इंडियन नेशनल रोड कांग्रेस के मुताबिक लॉन्गी या कैंबर दो डिजाइन की सड़कें डाली जानी चाहिए ताकि सड़क पर जलभराव नहीं हो। वर्तमान में झूला सड़कें डाली जा रही हैं, जिससे जलभराव होता है। खास बात यह है कि अगर डामर की सड़क पर पांच दिन भी पानी जमा हो गया तो वह डामर कागज की लुगदी की तरह बिखरने लगती है और वहां बड़े-बड़े गड्ढे हो जाते हैं।
राजधानी में करीब 11 लाख किमी में सड़क नेटवर्क है, जो मुख्य सड़कों के अलावा कॉलोनियों को भी जोड़ता है। इनका मेंटेनेंस जेडीए, नगर निगम और हाउसिंग बोर्ड द्वारा किया जाता है। हर साल 440 करोड़ रुपए नई सड़कें डालने और पुरानी सड़कों के मेंटेनेंस पर खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इंजीनियर्स का फोकस सिर्फ सड़कों के रीकार्पेट का रहता है, जो डिफेक्ट लाइबिलिटी से बाहर रहती है, जिसमें ठेकेदार के साथ मिलकर इंजीनियर्स फायदा उठाते हैं। शायद यही वजह है कि सड़कों की डिजाइन पर किसी का ध्यान नहीं है।
वाहनों की संख्या के हिसाब से डिजाइन होती हैं सड़कें
डब्ल्यूबीएम सड़कें मिट्टी, बजरी, मुरुम और कंकड़ सड़कों की तुलना में मजबूत होती हैं। डब्ल्यूबीएम सड़कें लगभग 10 सेमी मोटाई की परतों में बिछाई जाती हैं, लेकिन इन पर वाहन आसानी से चल नहीं पाते। जबकि बिटुमिन सड़कें सबसे ज्यादा डाली जाती हैं, इनकी लागत कम होती है और ये ड्राइविंग के लिहाज से अच्छी होती हैं।
बिटुमिन सड़कों की मोटाई सबग्रेड मिट्टी की ऊंचाई पर तय होती है। जबकि सीमेंट व कंक्रीट की सड़कों का उपयोग वहां होता है, जहां पानी ज्यादा जमा होता है और वाहनों की आवाजाही ज्यादा होती है, लेकिन इनकी लागत ज्यादा आती है। डब्ल्यूबीएम सड़कें यानी वाटर बाउंड मैकडैम सड़कों के बेस में पत्थर की टुकड़ी डाली जाती है और पानी के छिड़काव के साथ इन पर रोल किया जाता है। ये सड़कें उन इलाकों में डाली जाती है, जहां माइनिंग होती है, क्योंकि यह बड़े ट्रोले व ट्रैक्टर्स की आवाजाही ज्यादा होती है।
जयपुर की एक भी सड़क ऐसी नहीं हैं, जहां बरसाती पानी का भराव नहीं हो। जेडीए, निगम व हाउसिंग बोर्ड एरिया की 2200 कॉलोनियों की सड़कें तालाब बनी हुई हैं, क्योंकि यहां पानी की निकासी की उचित व्यवस्था नहीं है। यहां बरसात का पानी सड़क के बीचों बीच जमा हो रहा है। इसकी वजह, सड़कों की डिजाइन में तकनीकी खामी बताई जा रही है। अधिकतर सड़कें इंजीनियर्स की बजाए ठेकेदारों की लेबर द्वारा डाली जाती हैं, जिसमें डिजाइन का ध्यान ही नहीं रखा जाता।
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