जयपुर की कोठी जहां 31 साल से लगी है धारा-144:अंदर रहता है परिवार, 5 से ज्यादा लोग इकट्ठे हुए तो पकड़ लेती है पुलिस

जब भी कभी उपद्रव होता है या कोई बड़ा विवाद होता है तो हालात काबू करने के लिए लिए धारा-144 (निषेधाज्ञा) लगाई जाती है। हालात सामान्य होने पर उसे हटा भी लिया जाता है।

…लेकिन राजधानी जयपुर में एक ऐसी कोठी है, जहां पिछले 31 साल से धारा-144 है। आज तक न जानें कितनी सरकारें बदली, पुलिस अधिकारियों के तबादले हुए, लेकिन धारा-144 को नहीं हटाया गया। हाल ही में 162वीं बार धारा-144 लगाने के आदेश जारी किए गए।

इस कोठी के अंदर परिवार रहता है और बाहर धारा-144 के तहत पुलिस का पहरा। ऑर्डर इतने सख्त हैं कि कोठी के 500 मीटर एरिया में डीजे बजाना, भीड़ इकट्ठी करने जैसी कई पाबंदियां हैं।

आखिर एक घर के बाहर धारा-144 लगाने का क्या राज है?

राजतंत्र से लोकतंत्र की गवाह है ये कोठी

जयपुर की वॉल सिटी (परकोटा क्षेत्र) के गंगापोल रोड पर बास बदनपुरा की ओर जाते समय सड़क पर बदहाल पड़ी खाचरियावास कोठी पिछले 31 वर्ष से धारा-144 के साये में है। इस कोठी में कभी रौनकें लगती थी।

आजादी से पहले इस कोठी में जयपुर रियासत के जज रहा करते थे। आजादी के बाद देश के उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत से लेकर उपप्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी यहां संघ की शाखाएं लगाते थे।

बहुत कम लोगों को जानकारी

भास्कर टीम इस कोठी पर 31 साल से लगी धारा-144 की पड़ताल करने पहुंची। आसपास रहने वाले लोगों को भी इसकी पूरी जानकारी नहीं है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह कोठी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में है और कानून व्यवस्था बनाने के लिए धारा लगाई गई है।

कोठी के पास ही कचौरी-समोसे बनाने वाले बाबुलाल मेहरा और परचून की दुकान चलाने वाले सुरेश कुमार अग्रवाल ने बताया हमारी तो उम्र बीत गई धारा-144 लगी हुई देखते-देखते। बस इतना जानते हैं कि 1993 में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद इस इलाके में धारा 144 लगाई गई थी।

सवालों के जवाब जानने के लिए लगानी पड़ी RTI

यहां 2 बड़े सवाल थे...दंगे भड़कने की आशंका थी तो केवल एक कोठी पर ही निषेधाज्ञा क्यों लागू की गई? क्या 31 साल बाद भी हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि धारा-144 नहीं हटाई जा सकती।

इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमने RTI (राइट टू इंफॉर्मेशन) का सहारा लिया। क्योंकि कोई पुलिस अधिकारी मामले में कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं था। ज्यादातर ने चुनावी व्यस्तता बताते हुए टाल दिया गया। आरटीआई से मिली जानकारी के बाद पुलिस अधिकारी कुछ बताने को राजी हुए।

ऐसे शुरू हुआ विवाद और लगी निषेधाज्ञा?

कार्यपालक मजिस्ट्रेट एवं सहायक पुलिस आयुक्त, मानक चौक (उत्तर) डॉ. हेमंत जाखड़ ने भास्कर से बातचीत में बताया कि खाचरियावास हाउस पर धारा 144 लगाने का असल कारण इसके संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर उपजा विवाद है। हवेली के मालिक जयपुर रियासत ने राजपूताना हाउस के न्यायाधीश रहे ठाकुर कल्याण सिंह के बेटे ठाकुर सुरेंद्र सिंह हुआ करते थे।

सुरेंद्र सिंह ने इसे मुनव्वर चौधरी नाम के एक बिल्डर को बेच दिया था। मामले में पेंच तब फंसा जब मुनव्वर चौधरी ने इस हवेली को डायरेक्ट ठाकुर सुरेंद्र सिंह से खरीदने की बजाय रमेश शर्मा नामक के किसी व्यक्ति के नाम से खरीदा। 1993 में इस हवेली का प्रथम बेचान और रजिस्ट्री रमेश शर्मा के नाम पर हुई थी।

बाद में मुनव्वर चौधरी ने रमेश शर्मा से यह हवेली खरीदी और फिर मालिकाना हक जताते हुए कब्जा ले लिया। हवेली के परिसर में मुख्य द्वार के सामने बने भौमिया जी के मंदिर में पहले लोग पूजा पाठ करने के लिए आते थे, जिसे मुनव्वर ने बंद करवा दिया था।

