मैनपुरी की सड़कों पर डिंपल यादव कैंपेनिंग कर रही हैं। 2022 की तरह वो कार में नहीं, पैदल चलती हैं। महिलाओं को गले लगाती हैं। लोगों से समस्याएं पूछती हैं। दावा करती हैं कि भाजपा इस बार 200 सीट भी नहीं जीत पाएगी। बेटी अदिति उन्हें सपोर्ट कर रही हैं।
राजनीति में परिवारवाद के सवाल पर कहती हैं- ब्रजभूषण के बेटे को टिकट देना क्या परिवारवाद नहीं है। हम तो चुनाव लड़ते हैं, जनता चुने या नकार दे। अखिलेश के अयोध्या में रामलला के दर्शन नहीं करने पर कहती हैं- आप चिंता न करें, हम डेफिनेटली पहुंच जाएंगे।
भाजपा के परिवारवाद की बात करें तो एक पूरी सीरीज लिख सकते हैं। जैसे बृजभूषण के बेटे को टिकट दिया, क्या ये परिवारवाद नहीं? भाजपा ने दूसरे राज्यों में परिवारवाद का सहारा लेकर सरकारें बनाईं। भाजपा कैसे परिवारवाद पर सवाल कर सकती है? परिवार का कोई सदस्य इलेक्शन में जाता है, तब जनता डिसाइड करती है कि उसे चुनना है या नहीं। सांसद बनेगा या नहीं। ये लोकतंत्र का माध्यम है, जिसके जरिए जनता डिसाइड करती है। कोई सीधे हमें किसी पद पर बैठा नहीं दे रहा। हम चुनाव भी हारे हैं। जनता ही नकारती है, जनता ही स्वीकार करती है। ये लोकतंत्र का बहुत सुंदर तरीका है।
अभी जनता को ये सोचना चाहिए कि जो वादे भाजपा ने किए थे, वो पूरे नहीं कर पाई। यूपी विधानसभा चुनाव में इन लोगों ने कहा था एक-एक सिलेंडर होली-दीवाली पर फ्री देंगे। जनता को ऐसे वादे याद रखने चाहिए। जो वादे भाजपा ने चुनाव के दौरान किए थे, चुनाव खत्म होने के बाद वो भूल गई। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए।
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