अप्रैल 1997… एचडी देवगौड़ा PM पद से इस्तीफा दे चुके थे। सालभर के भीतर तीसरी बार सवाल उठा- अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? नए प्रधानमंत्री का नाम तय करने के लिए 19 अप्रैल को दिल्ली स्थित आंध्र भवन में यूनाइटेड फ्रंट की एक बैठक बुलाई गई। 13 दलों को मिलाकर बने इस फ्रंट का नेतृत्व चंद्रबाबू नायडू कर रहे थे।
वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने अपना प्रस्ताव रखते हुए कहा, ‘मेरी नजर में अगला प्रधानमंत्री उत्तर भारत से होना चाहिए। जो सांप्रदायिक ताकतों को रोक सके।' सुरजीत का इशारा मुलायम सिंह यादव की ओर था।
लेखक और पत्रकार फ्रैंक हुजूर के मुताबिक मुलायम सिंह यादव के नाम पर आम राय बन गई। राष्ट्रपति भवन को भी इसकी जानकारी देने की तैयारी हो गई थी कि मुलायम के नाम पर संयुक्त मोर्चे में सहमति है।
इसी बीच सुरजीत को कम्युनिस्ट पार्टी की एक मीटिंग में शामिल होने के लिए मॉस्को जाना पड़ा। वहीं देर रात 1 बजे दिल्ली से फोन पहुंचा। सुरजीत को बताया गया कि फ्रंट के सभी दलों ने PM पद के लिए आईके गुजराल को अपना नेता चुना है। इस तरह 324 दिनों के भीतर यह दूसरा मौका था, जब मुलायम सिंह यादव PM बनते-बनते रह गए। आखिर ये खेल कैसे पलटा और मुलायम को PM बनने का पहला मौका कब मिला था?
जब लालू बोले- ‘मुलायम PM बने तो मैं जहर खा लूंगा’
यूनाइटेड फ्रंट के नेताओं ने प्रधानमंत्री चुनने की जिम्मेदारी वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत को दी। उस वक्त हरकिशन का कद तीसरे मोर्चे में काफी बड़ा था। हर कोई उनका सम्मान करता था।
हरकिशन सिंह सुरजीत ने मुलायम को PM बनाए जाने पर सहमति जताई। मुलायम की बायोग्राफी 'मुलायम सिंह यादव- द सोशलिस्ट' के लेखक फ्रैंक हुजूर बताते हैं कि शपथ ग्रहण की तारीख और समय तय होने से पहले ही लालू यादव और शरद यादव ने विरोध कर दिया। लालू ने तो यहां तक कह दिया कि मुलायम PM बने तो मैं जहर खा लूंगा।
इसके बाद एचडी देवगौड़ा के नाम पर सबकी सहमति थी और 1 जून 1996 को उन्होंने PM पद की शपथ ली।
1997 में मुलायम को मिला प्रधानमंत्री बनने का दूसरा मौका
अप्रैल 1997 को कांग्रेस ने देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद एचडी देवगौड़ा ने PM पद से इस्तीफा दे दिया। देवगौड़ा की सरकार सिर्फ 324 दिन चल पाई। उनके सत्ता से हटते ही नई सरकार चुनने की प्रक्रिया तेज हो गई।
एक बार फिर से वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने मुलायम सिंह यादव के नाम को PM पद के लिए आगे बढ़ाया। उस वक्त संयुक्त मोर्चे के 13 दलों में कुल 179 सांसद थे। देवगौड़ा समेत 110 से ज्यादा सांसद मुलायम के समर्थन में थे।
शेखर गुप्ता को दिए इंटरव्यू में वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने भी कहा कि यूनाइटेड फ्रंट के 120 सांसदों ने मुलायम को जबकि 20 ने मूपनार को प्रधानमंत्री बनाने का समर्थन किया था। बाकी सांसद अन्य नामों पर सहमति जाहिर कर रहे थे।
हरकिशन सिंह सुरजीत आगे बताते हैं, ‘यूनाइटेड फ्रंट में मुलायम का नाम तय होने के बाद मैं मॉस्को चला गया। 21 अप्रैल को मॉस्को के समय अनुसार सुबह करीब 5 बजे मैं प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी देने ही वाला था। इससे पहले एम्बेसी के अधिकारियों ने मुझे थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहा। दरअसल, उस समय दिल्ली में यूनाइटेड फ्रंट के नेता अगले PM के नाम पर बैठक कर रहे थे।’
हरकिशन सिंह सुरजीत के मुताबिक, उन्होंने तुरंत दिल्ली फोन लगाकर इसकी जानकारी लेने की कोशिश की। उन्हें बताया गया कि उनके मॉस्को जाने के बाद दिल्ली में शरद यादव के घर पर लालू यादव समेत यूनाइटेड फ्रंट के कई नेताओं की बैठक हुई।
अपनी किताब 'बंधु बिहारी' में संकर्षण ठाकुर बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव के नाम पर चंद्रबाबू नायडू व वाम दल सहमत थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव अड़ गए कि एक यादव को ही प्रधानमंत्री बनना है तो वे खुद क्यों नहीं हो सकते?
जब उनके खिलाफ चारा घोटाला में जांच चल रही थी तो मुलायम सिंह यादव पर भी तो भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। लालू ने फिर चंद्रबाबू नायडू और वाम दलों के सामने साफ छवि वाले इंद्र कुमार गुजराल का नाम आगे किया। उनके नाम पर सहमति बन गई।
चंद्रबाबू नायडू ने बिना देरी किए दिल्ली स्थित बंग भवन में ज्योति बसु से मुलाकात कर उन्हें इस बात की जानकारी दी। सुरजीत के मुताबिक PM पद के लिए नाम तय होने से पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि आईके गुजराल कभी प्रधानमंत्री भी बन पाएंगे।
आईके गुजराल के प्रेस अधिकारी रहे पवन कुमार वर्मा अपनी किताब 'द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास' में पूर्व PM गुजराल के बेटे नरेश गुजराल के हवाले से लिखते हैं कि 20 अप्रैल की देर रात आईके गुजराल अपने बिस्तर पर चले गए थे। तभी उनके पास मॉस्को से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता और यूनाइटेड फ्रंट सरकार के 'चाणक्य' हरकिशन सिंह सुरजीत का फोन आया।
उन्होंने ही गुजराल से कहा था कि एचडी देवेगौड़ा के इस्तीफे के बाद PM पद के लिए फ्रंट के नेताओं ने आपके नाम पर मुहर लगाई है। इस तरह मुलायम, लालू यादव की वजह से दूसरी बार PM बनते-बनते रह गए।
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