जैसलमेर में नजर आए दुर्लभ रेड हेडेड किंग गिद्ध चीन और आसपास के इलाकों से हो गए थे विलुप्‍त इन्‍हें बचाने के लिए रेगिस्‍तान में की तारबंदी

चीन और उसके आसपास के इलाकों में पाए जाने वाला अति दुर्लभ लाल सिर वाला गिद्ध राजस्थान में मिला है। जैसलमेर के डीएनपी एरिया में इनको देखा गया है। इन रेड हेडेड वल्चर को बचाने की कोशिशों के तहत रेगिस्तान के इलाकों में तारबंदी तक की गई है।

जैसलमेर के जंगलों से इस बार अच्छी खबर आई है। यहां डेजर्ट नेशनल पार्क (DNP) एरिया में अति दुर्लभ 9 लाल सिर वाले गिद्ध दिखाई दिए है। इसके अलावा 22 अन्य प्रजाति के गिद्ध भी बढ़े है। पहली बार गिद्धों की संख्या में इजाफा होने से पर्यावरण प्रेमियों में खुशी की लहर है।

रेड हेडेड वल्चर, लाल सिर वाला गिद्ध (Sarcogyps calvus) जिसे एशियाई राजा गिद्ध, भारतीय काला गिद्ध और पांडिचेरी गिद्ध भी कहते हैं। ये दुर्लभ प्रजाति भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला गिद्ध है। मगर ये प्रजाति विलुप्त हो रही है। इनके संरक्षण के प्रयासों के चलते इनकी संख्या बढ़ी है।

गिद्धों की संख्या बढ़ना पर्यावरण के लिए सुखद संकेत
जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क (DNP) के DFO आशीष व्यास ने बताया कि पहली बार गणना में शामिल हुए दुर्लभ गिद्ध की बढ़ती संख्या से सभी बेहद खुश है। गिद्धों की संख्या बढ़ना पर्यावरण के लिए सुखद संकेत माना गया है।

DNP एरिया में 22 दुर्लभ गिद्ध बढ़े
DFO व्यास ने बताया कि 9 रेड हेडेड गिद्ध DNP एरिया में नजर आए हैं। ये सबसे बड़ी खुशी की बात है। क्योंकि रेड हेडेड गिद्ध दुनिया में अति दुर्लभ गिद्ध है। अन्य गिद्धों की बात करें तो 22 गिद्ध बढ़े हैं। इससे 2 साल पहले 142 गिद्ध नजर आए थे। पिछले साल पश्चिमी विक्षोभ के कारण वन्य जीवों की गणना नहीं हो पाई थी। मगर इस साल बुद्ध पूर्णिमा पर हुई गणना में कुल 173 गिद्ध नजर आए हैं।

डीएनपी एरिया में नजर आए रेड हेडेड वल्चर
इस साल बुद्ध पूर्णिमा (23 मई) की धवल चांदनी में हुई वन्य जीवों की गणना में रेड हेडेड गिद्ध भी नजर आए जो पहली बार हुआ है। गौरतलब है कि वर्ष 2022 में वाटर हॉल पद्धति से ही वन्यजीवों की गणना की गई थी। इसके बाद 2023 में पश्चिमी विक्षोभ के कारण गणना नहीं हो सकी। 2024 में गणना होने पर 64 गोडावण के साथ ही दुर्लभ माने जाने वाले 173 गिद्ध दिखाई दिए है। 2022 में इन गिद्धों की संख्या जहां 142 ही थी। इस साल की गणना में रेड हेडेड वल्चर भी दिखाई दिए हैं जो अति दुर्लभ प्रजाति में शामिल है।
जैसलमेर में लाल सिर वाले 9 गिद्ध दिखाई दिए हैं। पूरे विश्व में इन गिद्धों की संख्या बहुत ही कम बची है। 1990 के दशक के बाद से लाल सिर वाले गिद्धों की आबादी लगभग हर दूसरे साल आधी हो गई है। जो कभी लाखों की संख्या में प्रजाति थी, वह दो दशकों से भी कम समय में विलुप्त होने के खतरनाक रूप से करीब आ गई है। लेकिन जैसलमेर के DNP एरिया में नजर आए ये रेड हेडेड गिद्ध संरक्षित वन्य जीव वाले एरिया में काफी सुरक्षित है।

