एकल पट्टा प्रकऱण में भजनलाल सरकार द्वारा गठित जांच कमेटी को रद्द करने की गुहार सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई हैं। प्रकरण में आरोपी रहे रिटायर्ड आईएएस जीएस संधू ने सुप्रीम कोर्ट में पेंडिग चल रही एसएलपी में प्रार्थना पत्र दायर करके कमेटी को रद्द करने की मांग की हैं।
प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि मामले में राज्य सरकार अपना जवाब दे चुकी है और उसमें उन पर कोई भी अपराध बनना नहीं पाया है। मामले में पहले भी एफआर लग चुकी है। राजस्थान हाईकोर्ट से भी अभियोजन पक्ष मामला वापस ले चुका है। ऐसे में इस स्तर पर राज्य सरकार की ओर से मामले के आरोपों की जांच के लिए कमेटी का गठन नहीं किया जा सकता हैं।
दरअसल, भजनलाल सरकार ने पूरे प्रकरण की जांच के लिए हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस आरएस राठौड़ की अध्यक्षता में 28 जून को कमेटी गठित की थी। इस कमेटी में गृह विभाग के एसीएस व यूडीएच विभाग के प्रमुख सचिव को भी शामिल किया गया था।
पहले क्लीन चिट दी, फिर कमेटी बनाई
भजनलाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 22 अप्रेल को शपथ पत्र पेश करते हुए करीब 10 साल पहले वसुंधरा सरकार के समय एकल पट्टा मामले में विधायक शांति धारीवाल सहित तीन अन्य अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी थी। राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए जवाब में कहा गया था कि एकल पट्टा प्रकरण में कोई मामला नहीं बनता है। एकल पट्टा प्रकरण में पूरी तरह से नियमों की पालना की गई थी। वहीं, इसमें राज्य सरकार को किसी भी तरह का वित्तीय नुकसान भी नहीं हुआ है।
लेकिन बाद में जब यह मामला खुला तो सरकार ने केस के प्रभारी अधिकारी एडिश्नल एसपी सुरेन्द्र सिंह को एपीओ कर दिया। वहीं मामले में आरोपो की जांच के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर दिया।
अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य प्रार्थना पत्र दायर कर रिवाइज्ड एफिडेविट पेश करने के लिए 8 सप्ताह का समय देने का आग्रह किया है।
क्या है एकल पट्टा प्रकरण
दरअसल, 29 जून 2011 में जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग के नाम एकल पट्टा जारी किया था। इसकी शिकायत परिवादी रामशरण सिंह ने 2013 में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो( एसीबी) में की थी। तत्कालीन वसुंधरा सरकार के समय 3 दिसम्बर 2014 को एसीबी ने इस प्रकरण में मामला दर्ज किया।
बाद में तत्कालीन एसीएस जीएस संधू, डिप्टी सचिव निष्काम दिवाकर, जोन उपायुक्त ओंकारमल सैनी, शैलेंद्र गर्ग और दो अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी। इनके खिलाफ एसीबी कोर्ट में चालान पेश किया था। मामला बढ़ने पर विभाग ने 25 मई 2013 को एकल पट्टा निरस्त कर दिया था।
इस मामले में तत्कालीन यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल से भी पूछताछ भी की गई थी। प्रदेश में सरकार बदलते ही गहलोत सरकार ने मामले में तीन क्लोज़र रिपोर्ट कोर्ट में पेश करके सभी को क्लीन चिट दे दी थी।
एसीबी ने कोर्ट से इन आरोपियों के खिलाफ दायर चार्जशीट को वापस लेने की एप्लिकेशन लगाई थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
लेकिन इनकी अपील पर 17 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संधू, दिवाकर और सैनी के खिलाफ केस वापस लेने को सही माना था। इस दौरान मामले में परिवादी रामशरण सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने भी केस वापस लेने की सहमति दी थी।
हाईकोर्ट के फैसले को दी गई थी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक पाठक ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। एसएलपी में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ दर्ज केस की एफआईआर को केवल शिकायतकर्ता के राजीनामे के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।
यह राज्य सरकार का केस है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है। ऐसे में राज्य सरकार की ओर से आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार केस को वापस लेना जनहित में नहीं है। इससे समाज में गलत संदेश जाएगा।
हाईकोर्ट ने मामले में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होते हुए भी राज्य सरकार की कार्रवाई को सही माना है, जो गलत है। इसलिए हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाए। इस एसएलपी में भी सुप्रीम कोर्ट धारीवाल को नोटिस जारी कर चुका है।
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