उदयपुर। शहर के लोग फिल्म देखने और शॉपिंग करने के लिए ‘गांवों’ में जाते हैं। सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन उदयपुर में कुछ ऐसा ही हो रहा है। जिमेदारों की सुस्ती से यह शहर सालों से अजीब विसंगति झेलने को मजबूर है। शहर के प्रमुख मॉल और मल्टीप्लेक्स जिन इलाकों में चल रहे हैं, वे इलाके सरकारी रेकॉर्ड में आज भी गांव का दर्जा लिए हुए हैं। प्रशासनिक ढिलाई का आलम यह है कि इन हिस्सों को नगर निगम की सीमा में शामिल करने के जो प्रस्ताव 2012 से सरकार को भेजे, वे आज भी धरातल पर नहीं उतर पाए हैं।शहर के प्रमुख मॉल्स में शामिल सेलेब्रेशन मॉल व अरबन स्क्वायर भुवाणा ग्राम पंचायत क्षेत्र में संचालित हो रहे हैं। बच्चों के लिए नए जमाने का कल्चरल लर्निंग सेंटर थर्ड स्पेस भी भुवाणा ग्राम पंचायत इलाके में ही है। मॉल्स, मल्टीप्लेक्स, शॉपिंग सेंटर, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग्स आदि से ही किसी भी शहर की पहचान होती है। ये सब कुछ इन ग्राम पंचायतों में कब के बन चुके हैं, लेकिन यह सब कुछ सरकार को नजर नहीं आ रहा। शहर के दायरे में आ चुकी ग्राम पंचायतों के सरपंच और यहां तक की सत्ताधारी पार्टी के विधायक कई बार इन इलाकों को नगर निगम क्षेत्र में शामिल करने की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन ‘हुकूमत’ में कोई हलचल नहीं है।
पत्रकारों की ओर से शुरू की गई मुहिम ‘निगम मांगे विस्तार, सुविधाओं की दरकार’ के बाद शहरीकृत हो चुके इलाकों के लोग अपने हितों के लिए मुखर हो रहे हैं। बेदला में गुरुवार को क्षेत्रवासियों की चौपाल रखी गई है। जिसमें स्थानीय निवासी क्षेत्र को नगर निगम में शामिल करने की मांग पर चर्चा करेंगे। सरपंच निर्मला प्रजापत ने बताया कि दोपहर 1 बजे ग्राम पंचायत परिसर में स्थानीय लोगों की चौपाल होगी।
उदयपुर शहर का दायरा पिछले दो दशक में काफी फैल चुका है। शहर के आसपास की करीब एक दर्जन ग्राम पंचायतें, जो कि यूडीए पेराफेरी का हिस्सा है, वो पूरी तरह शहर में तब्दील हो चुकी है। इन दो दशक में प्रदेश में चार बार सरकारें बदल चुकी। भाजपा एवं कांग्रेस दोनों दल सत्ता में रह चुके हैं, लेकिन किसी भी पार्टी ने इस विसंगति को दूर करने का प्रयास नहीं किया।
बड़गांव, हवाला खुर्द, हवाला कला, सीसारमा, देवाली (गोवर्धन विलास), बलीचा, सवीना खेड़ा, जोगी तालाब, नेला, तितरड़ी, धोल की पाटी, गुश्वर मगरी, बिलियां, फांदा, मनवा खेड़ा, एकलिंगपुरा, कलड़वास, कानपुर, बेड़वास, देबारी, झरनों की सराय, धोली मगरी, रकमपुरा, रेबारियों का गुढ़ा, रघुनाथपुरा, रूपनगर, आयड़ ग्रामीण, शोभागपुरा, देवाली (फतहपुरा), भुवाणा, सुखेर, सापेटिया, बेदला खुर्द, बेदला गांवों को नगर निगम में शामिल करने के कागज भी चले, लेकिन अंजाम तक नहीं पहुंचे।
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