बारां जिले के शाहाबाद में 1800 मेगावाट के पम्पड स्टोरेज पावर प्लांट के लिए 1.19 लाख पेड़ों की कटाई रोकी जा सकती है। खदानों में हुए गहरे गड्ढे (माइनिंग पिट) इसका बेहतर विकल्प हो सकते हैं। राज्य के खनन वाले इलाकों में ख़ाली पड़े माइनिंग पिट की गहराई 40 से 60 मीटर तक है। जहां दो अलग ऊंचाई पर पानी के स्टोरेज की व्यवस्था और टनल बनाई जा सकती है। साथ ही, इन इलाकों में माइनिंग वेस्ट से बने पहाड़़ों पर बिना हरियाली को नुकसान पहुंचाए सोलर पार्क विकसित किए जा सकते हैं। राज्य में दर्जनों ऐसे बड़े माइनिंग पिट महीनों तक बरसाती पानी से भरे रहते हैं। उनमें अतिरिक्त पानी की व्यवस्था पास के किसी जलस्रोत से पंप कर भी की जा सकती है। इससे लाखों पेड़ों के साथ जंगल के वन्यजीव और जैव विविधता को बचाया जा सकेगा। पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही स्वयंसेवी संस्था ‘हमलोग’ के संयोजक डॉ. सुधीर गुप्ता ने ऊर्जा मंत्री और ऊर्जा सचिव को पत्र लिख लाखों पेड़ों की कटाई रोकने का विकल्प सुझाया है। बारां के शाहबाद के अलावा चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा क्षेत्र में भी ऐसा ही 2500 मेगावाट क्षमता वाला एक और बिजलीघर बनाने की तैयारी है। पर्यावरणप्रेमी इन परियोजनाओं को लेकर जंगलों के संरक्षण पर सवाल उठा रहे हैं।
पम्प स्टोरेज प्लांट एक प्रकार का हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा भंडारण है। यह अलग-अलग ऊंचाई पर दो जल भंडारों का विन्यास है। माइनिंग क्षेत्र में अलग-अलग ऊंचाई पर बने गहरे गड्ढों में ये जल भंडार बनाए जा सकते हैं। यह विन्यास एक टनल से गुजरते हुए एक से दूसरे में पानी के नीचे जाने (डिस्चार्ज) के दौरान बिजली पैदा करेंगे। इस पूरे सिस्टम को बिजली की भी आवश्यकता होती है। क्योंकि यह पानी को वापस ऊपरी जलाशय (रिजर्वायर) में पंप करता है। इसके लिए खनन क्षेत्र में माइनिंग वेस्ट से बने पहाड़ों पर सोलर पार्क विकसित किए जा सकते हैं।
सौर ऊर्जा का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन चुनौती यह है कि सूर्यास्त के बाद इसका उत्पादन नहीं हो पाता। दूसरा, पवन ऊर्जा का उत्पादन भी कुछ महीनों में ही हो पाता है। ऐसे में पम्पड स्टोरेज प्लांट तेजी से बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के हिसाब से कम कीमत पर न्यूनतम रखरखाव वाला ऊर्जा भंडारण का ठोस तरीका है। यह कोयला आधारित बिजलीघरों की जरूरत भी खत्म कर सकते हैं।
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