन की आंखों के सामने ओरण खत्म होते चले गए। शासन प्रशासन के अधिकारियों नेताओं ने ही ओरण की जमीन पर कब्जे कराए और अब लोगों को परेशानी में छोड़ पीछे हट गए हैं।
लोगों में मकान गिरने का डर, बिजली-पानी के बिलों का सहारा
ओड़वाड़ा में जिन लोगों के पास ठोस दस्तावेज या पट्टे नहीं मिलेंगे उनके मकान तोड़ दिए जाएंगे। मामला कोर्ट में है। दस्तावेज के नाम पर लोग अपने बिजली और पानी के बिल संभाल रहे हैं। हालांकि मकान को बचाने में ये कितने कारगर होंगे, इसकी जानकारी लोगों को नहीं है।
ओड़वाड़ा गांव में 25 साल से रह रहे बुजुर्ग मंगलाराम सुथार ने बताया- हर वक्त मकान गिराने का डर रहता है। क्या करे, कुछ समझ नहीं आता। मेरे पास पंचायत के दिये सनद (कागज) व लाइट व पानी के बिल हैं। फिर भी मकान टूटने का डर है।
ओडवाड़ा निवासी फुसीदेवी ने बताया- पति भोमाराम की 10 साल पहले हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। घर में वह और 13 साल की बेटी दो ही सदस्य हैं। पति ने प्लाट लेकर मकान बनाना शुरू किया था। इस दौरान उनकी मौत हो गई। पति की मौत होने के कारण 10 साल से मकान अधूरा पड़ा है। पति ने जो कमरा बनवा दिया था उसी में मां बेटी रहते हैं।
नल-बिजली के बिल के अलावा हमारे पास कोई दस्तावेज नहीं है। मकान गिरा दिया तो बेटी को लेकर कहां जाऊंगी, पता नहीं।
स्थानीय प्रशासन की ओर से मिले इन आकंड़ों से यह जाहिर होता है कि जालोर में 10 साल में वन क्षेत्र और पहाड़ियां न बढ़ी हैं, न घटी हैं। ऊसर भूमि (न बोने योग्य जमीन) 52 हेक्टेयर के करीब बढ़ी है। अकृषि उपयोग के लिए रखी गई जमीन 297 हेक्टेयर बढ़ी है। जबकि स्थायी चारागाह 114 हेक्टेयर तक कम हो गए हैं।
ओडवाड़ा गांव में लोगों के मकानों पर कार्रवाई की जानी है। लेकिन इंदिरा आवास किसने बनाया, पंचायत भवन का निर्माण किसने कराया। मंदिर और गोशाला बनाने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए। गांव में 37 एकड़ में 440 से ज्यादा मकान ओरण की जमीन पर बन गए।
हाईकोर्ट ने दिया था ओरण की जमीन खाली करने का आदेश
हाईकोर्ट ने 16 मार्च 2021 को आदेश दिया था कि ओरण की जमीन खाली की जाए। इसके बाद हड़कंप मच गया। गांव के 440 भूखंड चिह्नित किए गए। 20 पर स्टे ले लिया गया। 268 को नोटिस दिया गया।
जब अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू की गई तो कोहराम मच गया। सभी ने कार्रवाई का विरोध किया। मानवीय पहलू को देखते हुए कार्रवाई रोक दी गई। अब 8 जुलाई को कार्रवाई को लेकर फैसला आ सकता है।
नगर परिषद उप सभापति अंबालाल व्यास ने कहा- पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। जंगल की जमीन पर लगातार हो रहा अतिक्रमण भी इसके लिए जिम्मेदार है। अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हो रही है। बिल्डिंगें खड़ी की जा रही हैं, नई कॉलोनियां बसाई जा रही हैं। नई बसावट को रोका नहीं जा सकता लेकिन जितने वृक्ष काटे जाते हैं उतने वृक्ष लगाने की पाबंदी होनी चाहिए।
लोगों के लिए अभी समझना जरूरी है कि ओरण, गोचर और जंगल कितने जरूरी हैं। प्रकृति का संचालन ही बिगड़ गया है। समय पर बरसात नहीं हो रही है। आने वाले दौर में सिर्फ गर्मी का सीजन रह जाएगा। सर्दी और बरसात के मौसम लगभग खत्म हो जाएंगे। जंगल को बचाने की हर संभव कोशिश की जानी चाहिए।
हमारी परंपरा में इंसानों के साथ साथ जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का भी महत्व रहा है। इसीलिए इंसानी बस्तियों के साथ ओरण और गोचर बनाए गए। गर्मी में इंसान अपने लिए कूलर, एसी की व्यवस्था कर लेता है, जानवर गर्मी के वक्त ओरण में शरण लेते हैं। वहीं उनके पानी की व्यवस्था होती है। प्रकृति के सामने इंसान और जानवर दोनों बराबर हैं।
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