पुरानी दुनिया का गिद्ध है लाल सिर वाला गिद्ध
जिला वन्य जीव अधिकारी आशीष व्यास ने बताया कि ये पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो लगभग समूचे भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिणी चीन और इंडो-चाइना में पाया जाता है। ऐतिहासिक रूप से ये गिद्ध अपने आवासीय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाया जाता था। भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर पूर्व में दक्षिण पूर्वी एशिया तक वितरित था और भारत से सिंगापुर तक पाया जाता था। आज इसका आवासीय क्षेत्र उत्तरी भारत तक सिकुड़ कर रह गया है। यह खुले मैदानों में, खेतों में और अर्ध-रेगिस्तानी इलाकों में देखने को मिलता है।

ये पतझड़ीय वनों में, पहाड़ों की तलहटी में और नदियों की घाटियों में भी पाया जाता है। ज़्यादातर ये समुद्र सतह से 3 हजार फीट की ऊंचाई तक ही पाया जाता है। ये मध्यम आकार का गिद्ध है जो 76 से 86 सेमी लंबा होता है और जिसके पंखों का फैलाव 1.99 से 2.6 मीटर तक का होता है। वयस्क का सिर गहरे लाल से नारंगी रंग का होता है और अवयस्क थोड़े हल्के रंग का होता है। इसका शरीर काले रंग का होता है और पंखों का आधार स्लेटी रंग का होता है। नर के आंख की पुतली हल्के सफ़ेद रंग की होती है जबकि मादा की पुतली गाढ़े भूरे रंग की होती है।

लुप्त प्राय वन्य जीव
इसकी निरंतर घटती हुई आबादी 1994 से तेजी से घटने लगी और उसके बाद तो हर दूसरे साल इसकी आबादी आधी होने लगी। इसका मूल कारण पशु दवाई 'डाइक्लोफिनॅक' है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको यह गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। DFO आशीष व्यास ने बताया- दो ही दशकों में यह लुप्त होने की कगार पर आ गया है। फलस्वरूप इसे घोर संकटग्रस्त जाति घोषित कर दिया गया है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम प्रचलन में आ गई है और यह गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। मवेशियों के इलाज में इसके इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। जब इस दवाई का उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद गिद्ध बच जायें।

DNP एरिया बनी सुरक्षित जगह
DFO आशीष व्यास ने बताया कि जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क (DNP) में सुदासरी, रामदेवरा क्लोजर बने हैं। इन क्लोज़र के चारों तरफ तारबंदी है। जिससे आवारा कुत्ते आदि अंदर नहीं आने से वन्य जीवों को खतरा कम है। ऐसे में सभी वन्य जीव व पक्षी खुलकर विचरण करते हैं। इस इलाके में मृत पशु भी बिना केमिकल युक्त फसल और दर्द निवारक दवाओं से मुक्त होते हैं। इस तरह से गिद्ध जब इनका भोजन करते हैं तब दवाइयां इनके पेट में नहीं जाती है। जिससे इनको स्वच्छ भोजन मिलता है। इस तरह इनकी संख्या बढ़ रही है।

दो साल में 22 गिद्ध बढ़े, पहली बार लोमड़ी की संख्या 157 पहुंची
DFO व्यास ने बताया कि वाटर हॉल पद्धति से की गई गणना में दूसरे वन्यजीव भी नजर आए है। जैसलमेर के DNP क्षेत्र में 1100 चिंकारा नजर आए है। वहीं पिछली गणना की तुलना में मरु बिल्ली की संख्या भी 26 से बढ़कर 44 हो गई है। लोमड़ी की संख्या भी 101 से बढ़कर 157 तक पहुंच गई है।

जैसलमेर में प्रजनन करता है रेड हेडेड वल्चर
पर्यावरण प्रेमी राधेश्याम पेमानी ने बताया कि रेड हेडेड वल्चर एक दुर्लभ प्रजाति का गिद्ध है जो जैसलमेर में प्रजनन करता है। इसे ICUN की रेड डाटा लिस्ट में संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में रखा गया है, जिसे किंग वल्चर भी कहते है। पहले बहुतायत पाया जाने वाला ये पक्षी अब लुप्तप्राय है। इसकी संख्या तेजी से घट रही हैं। हर दो-तीन साल में इनकी संख्या आधी घट जाती है।
जैसलमेर में ये पक्षी प्रजनन कर रहा है ये खुशी की बात है। डीएनपी एरिया सुरक्षित एरिया होने से और इनको खाने में मिल रहे पशुओं की तादाद से ये पक्षी बच पा रहा है। ये पर्यावरण संतुलन के वाहक है और इनका संरक्षण बेहद जरूरी है।

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