तब यह बात जाहिर हुई कि हवेली मुनव्वर चौधरी ने खरीद ली है। आस पास के लोगों ने परिसर में बने मंदिर को तोड़े जाने की आशंका जताई और इसका विरोध करना शुरू कर दिया। यह वो दौर था जब बाबरी मस्जिद का विवाद ताजा था।

प्रशासन को दंगा भड़कने की आशंका थी। मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्कालीन जयपुर कलेक्टर एस एन थानवी ने पहली बार 20 मई, 1993 को हवेली और उसके 500 मीटर दायरे में धारा 144 लगाने का आदेश जारी किया था। 1993 में शुरू हुआ यह सिलसिला चार साल तक चलता रहा।

भास्कर के पास ऑर्डर की कॉपी

1993 का रिकॉर्ड तो कहीं नहीं सहेजा गया लेकिन वर्ष 1997 से इसका रिकॉर्ड सुभाष चौक थाने में रखा जाने लगा। निषेधाज्ञा के ऑर्डर की कॉपी पर 1997 में तत्कालीन अतिरिक्त जिला कलेक्टर एवं अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (नगर प्रथम जयपुर) एल. सी. असवाल के हस्ताक्षर हैं, जिसमें उन्होंने हवेली पर 26 मई से 25 जुलाई, 1997 तक निषेधाज्ञा लगाने के आदेश जारी किए थे।

24.5.1997 को जारी हुए धारा-144 के आदेश की कॉपी। इसमें साफ लिखा गया था कि कोई भी व्यक्ति कोठी के अंदर भजन कीर्तन नहीं कर सकेगा।

अब तक क्यों लगाई जा रही धारा-144?

घर के परिसर में बने भौमिया जी के मंदिर को तोड़े जाने की आशंका के बाद यहां धारा लगाई गई थी। तब से इसी कारण का हवाला देकर हर दो महीने में इसकी मियाद बढ़ा दी जाती है। फिर इस हवेली के बेचान को लेकर भी विवाद है। यह प्रॉपर्टी 1992 में बाबरी मस्जिद विवाद के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान बेची गई थी। संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण भी पुलिस सतर्कता बरतती है।

पिछले साल यहां बाइक भिड़ने के मामूली विवाद के बाद आपसी झगड़े में इकबाल खान नाम के युवक की हत्या हुई थी। इसके बाद यहां पुलिस चौकी स्थापित कर दी गई थी।

हर 2 महीने में इस हवेली पर लगती है धारा 144

जब भी निषेधाज्ञा की मियाद खत्म होने वाली होती है तब एसीपी कार्यालय सुभाष चौक थानाधिकारी से पूछता है कि इसे आगे बढ़ाना है या नहीं, इस बारे में मौका मुआयना कर रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

इसके बाद थानाधिकारी की ओर से प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के आधार पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट एवं सहायक पुलिस आयुक्त, माणक चौक (उत्तर) निषेधाज्ञा की अवधि को दो महीने के लिए फिर से बढ़ा देता है। दो महीने की अवधि के हिसाब से अब तक इस हवेली पर 1997 से 162 बार निषेधाज्ञा लग चुकी है।

प्रॉपर्टी के स्वामित्व को लेकर अब भी विवाद

एसीपी जाखड़ ने बताया कि हवेली के असली मालिक का पता लगाने की कोशिश की गई लेकिन कभी किसी ने दावा पेश नहीं किया। एक बार प्रश्नावली की एक सूची मुनव्वर चौधरी को भी सौंपी गई थी्, लेकिन वह भी कोई सबूत प्रस्तुत नहीं कर सके। 1993 के बाद से ही हवेली की बॉउंड्री के अंदर बनी हुई दुकानों का किराया भी कोई नहीं देता।

इस कोठी में फिलहाल राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के प्रदेश अध्यक्ष मुनव्वर चौधरी और उनका परिवार रहता है। करीब 5-6 बीघा में बनी इस कोठी में भोमिया जी का एक मंदिर भी बना हुआ है। अब वह महज एक चबूतरे जैसा ही रह गया है।

रियासत के पहले ग्रेजुएट थे ठाकुर सुरेंद्र सिंह के पिता

ठाकुर सुरेंद्र सिंह के पिता ठाकुर कल्याण सिंह जयपुर रियासत के बीए पास करने वाले पहले जागीरदार थे। इसी के चलते ठाकुर कल्याण सिंह को तत्कालीन जयपुर रियासत के राजपूताना हाउस का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उस दौर में ठाकुर कल्याण सिंह का बड़ा रुतबा होता था। उनकी मौत के बाद खाचरियावास हाउस उनके बेटे सुरेंद्र सिंह के पास आ गया था।

