नटवर सिंह की राजनीतिक शख्सियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे जब तक दिल्ली के गलियारों में सक्रिय रहे हमेशा चर्चाओं में रहे।

नटवर सिंह का लंबी बीमारी के बाद गुड़गांव के निजी अस्पताल में निधन हो गया। नटवर सिंह एक समय कांग्रेस के कद्दवर नेताओं में शामिल रहे थे, जिनकी गांधी परिवार तक सीधी पहुंच थी और जो जब चाहे तब मिल सकते थे, लेकिन जब दूरियां बढ़ी और संबंध बिगड़े तो बोल-चाल तक बंद हो गई।

नटवर सिंह विदेश मामलों के एक्सपर्ट थे, यूपीए राज में विदेश मंत्री रहने के दौरान ही वॉल्कर विवाद में उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। उस दौरान ही उनका गांधी परिवार से विवाद हुआ और कांग्रेस छोड़ दी।

नटवर सिंह के पिता गोविंद सिंह भरतपुर राजपरिवार में अधिकारी थे, नटवर सिंह के जन्म के समय वे डीग के मजिस्ट्रेट थे। 16 मई 1931 को भरतपुर में जन्मे नटवर सिंह बचपन से ही पढ़ने में होशियार थे। मेयो कॉलेज और ग्वालियर के सिंधिया स्कूल से उनकी शुरुआती शिक्षा हुई।

इसके बाद दिल्ली के प्रसिद्ध सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। 1952 में इंडियन फॉरेन सर्विस में सिलेक्ट हुए। विदेश सेवा के अफसर रहते हुए नटवर सिंह ने एक डिप्लोमैट के तौर पर पहचान बनाई। नटवर सिंह उस दौर में दुनिया की बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे।

नटवर सिंह ने दर्जन भर किताबें लिखीं, उनकी एक किताब पर विवाद
नटवर सिंह पढ़ने लिखने वाले नेताओं में थे। नटवर सिंह ने दर्जन भर ​किताबें लिखीं। उनकी किताबों में ए एम फोस्टर: ए ट्रिब्यूट, द लिगेसी ऑफ नेहरू, टेल्स फ्रोम मॉर्डन इंडिया, महाराजा सूरजमल,कर्टेन रेजर : एसेज, रिव्यूज एंड लेटर्स, प्रोफाइल्स एंड लेटर्स, योर्स सिन्सीयरली, द मे​गनिफिसेंट महाराजा, हार्ट टू हार्ट, माई चाइना डायरी (1956-88), वॉकिंग विथ लॉयन्स : टेल्स फ्रोम ए डिप्लोमेटिक पास्ट और वन लाइफ इज नोट इनफ शामिल हैं।

2014 में आई उनकी किताब 'वन लाइफ इन नोट इनफ' पर खूब विवाद हुआ था। कांग्रेस छोड़ने के बाद लिखी इस किताब में कई खुलkसे थे। सोनिया गांधी को लेकर उनके खुलासे किताब में नहीं आए, इसके लिए प्रियंका गांधी उनसे मिलने घर तक गई थीं।

प्रियंका ने उनसे आग्रह किया था कि सोनिया से जुड़ी कई बातों का जिक्र किताब में नहीं करें, लेकिन वे नहीं माने। नटवर सिंह ने एक इंटरव्यू में खुद इस बात का जिक्र किया था।

नटवर सिंह की 'वॉकिंग विथ लाइन' किताब में विस्तार से उस दौर की घटनाओं और राजनयिक संबंधों के बारे में जिक्र किया है।

राजस्थान के गहलोत विरोधी नेताओं के संरक्षक रहे
राजस्थान की राजनीति में नटवर सिंह लगातार सक्रिय रहते थे, वे राज्यसभा से सासंद रहे लेकिन सियासी समीकरणों पर पकड़ रखते थे। अशोक गहलोत कैंप से उनकी कभी नहीं बनी, इसीलिए वे दिल्ली में गहलोत विरोधी राजस्थान के नेताओं के संरक्षक के तौर पर माने जाते थे।

