'आजादी के आंदोलन में भी उतनी यातनाएं नहीं दी गईं', आपातकाल में जेल जाने वाले आंदोलनकारियों से सुनिये 49 साल पहले क्या हुआ था? - 49 Years Of Emergency

पटना: 25 जून 1975 का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज है. रातों-रात देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास में आपातकाल को काला अध्याय के रूप में जाना जाता है. 21 महीने के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया और उन्हें जेल में तरह-तरह की यातनाएं दी गई. इंदिरा के एक कदम ने भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में रहने वाले लोगों को आंदोलित कर दिया था. नतीजा ये रहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अगुवाई देश में 'संपूर्ण क्रांति' छेड़ दी गई. लंबे संघर्ष के बाद पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी.

49 पहले देश में लगा था आपातकाल: वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि संविधान में राष्ट्रपति शासन का प्रावधान है लेकिन इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल लगाया तो संवैधानिक प्रावधानों को भी ताक पर रख दिया. श्रीमती गांधी ने संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की थी. भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद फैसला माना जाता है. आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था और जमकर मनमानी की गई थी. प्रेस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.

"संविधान में आपातकाल का प्रावधान है लेकिन श्रीमती गांधी ने आपातकाल लगाते समय जल्दबाजी दिखाई और संवैधानिक प्रावधानों का पालन नहीं किया. बगैर कैबिनेट की मीटिंग के श्रीमती गांधी ने आधी रात को आपातकाल लागू कर दिया और राष्ट्रपति से 12:00 बजे रात को दस्तखत कर लिया गया. सुबह कैबिनेट के सदस्यों को सूचना दी गई. श्रीमती गांधी के इस फैसले से पूरा देश आंदोलित हो गया. इमरजेंसी के दौरान न केवल जेल में आंदोलनकारियों पर जुल्म ढाए गए, बल्कि आम लोगों को भी सरकारी प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा."- प्रवीण बागी, वरिष्ठ पत्रकार

सदस्यता रद्द होने के बाद इंदिरा ने लगाई इमरजेंसी: दरअसल, आपातकाल की घोषणा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद की गई थी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1971 के भारतीय आम चुनाव में रायबरेली से प्रधानमंत्री के चुनाव को रद्द कर दिया था. उन्हें अपने पद पर बने रहने की वैधता को चुनौती देते हुए अगले 6 वर्षों तक चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया था. इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करने की सिफारिश कर दी थी.

राज नारायण ने दायर की थी याचिका: इंदिरा गांधी ने 10 मार्च को उत्तर प्रदेश के रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से अपने निकटतम प्रतिबंध संयुक्त देश पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण को एक लाख 10000 मतों से हराया था. राज नारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इंदिरा गांधी के निर्वाचन को चुनौती दी थी. इस तरह की याचिका चुनाव परिणाम घोषित होने की तिथि से 45 दिनों के भीतर दायर की जाती है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में ऐसे आधारों की सूची दी गई है, जिसके आधार पर उम्मीदवार के चुनाव पर सवाल खड़ा किया जा सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 127 में कुछ दृष्ट आचरण की सूची दी गई है. साबित होने की स्थिति में उम्मीदवार के चुनाव को अमान्य घोषित किया जा सकता है.

क्या था इंदिरा पर आरोप?: राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. ज्यादातर आरोपों को कोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन दो आरोपों को न्यायालय ने गंभीरता से लिया. पहला आरोप ये था कि इंदिरा गांधी ने मंच और लाउडस्पीकर लगाने के लिए सरकारी मशीनरी का उपयोग किया था. इसके अलावा चुनाव एजेंट के रूप में राजपत्रित अधिकारी यशपाल कपूर को नियुक्त किया गया था. यशपाल भारत सरकार में राजपत्रित अधिकारी थे.

बिहार से उठी आपातकाल के खिलाफ आवाज:

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी बताते हैं कि इमरजेंसी के बाद वैसे तो देशभर में इसके खिलाफ आंदोलन हुए लेकिन बिहार में उठी आवाज ने देश को एकजुट करने का काम किया है. संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण रामलीला मैदान में एक लाख लोगों की गतिविधि की और राष्ट्रपति रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' का पाठ किया. जयप्रकाश नारायण को चंडीगढ़ में हिरासत में ले लिया गया. 24 अक्टूबर 1975 को उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और उसी साल 12 नवंबर को उन्हें रिहा कर दिया गया. अस्पताल में उनको किडनी फेल होने का पता चला. जीवन भर डायलिसिस पर ही उनको रहना पड़ा.

जेल में विरोधियों पर ढाए गए जुल्म: 18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल हटा लिया और चुनाव की घोषणा कर दी. जेपी के मार्गदर्शन में जनता पार्टी का गठन किया गया. जनता पार्टी सत्ता में आई और केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. जनता पार्टी के नेताओं ने जयप्रकाश नारायण को भारत के राष्ट्रपति के रूप में प्रस्तावित किया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. इमरजेंसी के दौरान जेल जाने वाले बिहार बीजेपी के विधायक अरुण कुमार आपातकाल को याद करते हुए कहते हैं कि जेल में विरोधियों पर तरह-तरह की यातनाएं दीं गईं.

क्या बोले बीजेपी विधायक?: भारतीय जनता पार्टी के विधायक अरुण कुमार कहते हैं कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने विरोधियों को जेल में डाल दिया था. जेल जाने वालों में वह भी शामिल हैं. वे कहते हैं कि जेल में उनके बाल और दाढ़ी तक नोच लिए गए थे. पुलिस की पिटाई से उनके शरीर काले पड़ गए थे और उन्हें मारकर पटरी पर फेंकने की योजना थी लेकिन आम लोगों के दबाव के चलते उनकी जान बच गई.

"सिवान के मैरवा में कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोली में दो कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी. मुझे भी गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में बेरहमी से मुझ पर यातनाएं दी गई. उल्टा टांगकर मारा गया. मेरे दाढ़ी और बाल को नोच दिया गया. सिगरेट से मेरे पीठ पर जलाया गया. 100 बेंत से मारा गया. पटरी पर लेटाने की तैयारी थी लेकिन लोगों के आक्रोश के कारण मेरी जान बची."- अरुण कुमार, विधायक, भारतीय जनता पार्टी

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