भारत 26 राफेल मरीन जेट खरीदने के लिए फ्रांस के साथ चल रही बातचीत के दौरान बेहतर कीमत पाने के लिए कड़ा मोलभाव कर रहा है, इस सौदे की कीमत 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा होने की उम्मीद है। 8 जुलाई को फ्रांसीसी प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत की दूसरे दौर की चर्चा शुरू हुई। इसके अगले 10-12 दिन चलने की उम्मीद है।
भारत बातचीत को लेकर स्पष्ट है और नौसेना के लिए राफेल-M की डील के लिए बेस प्राइज वहीं रखना चाहता है, जो 2016 में वायु सेना के लिए 36 विमानों के पिछले सौदे का उपयोग करना चाहता है। इस डील की कीमत में इन्फ्लेशन कॉस्ट (मुद्रास्फीति) शामिल होगी, जिस पर पिछले सौदे में दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी थी।
पहले दौर की चर्चा जून 2024 में हुई थी
26 राफेल-एम फाइटर जेट खरीदने की डील पर पहले दौर की चर्चा पिछले महीने शुरू हुई थी। तबफ्रांस सरकार और दसॉ कंपनी के अधिकारियों ने रक्षा मंत्रालय की कॉन्ट्रेक्ट नेगोशिएशन कमेटी से चर्चा की थी।
50 हजार करोड़ की यह डील फाइनल होने पर फ्रांस राफेल-एम जेट के साथ हथियार, सिमुलेटर, क्रू के लिए ट्रेनिंग और लॉजिस्टक सपोर्ट भी मुहैया कराएगा।
इस डील की जानकारी सबसे पहले PM मोदी की पिछले साल की फ्रांस यात्रा के दौरान सामने आई थी। इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने लेटर ऑफ रिक्वेस्ट जारी किया था, जिसे फ्रांस ने दिसंबर 2023 में स्वीकार किया।
इस डील में और क्या-क्या रहेगा शामिल
फ्रांसीसी ऑफर में फाइटर जेट पर भारतीय हथियारों को असेंबल करने के लिए पैकेज शामिल हैं। इन हथियारों में अस्त्र एयर-टू-एयर मिसाइल, एयरक्राफ्ट कैरियर से ऑपरेट करने के लिए जेट में इंडियन स्पेसिफिक इन्हैंस्ड लैंडिंग इक्विपमेंट्स और जरूरी इक्विपमेंट्स शामिल किए हैं।
फ्रांस ने ट्रायल्स के दौरान इंडियन एयरक्राफ्ट कैरियर्स से राफेल जेट की लैंडिंग और टेक-ऑफ स्किल का प्रदर्शन किया है, लेकिन रियल टाइम ऑपरेशन के लिए कुछ और इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल करना होगा। यह भी भारत की डील का हिस्सा होगा।
हिंद महासागर में होगी राफेल मरीन जेट की तैनाती
नेवी के लिए खरीदे जा रहे 22 सिंगल सीट राफेल-एम जेट और 4 डबल ट्रेनर सीट राफेल-एम जेट हिंद महासागर में चीन से मुकाबले के लिए INS विक्रांत पर तैनात किए जाएंगे। भारतीय नौसेना इन विमानों को आंध्र प्रदेश के विशाखापटट्नम में INS डेगा में अपने होम बेस के रूप में तैनात करेगी।
नौसेना के दोहरे इंजन वाले जेट आमतौर पर दुनिया भर की वायु सेनाओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे समान विमानों की तुलना में अधिक महंगे होते हैं, क्योंकि समुद्र में इनके ऑपरेशन के लिए अतिरिक्त क्षमताओं की जरूरत होती है। इनमें वाहकों पर अरेस्टिंग लैंडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले लैंडिंग गियर भी शामिल हैं।
क्या हैं राफेल मरीज जेट की खासियतें...
पहली खेप में 2-3 साल लग सकते हैं, वायुसेना के लिए विमान आने में 7 साल लगे थे
INS विक्रांत के ट्रायल शुरू हो चुके हैं। उसके डैक से फाइटर ऑपरेशन परखे जाने बाकी हैं। सौदे पर मुहर लगने के कम से कम एक साल तक टेक्निकल और कॉस्ट से जुड़ी औपचारिकताएं पूरी होंगी।एक्सपर्ट के मुताबिक नौसेना के लिए राफेल इसलिए भी सही है, क्योंकि वायुसेना राफेल के रखरखाव से जुड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर चुकी है। यही नौसेना के भी काम आएगा। इससे काफी पैसा बच जाएगा।सूत्रों का कहना है कि राफेल-एम की पहली खेप आने में 2-3 साल लग सकते हैं। वायु सेना के लिए 36 राफेल का सौदा 2016 में हुआ था और डिलीवरी पूरी होने में 7 साल लग गए थे।
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