कई पदों पर नियुक्ति में भी उनका दखल रहा था। साल 2013 में कांग्रेस छोड़ने के बाद गहलोत विरोधी नेताओं को दिल्ली में एक बड़े पैरोकार से हाथ धोना पड़ा।

10 साल पहले एक इंटरव्यू में कहा था-राजनीति में युवाओं को लाना चाहिए, पायलट का समर्थन नटवर सिंह सितंबर 2014 में अपनी किताब 'वन लाइफ इज नोट इनफ' पर चर्चा के सिलसिले में जयपुर आए थे। उस वक्त उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि राजनीति में युवाओं को लाना चाहिए, 70 साल के बाद नेताओं को राजनीति छोड़ देनी चाहिए। सचिन पायलट को लेकर नटवर सिंह ने कहा था कि उनकी इमेज अच्छी है तो कांग्रेस को इसका फायदा होगा,युवाओं को तो आगे लाना ही चाहिए।

शेरों के बीच चलकर अफ्रीकी राजा तक गए थे
नटवर सिंह 60 के दशक में आईएफएस के तौर पर यूएनओ में तैनात थे। अफ्रीका के देशों को औपनिवेशिक गुलामी से मुक्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने डिकॉलोनाइजेशन कमेटी बनाई थी, उस कमेटी में नटवर सिंह भी थे। कमेटी इथोपिया गई, उसमें नटवर सिंह ने अपनी किताब में इथोपिया के राजा के दरबार का जिक्र किया है, राजा के रदबार में शेर थे।

राजदूत राष्ट्राध्यक्ष को अपने क्रेडेंशियल्स सौंपते हैं, उसका एक समारोह होता है। राजदूत उस सेरेमनी में गए तो सामने का सीन देखकर हक्के-बक्के रह गए।

राजा के दोनों तरफ शेर थे, बीच में भी शेरों की कतार थी। उन शेरों के बीच से ही राजा से मिलना था। उन्होंने शेरों के बीच से चलकर अपने क्रेडेंशियल राजा को सौंपे।

यासिर अराफात रूठे तो मनाकर लाए थे सिंह
इंदिरा गांधी के पीएम रहते हुए 1983 में दिल्ली में गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन में फिलिस्तीन के नेता यासिर अराफात रूठ गए थे, वे वापस जा रहे थे। अपनी किताब में उन्होंने इस किस्से का जिक्र किया। साल 2014 में दिए इंटरव्यू में भी उन्होंने इस किस्से के बारे में बताया था।

सिंह ने बताया कि यासिर अराफात एक अरब लीडर का भाषण उनसे पहले रखने से नाराज होकर चले गए थे। जब यह बात मुझे पता चली तो यह बात इंदिरा गांधी को बताई, उन्होंने मुझे यासिर अराफात से बात कराने को कहा। मैं अराफात के पास गया, उन्हें इंदिरा गांधी का मैसेज दिया। इंदिरा गांधी का मैसेज होने की बात कहते ही अराफात नरम पड़े और कहा कि वो मेरी बड़ी बहन हैं, उनका कहना नहीं टाल सकता।

अमरिंदर को लेकर कहा था- चमचागिरी कर रहे हैं
नटवर सिंह ने जब 2014 में अपनी किताब में सोनिया गांधी की आलोचना की थी तो कांग्रेस नेताओं ने उनकी खूब आलोचना की थी। नटवर सिंह के साले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नटवर सिंह पर धोखा देने का आरोप लगाया था।

कैप्टन ने उन्हें विश्वासघात करने वाला भी बताया था। सिंह ने अमरिंदर पर पलटवार करते हुए कहा था कि वो चमचागिरी कर रहे हैं। कांग्रेस को यहां तक लाने में सोनिया, राहुल का कसूर नहीं है तो किसका कसूर है? अमरिंदर अपने नंबर बढ़ाने के लिए ऐसा कह रहे हैं।

इंदिरा गांधी के साथ गए थे बाबर की कब्र पर
नटवर सिंह ने अपनी किताब में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते सितंबर 1969 में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के पास बाबर की कब्र पर जाने की घटना का जिक्र किया है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि हम एक डेलिगेशन में काबुल गए थे, हमारे पास दो तीन घंटे का वक्त था, इसलिए इंदिरा गांधी ने कहीं ड्राइव पर घूमने चलने की इच्छा जताई। काबुल के पास एक जगह के बारे में इंदिरा गांधी ने स्थानीय प्रोटोकॉल अफसर से पूछा कि यह क्या है? तो उसने कहा कि यह बाग-ए-बाबर है।

