सुबह 4 बजे ट्रेलर में घुसी रोडवेज बस 5 घंटे में दिल्ली से जयपुर पहुंचने का टारगेट, ड्राइवर को 14 घंटे में 1 घंटे आराम, झपकी लगी, परिवार खत्म

जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय हाईवे के अलवर तिराहे पर सोमवार सुबह करीब 4 बजे सवारियों से भरी रोडवेज बस आगे चल रहे सीमेंट कट्टों से भरे ट्रेलर में घुस गई। इससे पति-प|ी व उनके 16 वर्षीय बेटे की मौत हो गई। 25 यात्री घायल हो गए। हादसा इतना भयावह था कि बेटे का एक पैर कटकर अलग हो गया था, जो बाद में बस में आ गए सीमेंट कट्टों के नीचे मिला। भास्कर ने हादसे की पड़ताल की तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं।

दरअसल, रोडवेज में अनुबंध पर चल रही बसें किलोमीटर के फेरे में हादसों को न्योता दे रही हैं। बसें जितनी अधिक चलेंगी, उतना ही अधिक भुगतान होगा। इसके चलते ड्राइवरों को 5:30 घंटे में जयपुर से दिल्ली और इतने ही समय में दिल्ली से लौटने का टारगेट है। रास्ते में 14 स्टॉपेज भी हैं। हर जगह 2 मिनट भी रुके तो 5 घंटे ही बचते हैं। लेट होने पर पैनल्टी का प्रावधान है। सोमवार को शाहपुरा में हादसे का शिकार हुई बस भी अनुबंधित थी।

ड्राइवर धनराज ने 14 घंटे में सिर्फ 1 घंटे आराम किया था। धनराज 7 जून को दोपहर 3:30 बजे जयपुर से बस लेकर दिल्ली गया था, लेकिन बारिश-जाम के चलते 8 घंटे में रात 11:30 दिल्ली पहुंचा। एक घंटे आराम के बाद रात 12:30 बजे जयपुर रवाना हो गया। सुबह 6 बजे सिंधी कैंप पहुंचना था। सुबह 4 बजे ड्राइवर को झपकी लगी और बस ट्रेलर में घुस गई।

पति-बेटे के साथ जयपुर पीहर आ रही थी महिला

हादसे के दौरान सवारियां नींद में थीं। बस ड्राइवर साइड से 10 फीट तक घुस गई। सीटें टूट गईं और बस में सीमेंट के कट्टे भर गए। पुलिस ने जैसे-तैसे सवारियों को निकालकर शाहपुरा अस्पताल पहुंचाया। दिल्ली निवासी विजय अग्रवाल (40), पत्नी टीना अग्रवाल (35) और बेटे प्रीतम अग्रवाल (16) की मौत हो गई। परिवार में अब केवल बेटी बची है। टीना पति व बेटे के साथ पीहर जयपुर आ र​ही थी।

  • शाहपुरा के पास हुआ हादसा, 1 घंटे जाम लगा।
  • शवों को क्रेन की मदद से निकाला जा सका।
  • घायलों में ज्यादातर जयपुर के रहने वाले थे।
  • नींद में सवारियां फर्श पर गिरीं, ज्यादातर के हाथ, पैर आदि में चोटें आई हैं।

    सरकारी बसों के ड्राइवरों को दिल्ली से जयपुर 286 किमी दूरी सिर्फ 5:30 घंटे में तय करनी होती है। उसमें भी 14 स्टॉपेज। ड्राइवरों को 14 घंटे ड्यूटी ऑवर्स में महज एक घंटा आराम को मिलता है। दिल्ली और जयपुर से ही निकलने में घंटों लग जाते हैं। दि

    ल्ली जाने वाली अनुबंध पर लगीं ज्यादातर बसें समय पर नहीं पहुंचती तो पैनल्टी भी लगती है। दबाव में ड्राइवर बसों को तय समय तक पहुंचाने के लिए तेज दौड़ाते हैं। समझना होगा कि सवारियों का जीवन ‘पैनल्टी’ से बड़ा नहीं है। सिस्टम इस हादसे से सबक ले और रफ्तार पर सवार जानलेवा नियमों को बदले।

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