नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप या रेप के प्रयास के दायरे में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को लेकर कड़ी आपत्ति जताई और इसे कानून की गलत व्याख्या करार दिया।
यह मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां एक व्यक्ति पर 10 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ अश्लील हरकत करने और उसके कपड़ों से छेड़छाड़ करने का आरोप था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया था और उसे कठोर सजा दी थी। लेकिन जब यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा, तो कोर्ट ने कहा कि आरोपी का कृत्य ‘रेप’ या ‘रेप के प्रयास’ की परिभाषा में नहीं आता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई। कई महिला संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने इसे गलत करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला कानून की गलत व्याख्या पर आधारित है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि किसी भी नाबालिग के शरीर को बिना उसकी सहमति के छूना या कपड़ों के साथ जबरदस्ती करना यौन अपराध की श्रेणी में आता है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ कोई भी यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ का मामला ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट (POCSO)’ के तहत आएगा और आरोपी को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाते हुए आरोपी की सजा बहाल करने का संकेत दिया है। अब इस मामले की अंतिम सुनवाई जल्द होगी, जिसमें तय होगा कि आरोपी को कितनी सजा दी जाएगी।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला महिला सुरक्षा के लिए एक अहम कदम है। इससे यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि किसी भी नाबालिग लड़की के साथ जबरदस्ती करना गंभीर अपराध माना जाएगा और दोषियों को सख्त सजा मिलेगी।
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