नटवर सिंह ने कहा था- इतिहास ने नेहरू के साथ न्याय नहीं किया
नटवर सिंह पंडित नेहरू को दुनिया का बेस्ट प्राइम मिनिस्टर मानते थे। कांग्रेस छोड़ने के बाद भी वे खुद को नेहरूवादी कहते थे। वे नेहरू के लोकतंत्र, सेकुलरिज्म, मानववाद के साथउनकी बनाई संस्थाओं को लेकर उनकी तारीफ करते थे। नटवर सिंह ने कहा था- जवाहरलाल नेहरू नंबर वन प्राइम मिनिस्टर थे। इतिहास ने उनके साथ न्याय नहीं किया।

नेहरू कश्मीर को गलत चैप्टर में यूएन में ले गए, माउंटबेटन दोतरफा गेम खेल रहे थे
नटवर सिंह ने कहा था कि नेहरू ने तीन गलतियां की थीं। कश्मीर समस्या को यूएन में ले जाना गलत था। वो चैप्टर 6 में कश्मीर समस्या को यूएन में ने गए, गलत चैप्टर में ले गए। उन्हें चैप्टर 7 में ले जाना चाहिए था, उस चैप्टर में ले जाते तो भारत की पॉजिशन अलग होती। भारत ने पैरवी के लिए भी शुरुआत में बहुत हल्के स्तर के वकील भेजे। चीन पर हद से ज्यादा भरोसा करके गलती की। संसद को भी चीन की चालबाजी के बारे में नहीं बताया। कश्मीर के मामले में माउंटबेटन दोतरफा गेम खेल रहे थे जिसे नहरू समझ नहीं पाए थे।

प्रोटोकॉल अफसर ने सिक्योरिटी नहीं ​होने की बाध्यता बताई, लेकिन इंदिरा गांधी ने इसकी परवाह नहीं करते हुए वहां जाने की बात कही। इंदिरा गांधी ने बाग-ए-बाबर का विजिट किया। तब मैंने कहा कि वी हेव ए ब्रश विथ हिस्ट्री, तो उन्होंने पूछा कैसे? मैंने कहा एक तो हिंदुस्तान के बादशाह बाबर और एक आप हिंदुस्तान बादशाह।

टवर सिंह से पंडित नेहरू ने कहा था- मुझे चाणक्य नीति सीखा रहे हो?
अप्रैल 1953 में नटवर सिंह प्रोबेशनर आईएफएस थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सभी प्रोबेशनर्स आईएफएस को वन टू वन चर्चा के लिए बुलाया। नटवर सिंह ने अपनी किताब में पंडित नेहरू से उस मुलाकात का जिक्र करते हुए पूरा किस्सा लिखा है। नटवर सिंह ने लिखा- जब नेहरू से मिलने चैंबर में गया तो नर्वस लग रहा था। मेरे कमरे में जाते ही नेहरू ने खड़े होकर स्वागत किया। मेरी मनोदशा वो समझ गए थे, इसलिए मुझे सहज करने के लिए परिवार और पर्सनल बातें पूछीं। बाद में उन्होंने पूछा- क्या हमें चीन से कोई खतरा है?

नटवर सिंह ने जवाब में कहा- जी, है भी और नहीं भी है, क्योंकि हमारे अगले दरवाजे पर पड़ौसी हमारा अच्छा दोस्त और दुश्मन है। इस पर पंडित नेहरू ने कहा- मुझे चाणक्य नीति सीखा रहे हो? बाद में कुछ सवाल साउथ अफ्रीका और पंचवर्षीय योजना को लेकर पूछे। जब बातचीत खत्म हुई, तो पंडित नेहरू छोड़ने के लिए दरवाजे तक आए। देश के प्रधानमंत्री का एक प्रोबेशनर आईएफएस के प्रति यह जेस्चर किसी अचंभे से कम नहीं था।

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