पिता पर कर्ज हुआ तो 10 साल की उम्र में मैंने घर छोड़ दिया और मजदूरी करने चला गया। अलग-अलग राज्यों में होटल में नौकरी की। नमकीन और सोहन पपड़ी के कारखानों में काम किया। कैटरिंग का काम भी किया। इलाहाबाद में मिठाई की दुकान शुरू की। कोरोना में सब चौपट हो गया। 30 लाख का नुकसान हो गया। गांव लौटकर आया तो पता चला कि मां को कोरोना हो गया। इसके बाद अपनी पुश्तैनी जमीन पर ही कुछ करने का फैसला किया।
म्हारे देस की खेती में आज बात जोधपुर के किसान मेघसिंह राजपुरोहित (43) की। जिन्होंने जीवन में हर कदम पर संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी। जोधपुर की तहसील सेखाला (देचू) के गांव कनोड़िया पुरोहितान निवासी मेघसिंह आज 60 बीघा में अनार की खेती कर रहे हैं।
मार्च 2024 से अब तक 20 लाख का टर्नओवर
मेघसिंह ने बताया- दो साल पहले यानी 2022 में पैतृक गांव सेखाला में अनार की खेती की शुरुआत की। नासिक के एक डीलर से अनार के 4000 पौधे मंगवाए। मई 2022 में खेत तैयार कर पौधे लगाए। उस समय एक पौधा 35 रुपए का मिला। डेढ़ साल तक पौधों की देखभाल की। इसी साल मार्च 2024 में अनार की पहली खेप 25 टन की थी।
इसे गुजरात के व्यापारियों को 80 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा। दो सीजन (मार्च और जून) में 20 लाख का टर्नओवर कर चुका हूं। 7 लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हुआ। गुजरात के व्यापारी खुद खेत तक आए और बल्क में फसल खरीदकर ले गए। गुजरात में जोधपुर के अनार की खूब डिमांड है।
अनार के साथ दूसरी फसलें भी लगाई, अच्छी कमाई
मेघसिंह ने बताया- वर्तमान में खेत में अनार के साथ-साथ तरबूज, खरबूजा, ग्वार, ककड़ी, भिंडी, तुरई और कचरी भी उगा रखी है। इस सीजन सब्जी और फ्रूट बेचकर 4 लाख की कमाई हुई है। इसके अलावा मेरे पास 8 गाय हैं, जिनके दूध से अतिरिक्त कमाई हो रही है।
अब अगले महीने से 30 बीघा जमीन पर बेर और पपीते उगाने का प्लान है। दो किसानों से ठेके पर जमीन ली है। करीब 80 बीघा की दो कृषि भूमियों का सालाना किराया 2.50 लाख रुपए है। इस 80 बीघा जमीन को मूंगफली और जीरे की खेती के लिए तैयार कर रहा हूं।
जालोर के जीवाणा गया तो अनार की खेती का आइडिया आया
किसान मेघसिंह ने बताया- नागपुर में मिठाई का बिजनेस था। कोरोना काल के 2 साल में सब चौपट हो गया। कोरोना काल के दौरान गांव आया था। गांव में ही कुछ करने का मानस था। पुश्तैनी जमीन थी, इसलिए खेती का विचार किया। कोरोना काल में गांव में रहने के दौरान एक बार जालोर के जीवाणा गया। वहां अनार की खेती देखी।
यहां पानी की समस्या है, इसलिए ऐसी खेती करने का विचार था, जिसमें पानी की जरूरत कम हो। किसानों से बात की तो जानकारी मिली कि अनार के लिए बहुत कम पानी की जरूरत होती है। इसके बाद मैंने अनार की खेती करने का फैसला लिया।
अनार के बीच में जीरा, तरबूज और ग्वार की फसलें ली। इसका अच्छा रिस्पॉन्स मिला। अनार की साल में 2 उपज मिलती हैं। मार्च में अच्छी फसल आती है। गर्मी में अनार मार्च के मुकाबले थोड़ा कम रहता है। ओले-बारिश से अनार फटने लगता है।
बाजार तलाशने की जरूरत नहीं, व्यापारी खेत तक आते हैं
मेघसिंह ने बताया- इलाके में अनार की अच्छी उपज होती है। यही कारण है कि बाजार के लिए भटकना नहीं पड़ता। व्यापारी खुद इलाके में आते हैं। किसानों से डील करते हैं और खेत से ही फसल खरीद लेते हैं। जोधपुर-जालोर के अनार की काफी डिमांड है।
बचपन से अब तक काम की तलाश में कई शहरों और राज्यों में भटका। सफलता-विफलता के अनुभव मिले। लेकिन, असली सुकून अपने गांव आकर खेती से जुड़कर मिला।
बचपन से किया संघर्ष, 10 साल की उम्र में काम की तलाश में निकले
मेघसिंह राजपुरोहित के परिवार में उनके पिता अमरसिंह, माता और चार भाई है। मेघसिंह के तीन भाई नागपुर के पास पोराड़ी में मिठाई की दुकान संभालते हैं। मेघसिंह की बेटी मनीषा (16) सरवड़ी गांव (ननिहाल) में 12वीं की पढ़ाई कर रही है। बड़ा बेटा महावीर (14) 10वीं क्लास में है। छोटा बेटा अशोक (8) दूसरी क्लास में पढ़ता है।
मेघसिंह ने बताया- पिता अमरसिंह 85 वर्ष के हैं। वे गुजरात के अलग-अलग जिलों में रूई के गोदाम में काम करते थे। बुआओं की शादी की वजह से पिता पर कर्ज हो गया। ऐसे में परिवार चलाने के लिए मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। महज 10 साल की उम्र में गांव से कक्षा चार की पढ़ाई पूरी कर मैं मजदूरी के लिए चला गया।
मेघसिंह ने बताया- मेरा जन्म साल 1980 में हुआ था। साल 1990 में सबसे पहले जालोर जिले के रामसीन गया। यहां पर एक होटल में 6 माह काम किया। बाद में 12 माह तक जैसलमेर में होटल में काम किया। यहां से तेलंगाना के करीमनगर में अपने रिश्तेदार के नमकीन के कारखाने में काम करने चला गया। 3 साल तक वहां काम करने के बाद 1995 में महाराष्ट्र के गोंदिया में आ गया। यहां साल 1998 तक रिश्तेदार के पास सोहन पपड़ी बनाने के गोदाम में काम किया।
इसके बाद सूरत में शादी समारोह में कैटरिंग का काम किया। 2002 में वापस महाराष्ट्र के गोंदिया आ गया। यहां पर मिठाई की दुकान पर तीन साल तक काम किया। इसके बाद खुद का कारोबार शुरू करने के लिए एक से दूसरे शहर में घूमता रहा।
साल 2008 में नागपुर (महाराष्ट्र) के पोराड़ी गांव में दुकान खोली। इस दुकान को वर्तमान में भाई संभालते हैं। इस दुकान से अपनी हिस्सेदारी निकालकर अपने भाइयों को सौंप दी। बड़ा करने की सोच के साथ 2018 में इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) के झुंसी में 25 लाख रुपए का निवेश कर मिठाई की दुकान शुरू की।
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