बताते हैं सुरेंद्र सिंह खाचरियावास ने अपने भाइयों की जानकारी में लाए बिना ही इसे रमेश शर्मा के जरिए मुनव्वर चौधरी के परिवार को बेचा था। उस जमाने में विश्व हिन्दू परिषद् के राजस्थान अध्यक्ष जय बहादुर सिंह शेखावत ने अपने भाई सुरेंद्र सिंह के हवेली बेचने का विरोध किया था।

करीब 300 वर्ष पुरानी, 6 हजार वर्ग गज में फैली कोठी

खाचरियावास हाउस जयपुर शहर की स्थापना के समय बनाया गया था। खाचरियावास के ठाकुर गुमान सिंह सवाई राजा जय सिंह के दरबार के प्रमुख सामंतों में शुमार थे। राजा ने प्रमुख सामंतों को गंगापोल चौकड़ी में हवेलियां बनाने के लिए जमीनें दी थी।

करीब 6000 वर्गगज में ठाकुर गुमान सिंह ने खाचरियावास हाउस बनवाया था। उस दौर में जयपुर के आस पास इनामी डकैत शंभू सिंह का आतंक भी रहता था। गुमान सिंह ने डकैत शम्भू सिंह का सिर काटकर राजा के सामने पेश किया था।

उनके बाद दूल्हे सिंह, शिवदान सिंह, राम सिंह, चतरमल सिंह, विजय सिंह, गोविंद सिंह ने खाचरियावास हाउस की बागडोर संभाली। बाद में इस हाउस को बेच देने को लेकर विवाद हुआ और निषेधाज्ञा लगानी पड़ी। प्रॉपर्टी कारोबारियों का कहना है कि आज इस बेशकीमती जगह की असली कीमत का अनुमान लगाना भी मुश्किल है।

लगती थी RSS की शाखाएं, आडवाणी आते थे हवेली में

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ राजनेता लाल कृष्ण आडवाणी जन संघ के समय से ही हवेली के परिसर में पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत से मिलने आते थे। तब यहां आरएसएस की शाखाएं भी लगा करती थी। खुद पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी भी इस हवेली में लगने वाली आरएसएस की शाखाओं में भाग लेने आते थे।

इन शाखाओं में राजनीति, समाज, धर्म और राष्ट्रवाद पर महत्वपूर्ण चर्चाएं हुआ करती थीं। इस हवेली ने कई ऐतिहासिक हस्तियों की आमद में अपने पलक पावड़े बिछाए हैं। देश के उप राष्ट्रपति रह चुके भैरोंसिंह शेखावत भी इस हवेली में रहे हैं। उस जमाने वो रियासत के कामदार (सेक्रेटरी) थे और एमएलए बनने से पहले यहीं रहा करते थे।

52 रजवाड़े थे यहां, कहलाती थी ओल्ड सिविल लाइन्स

आस पास के पुराने लोगों ने बताया कि यह जगह कभी जयपुर रियासत की पुरानी सिविल लाइन्स हुआ करती थी। यहां रियासत के 52 रजवाड़े, सामंत, जागीरदार और कामदार निवास करते थे। उस दौर में यह इलाका बड़े-बड़े सामंतों की हवेलियों और उसकी चहल-पहल से आबाद रहता था।

50 साल से पान का ठेला लगाने वाले 75 वर्षीय जगदीश प्रसाद शर्मा ने बताया कि इस पूरे इलाके में रियासत के बड़े जागीरदारों की हवेलिया और कोठी राजपरिवार की आज्ञा से बनवाई गई थी।

तब इलाके में सामोद हाउस, चौमूं हाउस, महार हवेली, रेनवाल हाउस, बांसखोह हाउस, उनियारा हाउस, बदनपुरा हाउस, सौबाग महल, बटवाड़ा हाउस, अलवर हाउस, नरवाड़ा हाउस, पदमपुरा जैसे चर्चित ठिकाने निवास करते थे।

धारा-144 लगाकर क्या ऑर्डर देती है पुलिस?

निषेधाज्ञा का ऑर्डर कार्यवाहक मजिस्ट्रेट एवम सहायक पुलिस आयुक्त (उत्तर) से जारी होता है। जिसके मुताबिक खाचरियावास कोठी और उसकी 500 मीटर की परिधि में कई पाबंदियां लगाई जाती हैं।

  • कोई भी व्यक्ति आयोजन, कीर्तन, कव्वाली, प्रसादी, उद्घाटन व नारेबाजी नहीं कर सकेगा।
  • 5 या 5 से अधिक व्यक्ति एकत्रित नहीं होंगे।
  • नारेबाजी, ज़ुलूस निकालने, मार्ग अवरुद्ध करने पर भी रोक रहेगी।
  • किसी प्रकार का कोई हथियार लेकर यहां नहीं चल सकेगा।
  • राजकीय ड्यूटी पर कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों पर यह आदेश लागू नहीं होगा।
  • इस आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-188 के तहत अभियोग चलाया जाएगा।

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