सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई) को कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की हकदार है। इसके लिए वह याचिका दायर कर सकती है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक मुस्लिम युवक की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं होगा।न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा- हम इस निष्कर्ष के साथ अपील खारिज कर रहे हैं कि CrPC की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर। बेंच ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता ने इद्दत अवधि के दौरान पत्नी को कुछ भुगतान किया था? इस पर याचिकाकर्ता ने कहा- 15,000 रुपए का ड्राफ्ट ऑफर किया गया था, लेकिन पत्नी ने नहीं लिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था- मुस्लिम पति को पूरी जिंदगी तलाकशुदा पत्नी की जिम्मेदारी उठानी होगी
इसी साल जनवरी में एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था- तलाकशुदा मुस्लिम महिला दोबारा शादी कर लेती है, तब भी वह अपने पूर्व पति से तलाक में महिला के अधिकारों का सुरक्षा कानून (Muslim Women Protection of Rights on Divorce Act 1986, MWPA) के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। TOI के मुताबिक, जस्टिस राजेश पाटिल की सिंगल बेंच ने कहा- तलाक की हकीकत अपने आप में पत्नी के लिए धारा 3(1)(ए) के तहत भरण-पोषण का दावा करने के लिए पर्याप्त है। इसके साथ ही कोर्ट ने पूर्व पत्नी को एकमुश्त गुजारा भत्ता देने के दो आदेशों पर पति की चुनौती को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पति को अपनी पूर्व पत्नी को 9 लाख रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।
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